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उदयपुर के प्रताप गौरव केन्द्र में मनाई गई प्रताप जयंती, 57 फीट ऊंची प्रतिमा का किया गया दुग्धाभिषेक - Maharana Pratap Jayanti - MAHARANA PRATAP JAYANTI

MAHARANA PRATAP JAYANTI, उदयपुर के प्रताप गौरव केंद्र राष्ट्रीय तीर्थ में रविवार को प्रताप जयंती मनाई गई. प्रात: वेला में प्रताप की 57 फीट ऊंची प्रतिमा पर दुग्धाभिषेक किया गया. इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के राजस्थान क्षेत्र के क्षेत्र प्रचारक निंबाराम, संस्कार भारती के अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य और संगीत विधा प्रमुख अरुण कांत और अयोध्या में प्रतिष्ठापित भगवान रामलला का चित्र स्वरूप बनाने वाले डॉ. सुनील विश्वकर्मा भी शरीक हुए.

MAHARANA PRATAP JAYANTI
महाराणा प्रताप की 57 फीट ऊंची प्रतिमा (Photo : Etv bharat)

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Jun 10, 2024, 7:43 AM IST

उदयपुर.वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप जयंती पर उदयपुर के प्रताप गौरव केंद्र राष्ट्रीय तीर्थ में 57 फीट ऊंची महाराणा प्रताप की बैठक प्रतिमा का प्रातः वेला में दुग्धाभिषेक किया गया. इसके बाद केन्द्र पर जयंती के दिन भर के होने वाले कार्यक्रमों का आरंभ हुआ.

प्रताप गौरव केन्द्र के निदेशक अनुराग सक्सेना ने बताया कि इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के राजस्थान क्षेत्र के क्षेत्र प्रचारक निंबाराम का मुख्य आतिथ्य रहा. उन्होंने महाराणा प्रताप की प्रतिमा के समक्ष पुष्पांजलि अर्पित की और सभी से महाराणा प्रताप के जीवन से प्रेरणा लेने के साथ उनके जीवन के हर पहलू पर गहन शोध की आवश्यकता भी बताई. उन्होंने कहा कि महाराणा प्रताप शूरवीर योद्धा ही नहीं, अपितु कुशल प्रशासक, कला साधक, लोकहित के दूरदृष्टा, अर्थशास्त्री, कृषि विकास के चिंतक थे. इन सभी क्षेत्रों में उनके योगदान को रेखांकित किया जाना चाहिए.

संस्कार भारती के अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य और संगीत विधा प्रमुख अरुण कांत ने रविवार को यहां प्रताप गौरव केन्द्र ‘राष्ट्रीय तीर्थ’ में चल रहे महाराणा प्रताप जयंती समारोह के तहत ‘भारतीय कला में सांस्कृतिक राष्ट्र दृष्टि’ विषय पर विशेष व्याख्यान दिया. उन्होंने कहा कि जीवन की सहजता कला का अंग है. जब हम कलाओं का नाम लेते है तो सबसे पहले वेदों की ओर ध्यान जाता है. हम मूलतः ललित कला की 5 विधाओं से परिचित हैं. अथर्ववेद में 64 कलाओं का वर्णन है. गहराई में जाकर विचार करेंगे तो भारतीय कलाओं में सर्वकल्याण का संदेश प्रतिपादित होगा.

अयोध्या में प्रतिष्ठापित भगवान रामलला का चित्र स्वरूप बनाने वाले डॉ. सुनील विश्वकर्मा भी मंचासीन थे. उन्होंने ‘चोरी भी एक कला है’ विषय पर एक चोर की कहानी सुनाते हुए कहा कि कला की नकारात्मकता के बजाय सकारात्मकता की ओर बढ़ना भारतीय संस्कृति का बोध है. भारतीय संस्कृति में कला को जीवन कल्याण का मार्ग कहा गया है. कला मान-अभिमान व अन्य विकारों से विमुक्त करती है.

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उन्होंने कहा कि वे उस जगह से आए हैं जहां प्रसिद्ध कवि श्यामनारायण पांडेय ने महाराणा प्रताप की तलवार की ख्याति पर अपनी रचना लिखी है. डॉ. विश्वकर्मा ने अपनी चीन यात्रा के संस्मरणों को सुनाते हुए कहा कि चीनी प्रोफेसर भारतीय चित्रकला का मजाक उड़ा रहे थे, तब विश्वकर्मा ने उन्हें एक चुनौती दी, जिसे चीनी प्रोफेसर पूरा नहीं कर पाए. उन्होंने कहा कि भारतीय चित्रकला में वे सभी विधाएं हैं जो किसी भी विषय वस्तु का जीवंत चित्रण कर सकती हैं.

उन्होंने कहा कि जहां ग्रंथ किसी विषय को समझाने में कमजोर रह जाते हैं, वहां उनका चित्ररूप उस विषय को सहजता से समझा देता है. आज भी यह बात नन्हें बालकों की आरंभिक शिक्षा में अक्षरशः लागू होती है. डॉ. विश्वकर्मा ने व्याख्यान के दौरान मात्र 30 मिनट में एक्रिलिक कलर से लाइव डेमो देते हुए महाराणा प्रताप की पेंटिंग भी बनाई.

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