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लोगों के विरोध और विपक्षी चक्रव्यूह के बीच 'SBK' बना मांझी के लिए गले की फांस, क्या चौथी बार भी मिलेगी हार? - Lok Sabha Election 2024

Gaya Lok Sabha Seat: गया लोकसभा सीट से जीतनराम मांझी एनडीए के उम्मीदवार हैं. प्रचार के दौरान विरोध का सामना करने बाद अभी मांझी की मुश्किलें कम होती नहीं दिखाई दे रही है. अब उनके सामने 'एसबीके चक्रव्यूह' मुंह बाए खड़ा है. यहां जानिए क्या है ये एसबीके समीकरण. पढ़ें पूरी खबर.

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Apr 15, 2024, 12:47 PM IST

समझिए गया लोकसभा सीट का समीकरण

गया: बिहार की गया लोकसभा सीट पर कांटे की टक्कर दिख रही है. एनडीए के लिए मामला इसलिए फंस रहा है, क्योंकि इस बार यह सीट हम के खाते में गई है. पूर्व सीएम जीतनराम मांझी खुद चुनावी मैदान में हैं. चुनाव प्रचार अब अंतिम चरण में पहुंचने लगा है. इसके बीच एनडीए प्रत्याशी मांझी को आरजेडी कैंडिडेट कुमार सर्वजीत से सीधी चुनौती मिल रही है. यही वजह है कि तेजस्वी यादव भी इसे भुनाने में जुटे हैं. इस सीट के लिए अब तक आधा दर्जन चुनावी जनसभा कर चुके हैं. उनको मुकेश सहनी का भी पूरा साथ मिल रहा है.

मोदी है मांझी को आस

क्या है एसबीके समीकरण?: मांझी के सामने एसबीके को भेदने की बड़ी चुनौती है. इसमें S का मतलब समधन है. समधन द्वारा विधायक रहते हुए कामों की लापरवाही से मांझी को लगातार लोगों का विरोध झेलना पड़ रहा है. B से ब्राह्मण, जिसपर मांझी की विवादित टिप्पणी और K का मतलब है कुशवाहा. बिहार में कई सीटों पर आरजेडी द्वारा उतारे गए कुशवाहा प्रत्याशी के कारण लव-कुश का समीकरण बन रहा है. अब देखना है कि समधन, ब्राह्मण और दांगी कुशवाहा से उत्पन्न हो रही स्थिति को मांझी कैसे तोड़ेंगे.

इन स्थितियों को कैसे भेदेंगे मांझी?: इन सभी समीकरण को लेकर मांझी की आस आखिरकार नरेंद्र मोदी से है. मांझी चुनौतियों को भेदने के लिए मोदी के सहारे हैं. गया लोकसभा सीट पर मांझी के सामने पूर्व मंत्री कुमार सर्वजीत है, जो कि इंडिया गठबंधन से आरजेडी के टिकट पर चुनावी मैदान में है. मामला आमने-सामने का है. जरा सी चूक हुई तो जीत वाली गेंद किसी भी पाले में जा सकती है. हालांकि, जिस तरह से पिछले दो दशक से बीजेपी का इस सीट पर कब्जा रहा है, उस लिहाज से मांझी थोड़े मजबूत हैं लेकिन एसबीके को भेदना उनके लिए चुनौती बनी हुई है.

समधन ने बढ़ाई मांझी की मुश्किलें

समधन के कारण मांझी को झेलना पड़ रहा विरोध:जीतन राम मांझी की समधन ज्योति देवी बाराचट्टी की विधायक है. बाराचट्टी की विधायक रहते हुए उन्होंने कई काम किये लेकिन कई काम छूट गए. कुछ ऐसे काम थे जो बेहद जरूरी थे लेकिन समधन ने विधायक रहते कई साल में भी उसे पूरा नहीं किया है. इसे लेकर जनता में नाराजगी है. यही वजह है कि समधन की नाराजगी जीतन राम मांझी को झेलनी पड़ रही है. कई क्षेत्रों में इनका विरोध हो चुका है.

