गयाः बिहार के गया में अफीम की खेती पिछले तीन दशक से ज्यादा समय से हो रही है लेकिन अब तक प्रशासन की ओर से इसपर रोक नहीं लगायी गई. अफीम की फसल नष्ट करने के नाम पर उत्पाद विभाग की ओर से मात्र खानापूरी की जा रही है. यही कारण है कि पिछले तीन दशक से अनाज उपजने के बदले खेत में जहर की खेती हो रही है.
गया में अफीम की खेती, नक्सलियों का डेंजर कनेक्शन!: गया के ज्यादातर अफीम की खेती नक्सल इलाके में होती है. सूत्रों के अनुसार इसमें माफिया और नक्सली की मिलीभगत रहती है. हैरानी तो इस बात की है कि अफीम का फसल नष्ट करने के बाद भी दोगुणी खेती की जा रही है. प्रशासन ने पिछले साल 1382 एकड़ में अफीम को नष्ट किया था. इस साल 2053 एकड़ में खेती को नष्ट किया गया इसके बावजूद हजारों एकड़ में अब भी फसल लगी है.
क्यों नहीं लग पा रही रोक? : आखिर में प्रशासन इसपर रोक लगाने में कामयाब क्यों नहीं होता है? सूत्रों से तो यह भी खबर मिली है कि इसमें प्रशासन की भी मिलीभगत रहती है. यह कारण है कि गया में अफीम की खेती फल-फूल रहा है. प्रशासन कार्रवाई के नाम पर खानापूर्ति कर लेती है ताकि रिकॉर्ड में दर्ज किया सके कि हमने कार्रवाई की है. इसके बदले उनकी मोटी कमायी भी होती है. माफियाओं से सांठगांठ भी है.
बॉर्डर इलाके में खेतीः बता दें कि ज्यादातर इसकी खेती बॉर्डर इलाके में की जाती है. गया से सटे झारखंड के चतरा और हजारीबाग के बॉर्डर पर इसका लगातार विस्तार हो रहा है. हैरानी की बात है कि यह खेती रैयती के साथ साथ सरकारी जमीन में भी की जाती है. खासकर जंगल इलाकों को साफ कर इसकी खेती की जाती है. गया में उपजने वाले अफीम की तस्करी देश के कई राज्यों तक होती है, जिसमें हरियाणा, पंजाब, कश्मीर, राजस्थान आदि राज्य शामिल हैं.
'तीन महीने से चल रहा अभियान': गया प्रशासन के अनुसार पिछले साल 5 दिसंबर से अभियान शुरू किया गया था. 3 महीने में कई एकड़ भूमि में लगे अफीम को नष्ट किया जा चुका है, लेकिन अब तक पूरी तरह से अफीम की खेती को नष्ट नहीं किया गया है. ऑपरेशन में नारकोटिक्स, वन विभाग, उत्पाद विभाग, सुरक्षा बाल, गया पुलिस बल लगे हुए हैं. हर साल अफीम की फसल को नष्ट किए जाने का दावा किया जाता है लेकिन बड़ा सवाल है कि नष्ट होने के बावजूद हर साल क्यों फसल लगायी जाती है.