भोपाल। कांग्रेस के दो दिग्गज राजनेता 2024 के लोकसभा चुनाव के साथ अपनी अब तक की सियासी पारी के सबसे मुश्किल इम्तेहान में हैं. इत्तेफाक ये है कि ये दोस्त भी हैं. एमपी में कांग्रेस की राजनीति में जिन नेताओं की मर्जी के बगैर पत्ता भी नहीं हिला, वो दो नेता अपनी जमीन बचाने के इम्तेहान में खड़े हैं. दिग्विजय सिंह अपने सियासी जीवन का कमोबेश आखिरी चुनाव लड़ रहे हैं. एमपी की राजगढ़ सीट से दिग्विजय सिंह लोकसभा उम्मीदवार हैं. कमलनाथ खुद तो छिंदवाड़ा के मैदान में नहीं हैं, लेकिन कांग्रेस के उम्मीदवार नकुलनाथ के साथ कमलनाथ भी अपने राजनीतिक जीवन का सबसे मुश्किल चुनाव देख रहे हैं. एक ऐसा चुनाव जिसमें मतदान की तारीख के बहुत पहले उनके सारे भरोसे के सिपहसालार उनका साथ छोड़कर जा चुके हैं.
2024 का चुनाव कमलनाथ की अग्निपरीक्षा
कमलनाथ की सियासी पारी ऐसे तो 2023 के विधानसभा चुनाव के नतीजों के साथ ही पूर्ण विराम पर आ गई, ऐसा मान लेना चाहिए. सन्यास का विधिवत एलान भले ना किया हो कमलनाथ ने लेकिन इसे राजनीतिक अवसान तो कहा ही जाएगा. अब कमलनाथ के सामने संघर्ष अपनी सियासी विरासत छिंदवाड़ा को जस का तस नकुलनाथ के हाथ में सौंपने का है, लेकिन जिस ढंग से छिंदवाड़ा में कमलनाथ के करीबियों में भगदड़ मची है. उसके बाद ये चुनाव कमलनाथ के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं. कांग्रेस जब पूरे प्रदेश में परफार्म नहीं कर पाई, उस दौर में भी छिंदवाड़ा की सातों विधानसभा सीटें कांग्रेस के पंजे का हाथ थामे रही. लेकिन जो भगदड़ मची उसमें कमलनाथ के बेहद करीबी दीपक सक्सेना से लेकर अमरवाड़ा विधानसभा से कांग्रेस के मजबूत विधायक कमलनाथ के सहयोगी कमलेश शाह ने भी पार्टी छोड़ दी.
वैसे तो पूरे एमपी में बीजेपी की न्यू ज्वाइनिंग टोली कांग्रेसियों को सदस्यता दिला रही है, लेकिन सबसे ज्यादा भर्तियां छिंदवाड़ा से हुई हैं. वरिष्ठ पत्रकार पवन देवलिया कहते हैं, 'छिंदवाड़ा से कमलनाथ को हटाने और कमल खिलाने बीजेपी काफी लंबे समय से लगी हुई है. पहले राष्ट्रीय नेताओं की वहां तैनाती की गई. फिर विधानसभा चुनाव के बाद तो पार्टी ने एकदम से इतना मैसिव कैम्पेन शुरु किया कि छिंदवाड़ा में कमलनाथ की जड़ें खोद डाली. सवाल ये है कि आखिर कमलनाथ का जोड़ इतना कमजोर कैसे था कि भरोसेमंद ही टूट गए.'
क्या इसके चलते कमलनाथ के करीबियों ने छोड़ी कांग्रेस
पवन देवलिया कहते हैं असल में खुद कमलनाथ के जब बीजेपी में आने की अटकलें तेज हुई, उसके बाद बाकी समर्थकों को भी समझ आने लगा कि भविष्य अंधकारमय है. यही वजह है कि बेहद करीबी दीपक सक्सेना से लेकर विधायक मेयर और समर्थक कार्यकर्ता भी बड़ी तादात में कमलनाथ को छोड़ कमल खिलाने दौड़ पड़े. ये पहला चुनाव है कि जब कमलनाथ भावुक होते सुनाई दिए. ये कहते सुनाई दिए कि उन्होंने अपनी जिंदगी के बेहतरीन 40 साल छिंदवाड़ा की सेवा में गुजार दिए.'