जबलपुर: मध्य प्रदेश के कोटवार इस बार अपनी खरीफ की फसल सरकारी खरीद में नहीं बेच पाएंगे. मध्य प्रदेश के कोटवारों की जमीन जो पहले सेवा भूमि हुआ करती थी. उसकी जगह इस जमीन को अब नजूल घोषित कर दिया गया है. नजूल मतलब सरकारी जमीन पर पैदा किया हुआ अनाज सरकारी खरीद में बेचा नहीं जा सकता. जबलपुर में कोटवारों ने इस समस्या के समाधान के लिए जबलपुर कलेक्टर से आवाहन किया है.
कोटवारों के पास होती है 5 एकड़ जमीन
मध्य प्रदेश में लगभग 36500 कोटवार हैं. ग्राम कोटवार हर गांव में होता है. ग्राम कोटवार की नियुक्ति अंग्रेजों के शासनकाल से चली आ रही है. कोटवार गांव का चौकीदार होता है. नियम के मुताबिक कोटवार को गांव में आने वाले और जाने वाले हर आदमी का रिकॉर्ड और रजिस्टर रखना होता है. इसके साथ ही गांव में होने वाली हर गतिविधि को थाने में सूचित करना होता है. वहीं ग्राम कोटवार का उपयोग राजस्व विभाग मुनादी करवाने में भी करता है. कोटवारों को सरकार द्वारा 5 एकड़ तक सेवा भूमि दी गई है. हर गांव के कोटवर के पास 5 एकड़ तक जमीन होती है. जिसकी उपज का मालिक कोटवार होता है.
अभी तक यह जमीन राजस्व रिकॉर्ड में सेवा भूमि के नाम पर दर्ज थी, लेकिन सरकार ने कोटवारों की जमीन सरकारी घोषित करके उनके खसरों में नजूल दर्ज करवा दिया है.
नजूल में दिख रही कोटवारों की जमीन
जबलपुर में कोटवार संघ के अध्यक्ष नरेंद्र दहिया का कहना है कि 'इस बार जब धान की फसल का रजिस्ट्रेशन करवाने के लिए पहुंचे, तो उनका रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ, क्योंकि जब रिकॉर्ड चेक किया गया, तो उसमें उनकी जमीन नजूल में दिख रही है. नजूल की भूमिका में रजिस्ट्रेशन नहीं होता.' जबलपुर कोटवार संघ के सदस्य हरपाल चादर का कहना है कि 'उन्हें सरकार की ओर से ₹1000 का मानदेय मिलता है. बीते कुछ दिनों में कुछ गांव में सरकार ने जहां कोटवारों के पास जमीन नहीं थी, वहां उनका मानदेय बढ़ाकर ₹1500 कर दिया है. वहीं तत्कालीन शिवराज सरकार ने वादा किया था कि ग्राम कोटवारों को एक सिम दी जाएगी, जिससे वह गांव की सूचनाओं थाने तक पहुंचा पाएंगे, लेकिन उन्हें ऐसी सुविधा नहीं मिली.