कुल्लू: पूर्वजों को समर्पित पितृपक्ष भाद्रपद पूर्णिमा को 17 सितंबर से शुरू हो रहा है. इस दौरान लोग पूर्वजों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करते हैं. पितृ पक्ष के 16 दिन पितरों को तृप्त करने और उन्हें प्रसन्न करने के लिए होते हैं. माना जाता है कि 16 दिनों तक पितर धरती पर विचरण करते हैं. अपने पितरों की शांति के लिए लोग कई तरह की पूजा-पाठ और श्राद्ध आदि भी करते हैं.
पितरों के लिए किए गए पूजा-पाठ के दौरान कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए, नहीं तो पितृ खुश होने की बजाय नाराज भी हो सकते हैं. इससे पितृ दोष लगा सकता है. आचार्य दीप कुमार ने बताया कि,'पितृपक्ष हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से शुरू होगा. यह 15 दिनों तक चलेगा और अमावस्या के दिन पितृपक्ष का समापन होगा. ऐसा कहा जाता है कि इस दौरान पितर कौवे के रूप में आकर धरती पर विचरण करते हैं और अपने वंश को भी याद करते हैं. ऐसे में पितृपक्ष के दौरान कुछ बातों का खास ख्याल रखना चाहिए.'
आचार्य दीप कुमार का कहना है कि, 'पितृपक्ष के दौरान पूरे 15 दिनों तक घर में सात्विक माहौल होना चाहिए. घर में मांसाहारी भोजन नहीं बनना चाहिए. इन दिनों अपने घर में लहसुन और प्याज का सेवन बिल्कुल ना करें. पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म करने वाले व्यक्ति को पूरे 15 दिनों तक बाल और नाखून नहीं कटवाने चाहिए. साथ ही ब्रह्मचर्य का भी पालन करना चाहिए, ताकि पितृ प्रसन्न हो सकें. पितृपक्ष के दौरान पूर्वज पक्षी के रूप में भी धरती पर आते हैं. इसलिए पक्षियों का अनादर नहीं करना चाहिए. ऐसा करने से पितर नाराज हो जाते हैं. पितृपक्ष में पशु पक्षियों की सेवा करने का भी विधान शास्त्रों में लिखा गया है.'
आचार्य दीप कुमार ने कहा कि,'इस पक्ष के दौरान शास्त्रों में कुछ शाकाहारी चीजों के खाने पर भी रोक लगाई गई है. घर में लौकी, खीरा, चना, जीरा और सरसों का साग भी नहीं खाना चाहिए. पितृ पक्ष में किसी भी तरह के मांगलिक कार्य नहीं करने चाहिए. इसके अलावा शादी, मुंडन, सगाई और गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्य भी पितृपक्ष में वर्जित माने गए हैं. पितृपक्ष के दौरान शोक का माहौल होता है. इसलिए इन दिनों कोई भी शुभ कार्य करना अशुभ माना जाता है.'
पितरों का तर्पण