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उत्तराखंड में गिर रहा मत प्रतिशत, चुनाव बहिष्कार ने बढ़ाई परेशानी, नाखुश लोग दबा रहे नोटा!

NOTA And Boycott in Lok Sabha Election at Uttarakhand विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले उत्तराखंड में खासकर पहाड़ी क्षेत्रों में मूलभूत सुविधाओं के लिए तरसती जनता की जब सारी उम्मीदें टूट जाती हैं तो उन्हें अपना मतदान करना भी व्यर्थ सा लगता है. यही वजह है कि जनता की जब सुनवाई नहीं होती है तो वो अपना पूरा गुस्सा मतदान के दौरान निकालती है. ऐसा ही उत्तराखंड में पिछले कुछ चुनाव में देखने को मिला है. जहां खिन्न आकर जनता ने नोटा का बटन दबाया है. इसके अलावा चुनाव बहिष्कार भी बड़ी चुनौती है. इतना ही नहीं वोट प्रतिशत में गिरावट आ रही है.

NOTA And Boycott in Lok Sabha Election at Uttarakhand
उत्तराखंड में गिर रहा मत प्रतिशत

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Mar 18, 2024, 7:56 PM IST

Updated : Mar 18, 2024, 10:51 PM IST

चुनाव बहिष्कार ने बढ़ाई परेशानी

देहरादून:लोकतंत्र की सबसे बड़ी पहचान वोटिंग होती है. जिसमें जनता को अपना नेता चुनने का अधिकार मिलता है, लेकिन ये नेता अपने वादों और दावों पर खरा नहीं उतर रहे हैं. यही वजह है कि नेताओं की झूठे वादों से आजिज आकर जनता को मजबूरन चुनाव का बहिष्कार करना पड़ रहा है. साथ ही नोटा दबा अपनी ताकत का एहसास भी जनता नेताओं को दिला रहे हैं. उत्तराखंड के पिछले लोकसभा चुनाव पर नजर डालें तो करीब 50 हजार लोगों ने नोटा दबाया था. इससे साफ जाहिर होता है कि जनता घोषणाओं का लबादा ओढ़े आने वाले नेताओं से खुश नहीं हैं.

लोकसभा चुनाव 2019 में 14 मतदान स्थल पर किसी ने नहीं डाला वोट:पिछले लोकसभा चुनाव 2019 पर नजर डालें तो कई ऐसे गांव थे, जहां पर लोगों ने सामूहिक रूप से चुनाव बहिष्कार का फैसला लिया. ग्रामीण क्षेत्रों में पोलिंग बूथ खाली नजर आए. 2019 के चुनाव में 14 मतदान स्थल ऐसे थे, जहां पर एक भी मतदाता वोट देने नहीं आया. यहां से ईवीएम मशीन भी खाली वापस आई.

'सड़क नहीं तो वोट नहीं' का नारा लेकर गरजे लोग

चुनाव का बहिष्कार करने वाले मतदान स्थलों में टिहरी में 2, चमोली में 3, नैनीताल में 1, बागेश्वर में 2, अल्मोड़ा में 1, चंपावत में 2 और पिथौरागढ़ में 3 इस तरह से 14 पोलिंग स्टेशन ऐसे थे. जहां पर तकरीबन 800 लोगों ने सामूहिक रूप से चुनाव का बहिष्कार किया. इतना ही नहीं लोकसभा चुनाव के बाद 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में भी कई इलाकों में लोगों ने मूलभूत और सुविधाओं के अभाव में चुनाव का बहिष्कार किया.

इस बार भी कई जगहों से चुनाव बहिष्कार की चेतावनी:चुनाव बहिष्कार की कहानी केवल इत्तेफाक नहीं है, बल्कि मूलभूत संसाधनों का मुंह ताकते मतदाता लगातार उत्तराखंड में ऐसा करते आ रहे हैं. इस बार भी जहां एक तरफ निर्वाचन आयोग और राजनीतिक दल एक बड़े महापर्व की तरह तैयारी में जुटे हुए हैं तो वहीं दूसरी तरफ मतदाताओं को भी लग रहा है कि चुनाव में अपने मत का प्रयोग न करके शायद वो किसी का ध्यान खींच पाए.

चुनाव बहिष्कार पर उतरे लोग

उत्तराखंड में इस वक्त टिहरी के मशहूर पर्यटक स्थल धनोल्टी के पास गोठ और खनेरी के ग्रामीण लंबे समय से सड़क की मांग कर रहे हैं, लेकिन आज तक मांग पूरी नहीं हुई. ग्रामीण 4 किमी पैदल दूरी और मरीजों को पगडंडी में ले जाने को मजबूर हैं, लेकिन अब ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि मांग पूरी नहीं हुई तो चुनाव का भी बहिष्कार करेंगे. इसके अलावा कर्णप्रयाग में किमोली पारतौली में भी ग्रामीण 'सड़क नहीं तो वोट नहीं' का नारा दे रहे हैं.

