बीकानेर :सनातन धर्म में पितृ पक्ष की शुरुआत भाद्र मास में शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से होती है और आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि तक पितृ पक्ष चलता है. पितृ पक्ष में लगभग 15 दिनों तक पितरों का श्राद्ध और तर्पण किया जाता है, ताकि पितरों के लिए इस पक्ष में पूजन तर्पण कार्य किया जा सके. पंचांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू ने बताया कि श्राद्ध पक्ष का काफी अहम है. इसलिए श्राद्ध पक्ष में कुछ खास बातों का ध्यान रखने की जरूरत होती है.
क्या है पितृ पक्ष और कितने दिन का होता है :आश्विन मास के कृष्ण पक्ष के पन्द्रह दिन पितृ पक्ष के नाम से विख्यात है. इन पन्द्रह दिनों में लोग अपने पितरों के निमित्त जल देते हैं और उनकी मृत्यु तिथि पर श्राद्ध करते हैं. पितृ पक्ष श्राद्ध पक्ष के लिए निश्चित 15 तिथियों का एक समूह है. वर्ष के किसी भी मास और तिथि से अपने पितरों के लिए पितृ पक्ष की उसी तिथि को श्राद्ध किया जाता है.
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क्या है श्राद्ध का अर्थ :'श्रद्धया दीयते यत्त्ततश्राद्ध' पितृ पक्ष में पितरों की मृत्यु तिथि के दिन सर्व सुलभजल, तिल, यत्र, कुश, अक्षत, इध, पुष्प आदि से उनका श्राद्ध संपन्न किया जाता है. इसके लिए कर्मकांड में कुछ विधान निश्चित है.
श्राद्ध का महत्व :धर्मशास्त्रों में उल्लेखित मर्यादाओं के अनुसार मनुष्य जन्म लेते ही ऋषि ऋण, देव ऋण और पितृ ऋण से ऋणी बन जाता है. ब्रह्म पुराण के अनुसार पितरों का ऋण श्राद्ध द्वारा चुकाया जाता है.
श्राद्ध कितने प्रकार के होते हैं :पंचांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू कहते हैं कि धर्मशास्त्र निर्णय सिन्धु में 12 प्रकार के श्राद्ध बतलाए गए हैं. नित्ययाद नैमित्तिकश्राद्ध, काम्य श्राद्ध, वृद्धिवाद सग्निश्राद्ध, पार्वणश्राद्ध, गोष्ठी श्राद्ध, शुद्धर्थ श्राद्ध तीर्थश्राद्ध, यात्रार्थ श्राद्ध और पुष्ट्यर्थ श्राद्ध. किराडू कहते हैं कि वर्ष भर में श्राद्ध दो बार आता है. एक व्यक्ति की मृत्यु तिथि पर, जिसे पद्म पुराण आदि में एकोपदिष्ट श्राद्ध कहते हैं. दूसरा श्राद्ध पितृ पक्ष में आता है, जिसे पार्वण श्राद्ध कहते हैं.
क्या है श्राद्ध की महिमा :भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक के पक्ष में पितरों के प्रति उनकी संतुष्टि के उद्देश्य के लिए गरुड़ पुराण अनुसार श्रद्धापूर्वक श्राद्ध, तर्पण, पिण्डदान, पितृयज्ञ ब्राह्मण भोजन आदि श्रेष्ठ कर्म किए जाते हैं, जिससे पितर प्रसन्न होकर मनुष्यों को आयु, यश, पुत्र, कीर्ति, पुष्टि वैभव, भुख- धन-धान्य प्रदान करते हैं.
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श्राद्ध के अधिकारी कौन होते हैं :किराडू कहते हैं कि विष्णुपुराण, गरुड़ पुराण के अनुसार श्राद्ध करने का अधिकार केवल पुत्र को होता है, लेकिन पौत्र या प्रपौत्र भी श्राद्ध कर्म कर सकते हैं. यदि पुत्र न हो तो पुत्री का पुत्र यानी दोहिता या परिवार का कोई उत्तराधिकारी भी श्राद्ध कर सकता है. जिस व्यक्ति के अनेक पुत्र हों तो उन पुत्रों में से केवल ज्येष्ठ (बड़ा) पुत्र को श्राद्ध करना चाहिए.
जानें वर्जित है श्राद्धकर्त्ता के लिए :जो श्राद्ध करने के अधिकारी हैं, उन्हें संपूर्ण पितृ पक्ष में सौर कर्म नहीं करना चाहिए. व्रत उपवास करना चाहिए. ब्रह्मचर्य धर्म का पालन करना चाहिए. श्राद्ध करने के बाद ही अन्न ग्रहण करना चाहिए. इस दौरान तेल नहीं लगाना चाहिए और दूसरे का अन्न नहीं खाना चाहिए.
श्राद्ध कहां करना चाहिए :सबसे पवित्र स्थान गया तीर्थ है. इसके अलावा काठियावाड़ का सिद्धपुर, हरिद्वार, कुरुक्षेत्र और अन्य पवित्र नदियों पर भी श्राद्ध तर्पण व पिंडदान का अत्यधिक महत्व है.
तीर्थराज मचकुंड पर पितरों का तर्पण : धौलपुर में 11 बजकर 44 मिनट पर भाद्रपद की पूर्णिमा लगने पर पितृ पक्ष की शुरुआत हो गई है. ऐतिहासिक तीर्थराज मचकुंड एवं जिले की सभी पवित्र नदियों पर लोगों ने आस्था पूर्वक पितरों का तर्पण किया. 2 अक्टूबर तक पितृ पक्ष चलेगा, तब तक लोगों के मांगलिक कार्यक्रम भी बंद रहेंगे. आचार्य राजेश शास्त्री ने बताया कि हिंदू संस्कृति में श्राद्ध पक्ष का विशेष महत्व है, जो भाद्र मास शुक्ल पक्ष पूर्णिमा से शुरू होता है और अश्विन मास की अमावस्या तक चलता है. उन्होंने बताया मंगलवार को 11:44 पर पूर्णिमा की शुरुआत हुई है. पूर्णिमा लगते ही पितृ पक्ष की शुरुआत हो गई. उन्होंने बताया कि पितृपक्ष में विभिन्न तिथियों में पूर्वजों को प्रतिदिन जल तर्पण करते हुए पूर्वजों की पुण्यतिथि वाले दिन श्राद्ध करने का प्रावधान है. इसी को लेकर मंगलवार से शुरू हुए श्राद्ध पक्ष में जलाशयों और नदियों के किनारे परिवार के लोग पहुंचकर पूर्वजों को जल तर्पण कर रहे हैं.