लखनऊ : राजकीय होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज एवं चिकित्सालय में हजारों की संख्या में मरीज इलाज करने के लिए पहुंच रहे हैं. कोरोना से पहले यहां मरीजों की संख्या कम होती थी, लेकिन कोरोना काल के बाद लोगों का विश्वास दोबारा होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति पर बढ़ा है. अब तो आलम यह है कि यहां पर सुबह से दोपहर 3 बजे तक हजारों मरीज रोजाना इलाज करने के लिए पहुंच रहे हैं. अपने आप में यह एक बड़ा आंकड़ा है.
अस्पताल में बढ़ी मरीजों की संख्या :राजकीय होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज की प्रिंसिपल डॉ. विजय पुष्कर ने बताया कि अस्पताल में इन दिनों काफी ज्यादा भीड़ हो रही है. अस्पताल की कुछ ओपीडी ऐसी हैं, जहां पर हमेशा भीड़ होती है. जिसमें चर्म रोग विभाग, गठिया रोग विभाग व मानसिक रोग विभाग शामिल है. उन्होंने कहा कि एक दौर ऐसा था, जब किसी भी विधा में लोगों ने इलाज नहीं लिया. सिर्फ आयुष पर लोगों ने विश्वास रखा. कहीं न कहीं यह लोगों का विश्वास ही है, जो काफी ज्यादा बढ़ा है. उन्होंने बताया कि रोजाना डेढ़ हजार से अधिक मरीज इलाज करने के लिए आते हैं. मरीज अच्छा फीडबैक देकर जाते हैं.
मरीज को आराम, हमें मिलता है सुकून :उन्होंने कहा कि हमें उस वक्त बहुत सुकून मिलता है, जब मरीज को आराम मिलता है और वह यह बोलकर जाता है कि वह बिल्कुल ठीक है. इस समय जिस तरह से परिवेश बदल रहा है. समय बदल रहा है. लोगों को अपने करियर की चिंता सता रही है. किसी को डिप्रेशन हो रहा है तो किसी को एंजायटी हो रही है. ऐसे दौर में लोग होम्योपैथिक में इलाज करने के लिए आ रहे हैं और बिल्कुल ठीक होकर वह वापस लौट रहे हैं. हालांकि, होम्योपैथिक में हमेशा से मानसिक रोग विभाग का इलाज रहा है. लेकिन, लोगों में जागरूकता की कमी रही है. लोग हर चीज को जल्दी से जल्दी हासिल करना चाहते हैं, फिर चाहे वह कोई चीज हो या फिर शरीर का कष्ट दूर करना हो. लोगों को इस बात का जरूर ध्यान देना चाहिए कि एलोपैथिक दवाओं का दुष्प्रभाव पड़ता है, वहीं होम्योपैथिक की दवा का कोई भी दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है. थोड़ा समय जरूर लगता है, लेकिन होम्योपैथिक दवा जड़ से बीमारी को समाप्त करती है.
'लड़ाई-झगड़े नोकझोंक से बचें' :उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में इन मरीजों को खुश रहने की आदत डालनी होगी, ताकि यह मरीज बीमारी से उभर सकें. खुश रहने के लिए जरूरी है कि मरीज के दिमाग में ऐसी कोई भी बातें न चलें, जिससे मरीज की तबीयत और गंभीर हो सकती है. घर का एनवायरनमेंट अच्छा हो. लड़ाई-झगड़े नोकझोंक से बचें, क्योंकि जब घर में इस तरह का माहौल रहता है तो मरीज के मस्तिक में यही बातें घर बना लेती हैं. जिसके चलते वह अपनी बीमारी से तो परेशान रहता ही है और इसके साथ बाकी बातों को भी जोड़ता चलता है. दिमाग में सभी चीजें एक साथ चलने के बाद मरीज पूरी तरह से अवसाद से ग्रसित हो जाता है. और उसे ऐसा महसूस होने लगता है कि वह कभी ठीक हो पाएगा या नहीं या डिप्रेशन में चला जाता है. उसको लगने लगता है कि कुछ भी उसके साथ अच्छा नहीं हो रहा है. घर परिवार में अच्छा नहीं हो रहा है. इस तरह की भावनाएं नहीं आनी चाहिए.
मरीज इन बातों का रखें ध्यान |
- दिन की शुरुआत खुशी-खुशी करें. |
- बहुत जल्दी हताश न हों, छोटी बातों से खुश होना सीखें. |
- अधिक समय मोबाइल में न बिताकर बल्कि परिवार के बीच में बैठें और घर के सदस्यों से बातचीत करें. |
- अपनी दिनचर्या में व्यायाम और योगा को जरूर शामिल करें. |
- अच्छा और हेल्दी खाना खाएं, परिवार के साथ पिकनिक मनाने के लिए बाहर घूमने जाएं. |
- अगर घर में बच्चे हैं तो कुछ समय उनके साथ खेलने कूदने में बिताएं. |
- किसी भी बात को अधिक न सोचें, अगर आपके दिमाग में कोई बात चल रही है तो अपने परिजन या दोस्तों से बातों को शेयर करें. |
पहले कम थीं होम्योपैथिक की सीटें :उन्होंने कहा कि प्रदेश में पहले होम्योपैथिक की सीटें बहुत कम होती थीं. पहले से अब मैं बहुत बदलाव आया है. पहले कहीं पर 30 तो कहीं पर 40 सीटें होतीं थीं, लेकिन अब 90 सीटें हो गईं हैं, वहीं पीजी में 51 सीटें हो गईं हैं. दिन-ब-दिन यह सीटें और भी बढ़ रही हैं. लगातार आयुष अस्पतालों में बदलाव आ रहा है. इस दौरान उन्होंने कहा कि आज इस पदभार को संभाला है और देखा कि यहां पर क्या दुश्वारियां हैं. मरीज को कहां दिक्कत होती है. उन तमाम दिक्कतों को दूर करना सबसे बड़ी प्राथमिकता है. अभी हॉस्टल और कैंपस ओपीडी का काम प्रगति पर है, काम चल रहा है. उन्होंने कहा कि कोशिश पूरी यह है कि रिसर्च पर ज्यादा ध्यान दिया जाए और रिसर्च के क्षेत्र में भी राजकीय होम्योपैथिक चिकित्सालय एवं मेडिकल कॉलेज आगे बढ़ें.