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खुलेआम हीरे बेचने लगा था पूरा गांव, रातों-रात खुल गई थी पन्ना के लोगों की किस्मत

देश-दुनिया में हीरों के लिए विख्यात पन्ना में 1742 में खोजा गया था पहला हीरा, ऐसे शुरू हुई थी हीरा खदान

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : 4 hours ago

Updated : 3 hours ago

FREE DIAMONDS IN PANNA
धर्म कुंड और हीरे की खदान (Etv Bharat)

पन्ना: अपने बेशकीमती हीरों के लिए विख्यात पन्ना में हीरे की खदान और मुफ्त के हीरे का इतिहास रोचक है. पन्ना रियासत के तृतीय नरेश सभा सिंह जू देव के हुकुम से पन्ना स्थित धर्म कुंड में पहली हीरे की खदान लगाई गई थी, जहां पर आज धर्मसागर तालाब स्थित है. इतिहासकार सूर्यभान सिंह परमार बताते हैं, ''तालाब के बीच में मौजूद मंदिर में धर्म कुंड नामक स्थान स्थित था, जहां हीरे की खदान लगाई गई थी. वहीं पर पहला हीरा प्राप्त हुआ, जिसके बाद वहां पर मंदिर बनवाया गया. इसके बाद महाराजा सभा सिंह जू देव ने हुक्म दिया कि जनता हीरे की खदान लगाना चाहे तो यहां पर लगा सकती है और मुफ्त में हीरे ले सकती है.''

जिस जगह पर पहला हीरा मिला था, वहां बनाया गया था शिवमंदिर (Etv Bharat)

महाराज ने खोल दिए थे खजाने के द्वार

महाराज के आदेश के बाद सैकड़ों और हजारों की तादाद में लोगों ने इस स्थान के अगल-बगल हीरे की खदान खोदी और उन्हें भी हीरे प्राप्त हुए. महाराजा सभा सिंह जू देव द्वारा रियासत में आदेश जारी करवाया गया कि दो कैरेट से अधिक के हीरे राजकोष में जमा होंगे और 2 कैरेट से कम वजन के हीरे खुले बाजार में व्यक्ति खुद बेच सकता है. इसके अलावा दो कैरेट से अधिक के हीरों को राजकोष में जमा कराने के बाद महाराज द्वारा उन लोगों को इनाम जिया जाता था. मुफ्त में हीरे प्राप्त करने का ये आदेश 1742 से फरवरी 1948 तक देश आजाद होने के बाद अंतिम शासक यादवेंद्र सिंह महाराज के समय तक लागू रहा है. इसके बाद सन 1961 में शासकीय हीरा कार्यालय की स्थापना हुई.

पन्ना की हीरा खदानों की जानकारी देते इतिहासकार (Etv Bharat)

धर्म कुंड और हीरे की खदान

जहां आज वर्तमान में धर्म सागर तालाब स्थित है वहां पर पूर्व में घनघोर जंगल हुआ करता था एवं धर्म कुंड के पास छोटा मंदिर बना हुआ था. उसी कुंड के पास पहले हीरे की खदान खोदी गई थी. महाराजा छत्रसाल के गुरु महामती 1008 प्राणनाथ ने महाराजा छत्रसाल को पन्ना में हीरे होने की बात कही थी. उस समय महाराजा छत्रसाल युद्ध में अधिक व्यस्त रहे क्योंकि कभी मुघल सेना उनके पीछे तो कभी वे मुघल सेना के पीछे रहे. द्वितीय नरेश हृदय शाह भी युद्ध में व्यस्त रहे जिसके बाद तीसरे राजा सभा सिंह ने पहली हीरे की खदान धर्म कुंड के पास खोदी गई और फिर हीरे मिलनी की शुरुआत हुई.

तालाब के पहले यहां होती थीं हीरे की खदानें (Etv Bharat)

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अधिक खदानें खुदने से बन गया तालाब

इतिहासकार सूर्यभान सिंह आगे बताते हैं, '' धर्म कुंड के पास कई खदान खुद गई और वहां पर तालाब जैसा स्वरूप बन गया. फिर मंत्रियों ने महाराज सभा सिंह जू देव से निवेदन किया कि यहां पर तालाब के लिए मेड डलवा दी जाए, जिससे यहां पर विशाल तालाब निर्मित हो जाए. राजा ने ऐसा ही करवाया और फिर धर्म कुंड के पास एक शिव मंदिर का निर्माण कराया गया जो, आज भी तालाब के बीच में स्थित है और यहां प्राचीन शिवलिंग मौजूद है.''

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