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13 अखाड़ों में केवल महानिर्वाणी ही करता दो धर्म ध्वजा की स्थापना, जानें इसके पीछे क्या है इतिहास? - PRAYAGRAJ MAHAKAMBH 2025

महानिर्वाणी अखाड़े ने की धर्म ध्वजा की स्थापना, अखाड़े के सभी संत महंत महामंडलेश्वर रहे मौजूद

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अखाड़े के साधु संतों ने विधी विधान के साथ किया धर्म ध्वाज स्थापित (Photo Credit; ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : 10 hours ago

Updated : 9 hours ago

प्रयागराज:महाकुंभ 2025 शुरू होने से पहले प्रयागराज कुंभ मेला क्षेत्र में शिविर लगाने से पहले सभी 13 अखाड़ों की ओर से धर्म ध्वजा की स्थापना की जा रही है. इसी क्रम में रविवार को महानिर्वाणी अखाड़े की धर्म ध्वजा स्थापित की गई. श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी के शिवार में धर्म ध्वजा की स्थापना पूरे विधि विधान के साथ शुभ मुहूर्त में किया गया.

अखाड़े के सचिव महंत यमुना पूरी ने बताया कि ये ध्वजा महानिर्वाणी अखाड़े के इष्ट देव भगवान कपिल महामुनि को समर्पित है. धर्म ध्वजा की स्थापना महाकुंभ के दौरान अखाड़े की परंपरा और श्रद्धा का प्रतीक है. ये धर्म ध्वजा ये संकेत देती है कि अखाड़े में अब अन्न क्षेत्र और भोजन प्रसाद की शुरुआत हो चुकी है. धर्म ध्वजा की स्थापना से पहले धर्म दंड की छाल हटाई गई है. इसके बाद उसे सनातन धर्म के प्रतीक गेरू और रस्सी से सजाया गया . ये ध्वजा करीब 52 हाथ (78 फीट) ऊंची है, जो अखाड़े की 52 मढ़ियों और 52 शक्तिपीठों का प्रतीक है. विधिवत पूजा और मंत्रोच्चार के बीच इस ध्वजा को अखाड़े में स्थापित किया गया.

श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी की धर्म ध्वजा स्थापित (Video Credit; ETV Bharat)

यमुना पूरी ने बताया कि महानिर्वाणी अखाड़े की 2 जनवरी को पेशवाई निकाली जाएगी. जिसमें नागा संन्यासी, महंत, श्री महंत, मंडलेश्वर और महामंडलेश्वर भव्य शोभायात्रा के साथ छावनी में प्रवेश करेंगे. इस दौरान अखाड़े में धार्मिक अनुष्ठान, तप और जप का क्रम शुरू होगा. महाकुंभ 2025 के इस महापर्व में धर्म और परंपरा की ध्वजा के साथ अखाड़े का ये आयोजन श्रद्धालुओं के लिए विशेष आस्था और प्रेरणा का केंद्र बना हुआ है.

सबसे बड़ी बात ये है कि दो धर्म ध्वजा लगाई जाती है जो किसी दूसरे अखाड़े में नहीं लगाई जाती है. महंत यमुना पूरी जी का कहना है कि हमारे यहां पर्व ध्वजा लगाई जाती है इसके पीछे का एक इतिहास है कि जब मुगलों की ओर से हमारे इस पर्व को प्रभावित किया गया था तो सभी नागा संन्यासियों ने मिलकर शास्त्र नहीं शस्त्र के माध्यम से मुगलों का सामना करके इस पर्व को शुरू कराया था. तब से लेकर आज तक ये ध्वज साथ में लगाई जाती है ताकि ये याद रहे की चाहे जितना भी दिक्कतों सामना करने पड़े लेकिन सनातन धर्म को पीछे नहीं होने देंगे.

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