गया लोकसभा सीट पर प्रत्याशी जीतनराम मांझी

ब्राह्मणों पर विवादित टिप्पणी से बढ़ी मुश्किलें: वहीं जीतन मांझी ने पिछले साल ब्राह्मण समाज पर विवादित टिप्पणी की थी. उन्होंने ब्राह्मण पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि ये पूजा कराने आते हैं, गरीब लोग अब सत्यनारायण भगवान की पूजा अपने टोले में करवाते हैं, लेकिन ब्राह्मण ऐसे हैं कि वह उनके यहां नहीं खाते हैं. कहते हैं कि नगदी दे दें. इसके अलावा ब्राह्मणों के खिलाफ कई तरह की बातें कही थी. वहीं उन्होंने भगवान राम को लेकर भी विवादित टिप्पणी कर दी थी, इसे लेकर ब्राह्मण समाज में नाराजगी बनी हुई है. ब्राह्मण समाज मांझी से कहीं न कहीं खफा है.

बढ़ सकती है मांझी की मुश्किलें

लव-कुश समीकरण पड़ा भारी: इसी प्रकार लव-कुश समीकरण एनडीए के लिए महत्वपूर्ण वोट है, लेकिन इस बार बिहार की सियासत में लालू ने ऐसा खेल खेला है कि एनडीए का दांव कई जगहों पर उल्टा पड़ गया है. दरअसल आरजेडी ने कई कुशवाहा को मैदान में उतारा है. कई कुशवाहा मैदान में है, तो लव-कुश का एक बड़ा धड़ा आरजेडी का गुण गा रहा है. हालांकि, वह वोट किसे करेंगे, यह आने वाला समय बताएगा क्योंकि लव-कुश वोट वर्तमान के गठबंधन के लिहाज से एनडीए के खाते का ही माना जाता है लेकिन लालू के खेल ने दिलचस्पी बढ़ा दी है.

क्या है एसबीके समीकरण

कुशवाहा के बड़े नेता डाल रहे दरार: कुशवाहा समाज कई जिलों में आरजेडी के समर्थन में काम कर रहा है. जैसे औरंगाबाद लोकसभा सीट से अभय कुशवाहा लड़ रहे हैं. गया का यह पड़ोसी लोकसभा सीट है. ऐसे में यहां लव-कुश वोट थोड़े गोलबंद हुए हैं. गया जिले के ही विधानसभा का एक बड़ा हिस्सा औरंगाबाद लोकसभा में पड़ता है. ऐसे में पड़ोसी लोकसभा गया के होने के कारण यहां भी कुशवाहा के बड़े नेता दरार डाल रहे हैं और लव-कुश वोट को आरजेडी के पक्ष में करने की मुहिम में है. हालांकि लव-कुश के कई बड़े नेता अब भी एनडीए गठबंधन में शामिल है और उन्हें भरोसा है कि लव-कुश वोट छिटपुट तौर पर ही बिखरेगा.

एसबीके की चुनौती को भेदने में क्या मोदी बनेंगे सहारा?: अब सवाल यह उठता है कि एसबीके को मांझी कैसे भेदेगे. मांझी का विरोध इन तीन पहलूओं पर हो रहा है. अब ऐसे में मांझी को मोदी की आस है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सहारा मिला तो वह अपनी नैया खेव सकते हैं. यही वजह है कि मांझी भगवान राम के हो गए हैं. जय श्री राम के नारे भी लगा रहे हैं. भगवान राम की आरती भी कर रहे हैं. गया से लेकर अयोध्या तक उन्होंने रामलला की आरती कर ली है.

