नई दिल्ली:दिल्ली की सरकारी बसों में बस मार्शलों की तैनाती को लेकर सरकार और विपक्ष में तकरार बढ़ गई है. इस संबंध में शनिवार को मुख्यमंत्री, उपराज्यपाल से हुई मुलाकात के बाद भी बात नहीं बन पाई. विधानसभा में नेता विपक्ष विजेंद्र गुप्ता ने इसे लेकर मुख्यमंत्री को ज्ञापन दिया है और कहा है कि सरकार ने इन्हें हटाने के जो आदेश जारी किए थे, उसे वापस ले और इनकी फिर से बहाली की जाए.
नेता विपक्ष विजेंद्र गुप्ता के नेतृत्व में भाजपा विधायक दल ने शनिवार मुख्यमंत्री आतिशी से मिलकर दिल्ली के उन 10 हजार बस मार्शलों को, जिन्हें केजरीवाल के आदेश पर पिछले साल नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया था, उन्हें नौकरी पर फिर से बहाल करने और नियमित करने के लिए एक ज्ञापन सौंपा. उन्होंने कहा कि डीटीसी के 10 हजार बस मार्शलों को पिछले साल 11 अक्टूबर, 2023 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के निर्देश पर नौकरी से बिना कारण बताए हटा दिया गया था. सबसे चिंताजनक बात यह है कि उन्हें नौकरी से हटाने से पहले पांच-छह महीने तक का वेतन ही नहीं दिया गया, जो अभी एक साल बीतने के बाद भी पेंडिंग है. इसके कारण इन मार्शलों का परिवार भारी आर्थिक तंगी से जूझ रहा है.
जानबूझकर दिया राजनीतिक रंग: विजेंद्र गुप्ता ने आश्चर्य जताते हुए कहा कि, इन गरीब मार्शलों का वेतन रोकने का कारण समझ से बाहर है, क्योंकि इनका वेतन देने का अधिकार तत्कालीन वित्त मंत्री आतिशी के अधिकार क्षेत्र में था. लेकिन उन्होंने जानबूझकर इस मुद्दे को राजनीतिक रंग देते हुए इससे संबंधित फाइल उपराज्यपाल को भेज दी, जिसपर उपराज्यपाल ने यह स्पष्ट रूप से लिखा कि यह विषय संबंधित मंत्री के अधिकार क्षेत्र में है और इसका निर्णय उनके द्वारा ही लिया जाना है. चूंकि आम आदमी पार्टी क्योंकि हर चीज को राजनीतिक रंग देने में माहिर है, इसीलिए इन्होंने इन 10 हजार मार्शलों का वेतन रोक दिया और फिर पांच-छह महीने बाद मुख्यमंत्री केजरीवाल के निर्देश पर नौकरी से बाहर कर दिया.
सरकार ने नहीं की कार्रवाई: उन्होंने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि मुख्यमंत्री के साथ हुई बैठक में सरकार की तरफ से असहयोग और नकारात्मक रवैया सामने आया, जो कि बहुत ही दु:ख का विषय है. भाजपा इन मार्शलों के साथ है, इसीलिए भाजपा विधायकों की ओर से विधानसभा में इन्हें नौकरी पर बहाल करने और इन्हें नियमित करने का प्रस्ताव रखा गया था और सदन में पारित भी किया गया था. इसके बाद की कार्रवाई दिल्ली सरकार को करनी थी, जिसके पास इस पर कैबिनेट नोट तैयार करने और उसको कैबिनेट से अप्रूव करवाने की जिम्मेदारी थी, लेकिन सरकार ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की.