देहरादून:लोकतंत्र की सबसे बड़ी पहचान वोटिंग होती है. जिसमें जनता को अपना नेता चुनने का अधिकार मिलता है, लेकिन ये नेता अपने वादों और दावों पर खरा नहीं उतर रहे हैं. यही वजह है कि नेताओं की झूठे वादों से आजिज आकर जनता को मजबूरन चुनाव का बहिष्कार करना पड़ रहा है. साथ ही नोटा दबा अपनी ताकत का एहसास भी जनता नेताओं को दिला रहे हैं. उत्तराखंड के पिछले लोकसभा चुनाव पर नजर डालें तो करीब 50 हजार लोगों ने नोटा दबाया था. इससे साफ जाहिर होता है कि जनता घोषणाओं का लबादा ओढ़े आने वाले नेताओं से खुश नहीं हैं.
लोकसभा चुनाव 2019 में 14 मतदान स्थल पर किसी ने नहीं डाला वोट:पिछले लोकसभा चुनाव 2019 पर नजर डालें तो कई ऐसे गांव थे, जहां पर लोगों ने सामूहिक रूप से चुनाव बहिष्कार का फैसला लिया. ग्रामीण क्षेत्रों में पोलिंग बूथ खाली नजर आए. 2019 के चुनाव में 14 मतदान स्थल ऐसे थे, जहां पर एक भी मतदाता वोट देने नहीं आया. यहां से ईवीएम मशीन भी खाली वापस आई.
चुनाव का बहिष्कार करने वाले मतदान स्थलों में टिहरी में 2, चमोली में 3, नैनीताल में 1, बागेश्वर में 2, अल्मोड़ा में 1, चंपावत में 2 और पिथौरागढ़ में 3 इस तरह से 14 पोलिंग स्टेशन ऐसे थे. जहां पर तकरीबन 800 लोगों ने सामूहिक रूप से चुनाव का बहिष्कार किया. इतना ही नहीं लोकसभा चुनाव के बाद 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में भी कई इलाकों में लोगों ने मूलभूत और सुविधाओं के अभाव में चुनाव का बहिष्कार किया.
इस बार भी कई जगहों से चुनाव बहिष्कार की चेतावनी:चुनाव बहिष्कार की कहानी केवल इत्तेफाक नहीं है, बल्कि मूलभूत संसाधनों का मुंह ताकते मतदाता लगातार उत्तराखंड में ऐसा करते आ रहे हैं. इस बार भी जहां एक तरफ निर्वाचन आयोग और राजनीतिक दल एक बड़े महापर्व की तरह तैयारी में जुटे हुए हैं तो वहीं दूसरी तरफ मतदाताओं को भी लग रहा है कि चुनाव में अपने मत का प्रयोग न करके शायद वो किसी का ध्यान खींच पाए.
उत्तराखंड में इस वक्त टिहरी के मशहूर पर्यटक स्थल धनोल्टी के पास गोठ और खनेरी के ग्रामीण लंबे समय से सड़क की मांग कर रहे हैं, लेकिन आज तक मांग पूरी नहीं हुई. ग्रामीण 4 किमी पैदल दूरी और मरीजों को पगडंडी में ले जाने को मजबूर हैं, लेकिन अब ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि मांग पूरी नहीं हुई तो चुनाव का भी बहिष्कार करेंगे. इसके अलावा कर्णप्रयाग में किमोली पारतौली में भी ग्रामीण 'सड़क नहीं तो वोट नहीं' का नारा दे रहे हैं.
डोईवाला की 3 पंचायतों ने भी सड़क की मांग को लेकर चुनाव बहिष्कार की चेतावनी दी है. गैरसैंण समेत थराली में भी कई गांवों के लोग सड़क, बैली ब्रिज समेत अन्य मांगों को लेकर चुनाव बहिष्कार पर उतर आए हैं. पिथौरागढ़ के बेरीनाग क्षेत्र में ग्रामीण सड़क की स्वीकृति न मिलने से नाराज चल रहे हैं. इसके अलावा तमाम जगहों पर विभिन्न मांगों को लेकर लोगों ने चुनाव बहिष्कार का ऐलान किया है.
लोकसभा चुनाव 2019 में 50 हजार लोगों ने दबाया नोटा:केवल चुनाव बहिष्कार ही नहीं बल्कि नोटा (उपरोक्त में से कोई नहीं) का विकल्प भी लोगों के अंदर पनप रही खीज को बताता है. जिससे साबित होता है कि किस तरह से मतदाता का राजनीतिक दलों से भरोसा उठ चुका है. पिछले लोकसभा चुनाव 2019 के चुनाव परिणाम पर अगर बारीकी से नजर दौड़ाई जाए तो उत्तराखंड की पांचों लोकसभा सीटों पर तकरीबन 50 हजार लोगों ने नोटा (NOTA) का विकल्प चुना. जो साफतौर पर ये बताता है कि लोग किसी भी प्रत्याशी से खुश नहीं है.