सागर।प्राकृतिक संपदा से भरपूर बुंदेलखंड में कई प्राचीन और रहस्यमय ऐसे स्थान हैं. जिनके बारे में एक से एक बढ़कर किवदंतिया हैं. ऐसा ही एक स्थान सागर दमोह मार्ग से कुछ दूरी आबचंद के घने जंगलों में एक नदी किनारे बनी गुफा है. जहां 144 साल से भगवान हनुमान विराजे हुए हैं. कहा जाता है कि गुफा की सफाई करते समय हनुमान जी की मूर्ति मिली थी. फिर मूर्ति की वहीं स्थापना कर दी गयी. कहा जाता है कि गुफा में जामवंत और हनुमान जी ने तपस्या की थी. मंदिर के महंत बताते हैं कि यहां से कुछ दूरी पर एक गुफा में मां गौरी तपस्या कर रही थी, तो उनकी सुरक्षा में इस गुफा में जामवंत और हनुमान जी भी तपस्या कर रहे थे. हालांकि ये स्थान प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है. बड़ी-बड़ी चट्टानों के बीच बहती नदी के चारों तरफ लगे अर्जुन के वृक्षों के बीच प्राचीन गुफा को देखने दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं.
गायें चराते वक्त मिली गुफा
गुफा के बारे में मंदिर की व्यवस्थापक रामाधार दास पाठक बताते हैं कि गुफा काफी प्राचीन काल की है. जब ये गुफा मिली थी, उस समय यहां कोई नहीं आता था, क्योंकि यहां दोनों तरफ विशाल झुके हुए अर्जुन के पेड़ थे. काफी अंधेरा रहता था और एक बाघ भी रहता था. इसलिए डर के मारे लोग नहीं आते थे. ऐसा हमारे हरेराम महाराज ने बताया था. वह यहां 144 साल पहले गाय चराने आते थे. एक दिन उन्होंने देखा कि यहां पर एक कंदरा है. उन्होंने उसकी साफ सफाई की, तो हनुमान जी की मूर्ति मिली. जिसकी स्थापना करके हरे राम महाराज यही रहने लगे. वैसे उनका नाम जमनादास महाराज था. वह हनुमान की भक्ति में ऐसे लीन हुए कि यहां पर खाने-पीने की व्यवस्था न होने के बावजूद पत्ते खाकर और नदी के कुंड का पानी पीकर प्रभु के सेवा में लग गये.