डोईवाला की 3 पंचायतों ने भी सड़क की मांग को लेकर चुनाव बहिष्कार की चेतावनी दी है. गैरसैंण समेत थराली में भी कई गांवों के लोग सड़क, बैली ब्रिज समेत अन्य मांगों को लेकर चुनाव बहिष्कार पर उतर आए हैं. पिथौरागढ़ के बेरीनाग क्षेत्र में ग्रामीण सड़क की स्वीकृति न मिलने से नाराज चल रहे हैं. इसके अलावा तमाम जगहों पर विभिन्न मांगों को लेकर लोगों ने चुनाव बहिष्कार का ऐलान किया है.

लोकसभा चुनाव 2019 में 50 हजार लोगों ने दबाया नोटा:केवल चुनाव बहिष्कार ही नहीं बल्कि नोटा (उपरोक्त में से कोई नहीं) का विकल्प भी लोगों के अंदर पनप रही खीज को बताता है. जिससे साबित होता है कि किस तरह से मतदाता का राजनीतिक दलों से भरोसा उठ चुका है. पिछले लोकसभा चुनाव 2019 के चुनाव परिणाम पर अगर बारीकी से नजर दौड़ाई जाए तो उत्तराखंड की पांचों लोकसभा सीटों पर तकरीबन 50 हजार लोगों ने नोटा (NOTA) का विकल्प चुना. जो साफतौर पर ये बताता है कि लोग किसी भी प्रत्याशी से खुश नहीं है.

किस लोकसभा सीट पर कितने लोगों ने दबाया नोटा-

  • टिहरी लोकसभा सीट पर 6,276 लोगों ने नोटा दबाया.
  • गढ़वाल लोकसभा सीट पर 12,276 लोगों ने नोटा दबाया.
  • अल्मोड़ा पिथौरागढ़ लोकसभा सीट पर 15,311लोगों ने नोटा दबाया.
  • नैनीताल उधमसिंह नगर लोकसभा सीट पर 10,608लोगों ने नोटा दबाया.
  • हरिद्वार लोकसभा सीट पर 6,281लोगों ने नोटा दबाया.
    लोकसभा चुनाव 2019 में नोटा

इस तरह से पिछले लोकसभा चुनाव में 50,752 लोगों ने नोटा का विकल्प चुना. यानी इससे साफ है कि चुनाव में उतरे प्रत्याशियों से मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा खुश नहीं था, लेकिन उसके बावजूद भी दोनों पार्टियों ने इस बार भी पिछले चुनाव में जीते हुए प्रत्याशियों फिर से मैदान में उतारा गया है. वहीं, राजनीतिक दलों का मतदाताओं के प्रति जवाबदेही का भी अंदाजा लगाया जा सकता है.

हर चुनाव में लगातार घट रहा मत प्रतिशत:चुनाव बहिष्कार और नोटा के अलावा मतदाताओं का चुनावी प्रक्रिया के प्रति रुझान का मतदान प्रतिशत से भी अंदाजा लगाया जा सकता है. उत्तराखंड में अगर विधानसभा चुनाव की बात करें तो 2012 के विधानसभा चुनाव में अब तक का सबसे अधिकतम मतदान प्रतिशत 66.85% रहा था. उसके बाद 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में हुए मतदान में 65.6% लोगों में वोट दिए.

वहीं, इसके बाद विधानसभा चुनाव 2022 में यह मतदान और कम होकर 65.4% ही रह गया. लोकसभा चुनाव की बात करें तो पिछले लोकसभा चुनाव 2019 में उत्तराखंड में 57.09% मतदान हुआ. इन आंकड़ों पर ओवरऑल नजर दौड़ाएं तो इससे साफ जाहिर होता है कि भले ही मतदाता बढ़े हों, लेकिन मतों का फीसदी घट रहा है. जबकि, जहां संचार के माध्यम बढ़ रहे हैं तो लोग ज्यादा शिक्षित भी हो रहे हैं. इसके अलावा तमाम जन जागरूकता के भी व्यापक साधन इस्तेमाल किए जा रहे हैं, लेकिन उसके बावजूद भी लोग कम मतदान कर रहे हैं.

असहाय हुआ निर्वाचन आयोग:उत्तराखंड में लगातार नोटा के बढ़ते आंकड़े और मतदान फीसदी में गिरावट पर उत्तराखंड के मुख्य निर्वाचन अधिकारी बीवीआरसी पुरुषोत्तम का कहना है कि उनकी पूरी कोशिश है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को मतदान के लिए प्रेरित किया जाए. उनको सुविधा दी जाए और पूरी तरह से जन जागरूकता अभियान चलाया जाए.

वहीं, चुनाव बहिष्कार के सवाल पर उन्होंने कहा कि उनकी ओर से लगातार लोगों को समझने का प्रयास किया जा रहा है कि उनकी जो समस्या है, उसका समाधान वोट न देना नहीं है, लेकिन आज जनता भी समझदार है. बरहाल, निर्वाचन आयोग की कोशिश है कि चुनाव बहिष्कार कर रहे लोगों की समस्याओं का किसी तरह से हल निकाल कर उन्हें मतदान करने के लिए मनाया जाए. हालांकि, मतदान के दिन क्या हालात होते हैं? यह देखने वाली बात होगी.

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Last Updated : Mar 18, 2024, 10:51 PM IST

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