पन्ना: अपने बेशकीमती हीरों के लिए विख्यात पन्ना में हीरे की खदान और मुफ्त के हीरे का इतिहास रोचक है. पन्ना रियासत के तृतीय नरेश सभा सिंह जू देव के हुकुम से पन्ना स्थित धर्म कुंड में पहली हीरे की खदान लगाई गई थी, जहां पर आज धर्मसागर तालाब स्थित है. इतिहासकार सूर्यभान सिंह परमार बताते हैं, ''तालाब के बीच में मौजूद मंदिर में धर्म कुंड नामक स्थान स्थित था, जहां हीरे की खदान लगाई गई थी. वहीं पर पहला हीरा प्राप्त हुआ, जिसके बाद वहां पर मंदिर बनवाया गया. इसके बाद महाराजा सभा सिंह जू देव ने हुक्म दिया कि जनता हीरे की खदान लगाना चाहे तो यहां पर लगा सकती है और मुफ्त में हीरे ले सकती है.''
महाराज ने खोल दिए थे खजाने के द्वार
महाराज के आदेश के बाद सैकड़ों और हजारों की तादाद में लोगों ने इस स्थान के अगल-बगल हीरे की खदान खोदी और उन्हें भी हीरे प्राप्त हुए. महाराजा सभा सिंह जू देव द्वारा रियासत में आदेश जारी करवाया गया कि दो कैरेट से अधिक के हीरे राजकोष में जमा होंगे और 2 कैरेट से कम वजन के हीरे खुले बाजार में व्यक्ति खुद बेच सकता है. इसके अलावा दो कैरेट से अधिक के हीरों को राजकोष में जमा कराने के बाद महाराज द्वारा उन लोगों को इनाम जिया जाता था. मुफ्त में हीरे प्राप्त करने का ये आदेश 1742 से फरवरी 1948 तक देश आजाद होने के बाद अंतिम शासक यादवेंद्र सिंह महाराज के समय तक लागू रहा है. इसके बाद सन 1961 में शासकीय हीरा कार्यालय की स्थापना हुई.
धर्म कुंड और हीरे की खदान
जहां आज वर्तमान में धर्म सागर तालाब स्थित है वहां पर पूर्व में घनघोर जंगल हुआ करता था एवं धर्म कुंड के पास छोटा मंदिर बना हुआ था. उसी कुंड के पास पहले हीरे की खदान खोदी गई थी. महाराजा छत्रसाल के गुरु महामती 1008 प्राणनाथ ने महाराजा छत्रसाल को पन्ना में हीरे होने की बात कही थी. उस समय महाराजा छत्रसाल युद्ध में अधिक व्यस्त रहे क्योंकि कभी मुघल सेना उनके पीछे तो कभी वे मुघल सेना के पीछे रहे. द्वितीय नरेश हृदय शाह भी युद्ध में व्यस्त रहे जिसके बाद तीसरे राजा सभा सिंह ने पहली हीरे की खदान धर्म कुंड के पास खोदी गई और फिर हीरे मिलनी की शुरुआत हुई.