नीतीश का किला है नालंदा (ETV BHARAT) पटनाःजब भी नालंदा की बात आती है, दिलोदिमाग में एक ही नाम आता है मुख्यमंत्री नीतीश कुमार. दरअसल बिहार की सियासत में नालंदा और नीतीश एक-दूसरे की पहचान हैं. कहां तो यहां तक जाता है कि नालंदा अगर रोम है तो नीतीश कुमार उसके पोप हैं. नालंदा लोकसभा सीट का चुनावी इतिहास भी इस बात की बखूबी तस्दीक करता है.
नीतीश का अभेद्य किलाःनालंदा लोकसभा सीट को नीतीश का अभेद्य किला कहा जाता है. ऐसा क्यों कहा जाता है इसको समझने के लिए 1996 से लेकर 2019 तक के चुनावी इतिहास को जानने की जरूरत है. नालंदा लोकसभा सीट के चुनावी आंकड़ों की कहानी बता रही है कि 1996 से 2019 तक नालंदा में उसी ने बाजी मारी जिसके सिर पर नीतीश कुमार का हाथ रहा.
जॉर्ज फर्नांडिस की हैट्रिकः पार्टी कोई हो, नालंदा से जीत उसी की हुई जिसे नीतीश कुमार ने जिताना चाहा. इसके सबसे सटीक उदाहरण रहे जॉर्ज फर्नांडिस. देश के बड़े नेताओं में शुमार जॉर्ज फर्नांडिस को जब सुरक्षित सीट की तलाश थी तो नीतीश ने उन्हें नालंदा से लड़ाया और 1996 से 1999 तक हुए तीन चुनावों में जीत की हैट्रिक लगवाई.
नीतीश का किला है नालंदा (ETV BHARAT) 2004 में खुद नीतीश ने लहराई विजय पताकाः नालंदा में नीतीश नाम का सिक्का कैसे चलता है इसका सबसे बड़ा उदाहरण है 2004 का लोकसभा चुनाव. इस चुनाव में नालंदा लोकसभा सीट से नामांकन के बाद नीतीश ने नालंदा की धरती पर पैर तक नहीं रखा और बिना प्रचार किए ही विरोधियों पर भारी पड़े.
"नालंदा तो इनका घर है. नालंदा इनका क्षेत्र रहा है. वहां के लोगों ने इन्हें बहुत प्यार दिया है. वहां जब खुद लोकसभा का चुनाव लड़े थे तो वो उसमें गये भी नहीं और वहां के सारे लोगों ने बिना उनके गये उनको वोट दिया. जीतकर नालंदा से आए.नामांकन देकर आ गये और फिर नहीं गये."संजय गांधी, एमएलसी, जेडीयू
2006 के उपचुनाव में जीते रामस्वरूप प्रसादः 2005 के विधानसभा चुनाव में नीतीश के नेतृत्व में NDA ने बड़ी जीत दर्ज कर लालू एंड फैमिली को सत्ता से उखाड़ फेंका. नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने और लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया. उसके बाद 2006 में हुए उपचुनाव में जेडीयू के रामस्वरूप प्रसाद ने नालंदा से जीत दर्ज की
कौशलेंद्र लगा चुके हैं जीत की तिकड़ीःनीतीश का आशीर्वाद नालंदा में किसी को कितनी ऊंचाई प्रदान कर सकता है, उसके उदाहरण हैं कौशलेंद्र कुमार जो 2009, 2014 और 2019 में यहां से जीत की तिकड़ी लगा चुके हैं और अब जीत का चौका लगाने की तैयारी में जुटे हुए हैं.
नालंदा में कुल मतदाता (ETV BHARAT) मोदी लहर में भी नहीं हिला किलाः 2014 के लोकसभा चुनाव में जेडीयू ने खुद को NDA से अलग कर लिया था और बिहार में अकेले चुनाव लड़ा था. इस चुनाव में जेडीयू की बड़ी हार हुई थी लेकिन तब भी जेडीयू को बिहार में जो दो सीट मिली थीं उसमें पूर्णिया के अलावा दूसरी सीट नालंदा ही थी.
नीतीश ने बहाई विकास की गंगाः नालंदा में नीतीश कुमार को मिलनेवाले इस अपार समर्थन के पीछे विकास की वौ सौगात हैंं जिन्हे सीएम रहते नीतीश ने प्रदान की हैं.2005 में सीएम बनने के बाद नीतीश कुमार ने पूरे इलाके में विकास की गंगा बहाई है. लोग तो यहां तक कहने लगे थे कि नीतीश कुमार पटना की जगह नालंदा को बिहार की राजधानी बनाना चाहते हैं.
बोलता है नीतीश का कामः नालंदा में ओपन यूनिवर्सिटी, खेल विश्वविद्यालय, पावापुरी मेडिकल कॉलेज, डेंटल कॉलेज, उद्यान महाविद्यालय, बिहार पुलिस अकादमी, क्रिकेट स्टेडियम, कन्वेंशन हॉल, आयुर्वेद शोध संस्थान, शूटिंग रेंज, सीआरपीएफ कैंप, नेचर और जू सफारी, नया रोपवे जैसे कई काम नीतीश के नालंदा प्रेम की कहानी कहते हैं.
" नीतीश कुमार ने नालंदा के लिए बहुत काम किया है. वहां के लोगों को इसका लाभ मिल रहा है. इसके साथ नालंदा में जातीय समीकरण भी नीतीश कुमार के पक्ष में है क्योंकि नीतीश कुमार जिस लव-कुश की राजनीति करते रहे हैं, नालंदा में उसकी आबादी 36 फीसदी से भी अधिक है."नवल किशोर चौधरी, पूर्व प्राचार्य, पटना कॉलेज
नालंदा को है नीतीश पर भरोसाः जेडीयू नेताओं का दावा है कि नालंदा में इस बार भी जीत जेडीयू के कौशलेंद्र कुमार की ही होगी. पार्टी के नेताओं का कहना है कि "नालंदा की जनता को नीतीश पर आज भी वही पहले वाला भरोसा है और इस बार भी नीतीश कुमार के नाम पर कौशलेंद्र को वोट मिलेगा और जीत होगी."
'अब नहीं रहा नीतीश का जलवा': हालांकि नीतीश के विरोधियों का कहना है कि नालंदा में अब पहले वाली बात नहीं रही. आरजेडी के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी का दावा है कि "नालंदा सहित पूरे बिहार में अब तेजस्वी के नौकरी का शोर गूंज रहा है. 10 वर्षों के दौरान जनता को जो धोखा मिला है, उसका बदला लेने के लिए जनता तैयार है. 4 तारीख को नालंदा से महागठबंधन प्रत्याशी की भारी जीत होगी."
क्या नीतीश के किले में सेंध लगा पाएगा महागठबंधन ?: विरोधी ये जरूर दावा कर रहे हैं कि नालंदा में बदलाव होगा, लेकिन ये उतना आसान दिख नहीं रहा है. नालंदा के जातीय समीकरण के साथ-साथ नीतीश का नाम अभी भी नालंदा के नतीजों के निर्धारण में बड़ी भूमिका निभाएगा.
कौशलेंद्र बनाम संदीप सौरभः2024 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो जेडीयू ने जीत की हैट्रिक लगा चुके कौशलेंद्र कुमार पर फिर भरोसा जताया है तो महागठबंधन ने यहां से सीपीआईएमएल के संदीप सौरभ पर दांव खेला है. नालंदा लोकसभा सीट पर आखिरी चरण में 1 जून को वोटिंग होगी और 4 जून को नतीजे आएंगे.