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आईए जानते हैं उस भरतकुण्ड के बारे में जहां भगवान राम के लिए भरत ने की थी 14 साल तपस्या - राम मंदिर उद्घाटन

Ram Mandir 2024: पौराणिक नगरी अयोध्या में इस समय राम नाम की गूंज है. रामलला अपने महल में विराजमान हो चुके हैं. वह अपने महल में लौट आए हैं. राम के लौटने का दृश्य पूरी दुनिया देख रही है. मगर एक दृश्य ऐसा भी था त्रेतायुग में भगवान राम वनवास के लिए जा रहे थे. उस समय पूरी अयोध्या उदास थी.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 22, 2024, 7:35 AM IST

अयोध्या के भरतकुण्ड पर संवाददाता प्रतिमा तिवारी की खास रिपोर्ट.

अयोध्या: मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की नगरी अयोध्या से करीब 20 किलोमीटर दूरी पर स्थित है नंदी ग्राम. यहीं पर है भरत कुण्ड, जहां प्रभु भगवान राम के छोटे भाई भरत ने 14 साल तक भगवान की चरण पादुका रखकर अयोध्या का राज चलाया था. उनकी प्रतीक्षा में उन्होंने भी सिंहासन का त्याग कर दिया था. इसके बाद इसी स्थान पर उन्होंने खड़ाऊ रखे. जब भगवान राम वन में घास फूस पर सो रहे थे तब भरत ने अपने विश्राम के लिए एक गड्ढा बनाया और उसी में विश्राम करते थे. नंदी ग्राम में ही स्थित है वह स्थान जहां भगवान हनुमान को भरत ने तीर मारकर गिराया था.

पौराणिक नगरी अयोध्या में इस समय राम नाम की गूंज है. रामलला अपने महल में विराजमान हो चुके हैं. वह अपने महल में लौट आए हैं. राम के लौटने का दृश्य पूरी दुनिया देख रही है. मगर एक दृश्य ऐसा भी था त्रेतायुग में भगवान राम वनवास के लिए जा रहे थे. उस समय पूरी अयोध्या उदास थी. भगवान राम माता सीता और अपने भाई लक्ष्मण के साथ अपना राज्य छोड़कर जा रहे थे. उस समय भरत ऐसे थे जिन्हें सबसे ज्यादा दुख था. एक ओर उनकी मां की वजह से राम को वनवास मिला था और दूसरा उन्हें उसी राज्य की जिम्मेवारी मिल रही थी. ऐसे में उन्होंने भी इसे अस्वीकार कर दिया और तमसा के तट पर 14 साल तक तपस्या की थी. प्रभु राम के लौटने का इंतजार किया था.

भरत ने 14 साल चरण पादुका रख किया इंतजारःभरतकुण्ड स्थित रामजानकी मंदिर के रामनारायण दास बताते हैं, यहां पर हनुमान जी, रामजानकी, गुरु वशिष्ठ, भरत जी और भगवान शिव का मंदिर स्थापित हैं. प्रभु राम जब चित्रकूट से लौटकर आए थे तब यहां पर उन्होंने विश्राम किया था. वहीं जब भरत प्रभु राम को वापस अयोध्या ले जाने में असफल रहे तो यहीं पर बैठकर 14 वर्ष तक भगवान राम के वापस लौटने का इंतजार किया था. उन्होंने कहा था कि अगर समय पूरा होने तक प्रभु राम नहीं आते हैं तो मैं अपने प्राण त्याग दूंगा. 13 वर्ष 11 महीना 29 दिन पूरा होते ही प्रभु श्रीराम वापस आ गए थे. इन इंतजार के दिनों में भगवान राम के भाई भरत ने राम की चरण पादुका सिंहासन पर रखकर अयोध्या का राज चलाया था.

भरत का बाण लगने से यहीं पर गिरे थे हनुमानःवे बताते हैं, 'भरत कुण्ड परिसर में एक वट वृक्ष है. इस वृक्ष की लटाएं कभी जमीन को नहीं छूती हैं. ऐसा इसलिए है कि जब भरत तपस्या कर रहे थे. उसी समय हनुमान पर्वत को ले जा रहे थे. तब भरत ने हनुमान को बाण मारा था. वह राम-राम करते हुए नीचे गिरने लगे थे. भरत ने सोचा यह तो बड़ा अनर्थ हो गया. मेरी मां ने भगवान को वन भेज दिया और मैं कितना अभागा हूं कि उनके सेवक को बाण मारकर गिरा दिया. सेवा नहीं कर सका अपराध क्यों कर दिया. उन्होंने सोचा कि पाप तो हो गया है तो अब हनुमान को गोद में उठा लिया जाए. उसी समय वट वृक्ष की लटाओं ने हनुमान को उठा लिया था. तब से इसकी लटाएं जमीन पर नहीं आती हैं.'

भरत की तपोस्थली और विश्रामस्थलीःरामनारायण दास बताते हैं, 'यहां स्थित वट वृक्ष यह ज्ञान देता है कि जो गिर रहा है उसे उठा लिया जाए. उसकी मदद कर दी जाए. यहां पर तपोस्थली है और एक विश्रामस्थल भी है. विश्रामस्थल के बारे में पौराणिक कथा है कि, भगवान राम जब चित्रकूट चले गए तब भरत ने देखा कि भगवान घास-फूस पर सोए हुए हैं. भरत जी ने कहा कि जब भैया हमारे इस तरह से रह रहे हैं तो मेरा स्थान तो उनके चरणों में है. इसलिए यहां पर उन्होंने गड्ढा खोदकर वे शयन करते थे. वहां पर एक गुफा बन गई थी. वह भरत जी का विश्रामस्थल है. कुण्ड का नाम भरत कुण्ड इसलिए पड़ा कि, भरत जी वहां पर चिता लगाकर बैठे थे. प्रभु राम के वापस आने पर इसे कुण्ड में परिवर्तित कर दिया गया.'

27 तीर्थों के जल से हुआ राम का राज्याभिषेकःवे बताते हैं कि, भरत कुण्ड और रामजानकी मंदिर में चैत्र रामनवमी, सावन आदि विशेष पूजन कार्यक्रमों के लिए लोग आते रहते हैं. यहां पर एक कुआं है जो 27 तीर्थों का जल है. यह जल भगवान राम के राज्याभिषेक के लिए आया था. सभी लोग यहां आते हैं और यहां के जल को ले जाते हैं. इस जल को लोग भगवान शिव को चढ़ाते हैं. यहां पर आकर दर्शन करने और जल ग्रहण करने से लोगों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं. यह नंदी ग्राम भी है. पौराणिक कथा है कि जब भगवान शिव से देवों ने भगवान राम को देखने के लिए कहा तो वे यहीं पर आकर रुके थे. यहां पर उन्होंने करीब 6 महीनों के लिए नंदी जी को रुकने के लिए कहा था, जिसके बाद इसका नाम नंदी ग्राम हो गया.

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