"जनता हमसे नाराज नहीं है. हम लोग अपना चुनाव प्रचार कर रहे हैं और जनता के बीच जा रहे हैं. पूरी उम्मीद है कि जीत हमारी होगी. जीत निश्चित करने की अंतिम मुहर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गया में चुनावी सभा से लग जाएगी."-जीतन राम मांझी, एनडीए प्रत्याशी

क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक: इस संबंध में वरिष्ट पत्रकार पंकज कुमार सिन्हा बताते हैं कि बिहार में एनडीए नरेंद्र मोदी के कारण मजबूत है. 40 में 40 तो नहीं लेकिन 38- 39 सीट से एनडीए जीत सकती है. वहीं गया लोकसभा की बात करें तो सनातन और ब्राह्मण विरोधी बयान मांझी ने जरूर दिए हैं, लेकिन देखा जाए तो आरजेडी के कोटे से शिक्षा मंत्री रहे चंद्रशेखर ने तो सनातन को ही नकार दिया था. फतेह बहादुर ने भी कई बार विवादित टिप्पणी की. तेजस्वी यादव मछली और संतरा का वीडियो डाल रहे हैं, यह मुद्दा नहीं हो सकता है. कहीं न कहीं एनडीए प्रत्याशी के पक्ष में कमी नजर आई है और यही वजह है कि पीएम 16 अप्रैल को गया आ रहे हैं.

"एक बार अरविंद पांडे जब गया में आईजी थे तो मांझी काफी नाराज थे लेकिन आईजी कमजोर वर्ग में गए तो उनके काम को देखकर जीतन राम जी ने कहा कि आपने मेरा विचार बदल दिया. इस तरह ब्राह्मणों के प्रति मांझी का विचार भी बदलता रहा है. हालांकि अंतिम आस मोदी ही है, क्योंकि उनके आने से 10 से 15% वोट मांझी को प्लस कर जाएंगे."-पंकज कुमार सिन्हा, वरिष्ठ पत्रकार
एनडीए के पास हैं कई मुद्दे: एनडीए के पास जनता को बताने के लिए अयोध्या में रामलला को विराजमान करने का मुद्दा है. इस प्रकार के कई मुद्दे एनडीए के पास है. गया से लोकसभा से जीतनराम मांझी तीन बार हार चुके हैं. चौथी बार वे मैदान में है, उनके लिए चुनौती बनी हुई है, इसलिए मोदी गया आ रहे हैं. दूसरे तरीके से बात की जाए तो बूथ मैनेजमेंट और कढ़ाई छाप का चुनाव चिन्ह को लेकर भी थोड़ा संशय है, क्योंकि एनडीए का बूथ मैनेजमेंट सही नहीं होता है. वोटर ज्यादा है लेकिन बूथ मैनेजमेंट में कमी रह जाती है.

बूथ मैनेजमेंट और चुनाव चिह्न है खास:अभी भी बीजेपी या जेडीयू के चुनाव चिह्न आम है. ऐसे में उनके प्रत्याशी को मुश्किल नहीं होती है, लेकिन इस बार हम को यह सीट मिली है और जीतनराम मांझी का चुनाव चिह्न कढ़ाई छाप को हर एक जनता के बीच बताना होगा. इस तरह से बूथ मैनेजमेंट और चुनाव चिह्न को जनता के बीच ले जाना होगा. पंकज कुमार सिन्हा बताते हैं कि समधन ज्योति देवी का विरोध हुआ है, न कि जीतन राम मांझी का. हालांकि विरोध उसी का होता है, जिससे उम्मीद रहती है. अब तक गया से बीजेपी ने जब भी चुनाव जीता है तो लाख से पार वोटों से जीता है.

कढ़ाई छाप मिला चुनाव चिन्ह

"हमने पहले भी कहा है कि जीतन राम मांझी हमारे पिता तुल्य हैं. यह चुनाव एक तरह से धर्म युद्ध है. धर्म युद्ध में जीत हमारी होगी."-कुमार सर्वजीत, प्रत्याशी, इंडिया गठबंधन

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