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सियासी मोर्चे पर कितने सफल रहे मोहन यादव?, क्या 'शिवराज सिंह' के आभामंडल को छोड़ा पीछे

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का 13 दिसंबर को 1 साल का कार्यकाल पूरा हो जाएगा. पढ़िए प्रतीक यादव की उनके कार्यकाल पर रिपोर्ट...

MOHAN YADAV 1 YEAR TENURE COMPLETE
मोहन यादव के कार्यकाल का एक साल (ETV Bharat)

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : 9 hours ago

Updated : 8 hours ago

Mohan Yadav Govt One Year: (प्रतीक यादव)तारीख 11 दिसंबर साल 2023, मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी की अप्रत्याशित बंपर जीत के बाद मुख्यमंत्री के चयन का दिन. बीच के करीब डेढ़ साल छोड़ दिए जाए तो लगातार 17 साल तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान की दावेदारी कमजोर पड़ चुकी थी. लेकिन फिर भी वे मुख्यमंत्री की रेस में सबसे प्रबल दावेदार थे. इसके अलावा विधानसभा चुनाव में उतारे गए तत्कालीन केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, जलशक्ति मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल, कैलाश विजयवर्गीय, प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के नामों पर भी अटकलबाजी चल रही थी.

11 दिसंबर को मुख्यमंत्री चुनने के लिए विधायक दल की बैठक बुलाई गई थी. जहां सीएम का चुनाव पर्ची के आधार पर होना था. पर्यवेक्षक बनकर आए हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने जब पर्ची निकाली तो नाम देख सब हैरान रह गए. पर्ची बैठक की चौथी पंक्ति में बैठ उज्जैन दक्षिण से विधायक डॉ. मोहन यादव के नाम की थी. शायद किसी को जरा भी इसका अंदाजा नहीं था, कम से कम आम जनता को तो नहीं ही था.

मोहन सरकार द्वारा शुरू की गई महत्वपूर्ण योजनाएं (ETV Bharat)

दो दिन बाद 13 दिसंबर को मोहन यादव ने मध्य प्रदेश के 19वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली और इसी के साथ मामा यानी शिवराज सिंह चौहान का एमपी के सीएम के रूप में एक युग का अंत हो गया और मोहन यादव के साथ प्रदेश के नए युग की शुरुआत हुई. 3 बार के विधायक मोहन यादव के कंधों पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी आ गई. हालांकि वे शिवराज सरकार में उच्च शिक्षा मंत्री रह चुके थे तो उनके पास सरकार के अंदर रहकर सरकार चलाने का थोड़ा बहुत अनुभव तो था.

सियासी मोर्चे पर सफल हुए मोहन यादव

अब मोहन यादव पर पार्टी आलाकमान द्वारा उनके ऊपर दिखाए गए इतने बड़े विश्वास को सही साबित करने का दबाव था. चंद महीने बाद ही लोकसभा चुनाव के रूप में उनके सामने एक बड़ी चुनौती आने वाली थी. एमपी की 29 लोकसभा सीटों में से बीजेपी के खाते में 28 सीटें थी और उनके सामने इस प्रदर्शन को बरकरार रखने का दबाव था.

लेकिन डॉ. यादव की राजनीतिक समझ और कुशल नेतृत्व के चलते बीजेपी ने मध्य प्रदेश में क्लीन स्वीप कर दिया. इसके साथ ही उन्होंने वो भी कर दिखाया जो पिछले 27 सालों में नहीं हुआ था. नाथ परिवार और कांग्रेस का गढ़ माने जाने वाली छिंदवाड़ा सीट पर भी भाजपा ने अपना कब्जा जमा लिया था. इसके बाद साथी और विरोधी भी उनकी कार्यकुशलता के कायल हो गए.

मोहन यादव ने शपथ लेने के बाद प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात की थी (ETV Bharat)

लोकसभा चुनाव के दौरान मोहन बीजेपी के स्टार प्रचारकों की लिस्ट में शामिल थे और उन्होंने एमपी के अलावा उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड समेत कई राज्यों में बीजेपी प्रत्याशियों के लिए वोट मांगा था. मोहन यादव की पार्टी में लोकप्रियता या कद का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि हरियाणा में बीजेपी विधायक दल का नेता चुनने के लिए गृहमंत्री अमित शाह के साथ मोहन यादव को पर्यवेक्षक बनाकर भेजा गया था.

'अभी कोई धारणा बनाना जल्दबाजी होगी'

वरिष्ठ पत्रकार योगीराज योगेश कहते हैं "वैसे देखा जाए तो मोहन यादव का एक साल का कार्यकाल सफल ही कहा जाएगा, क्योंकि शिवराज सिंह चौहान के आभामंडल से निकलना किसी भी नेता के लिए इतना आसान नहीं था. लेकिन मोहन यादव ने अपने एक साल के कार्यकाल में अलग लकीर खींची है. मोहन यादव पर दिल्ली का जो ठप्पा लगा है पर्ची वाला, इस छवि को कुछ हद तक मोहन यादव ने बदला है. लेकिन किसी नए मुख्यमंत्री के लिए पहले साल का आकलन करना और उसके बारे में धारणा बनाना जल्दबाजी होगी."

प्रदेश के हित के लिए कई बड़े फैसले

सियासी मोर्चे पर अपने आप को साबित करने के अलावा डॉ. यादव ने प्रदेश को विकास के रास्ते पर ले जाने के लिए कई उल्लेखनीय कार्य किया. उन्होंने 20 साल से चले आ रहे मध्य प्रदेश और राजस्थान के बीच चंबल-कालीसिंध और पार्वती नदी के पानी के विवाद को अपनी कार्यकुशलता से सुलझा दिया. मध्य प्रदेश सिविल सेवाओं में महिलाओं को 35 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला मोहन सरकार का ऐतिहासिक फैसला था.

अपने 1 साल के कार्यकाल में मोहन यादव ने अफसरशाही पर भी लगाम लगाया. इस दौरान उन्होंने कई ऐसे कड़े फैसले लिए जिसकी चर्चा प्रदेश ही नहीं देश में भी हुई, चाहे वो गुना में हुए बड़े बस हादसे के बाद कलेक्टर, एसपी और परिवहन आयुक्त को उनकी जिम्मेदारी से हटाना हो या फिर चाहे, शाजापुर कलेक्टर, सागर कलेक्टर, देवास में एसडीएम, के खिलाफ कड़ा फैसला लेना जैसे तमाम फैसले क्यों न हो.

'सरकार का फोकस युवाओं को रोजगार उपलब्ध करवाना'

बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता पंकज चतुर्वेदी कहते हैं "मुख्यमंत्री मोहन यादव का एक साल का कार्यकाल उपलब्धियों से भरा है. प्रदेश में रीजनल इंडस्ट्री कॉक्लेव की श्रृंखला आयोजित कर मोहन सरकार ने निवेश के नए द्वार खोले हैं. सरकार का फोकस युवाओं को रोजगार उपलब्ध करवाना है. इस दिशा में सरकार आगे बढ़ रही है."

कई आरोपों का भी सामना करना पड़ा

शिवराज सिंह चौहान की महत्वाकांक्षी योजना 'लाडली बहना' को लेकर विपक्ष ने कई बार आरोप लगाया कि मोहन सरकार में ये योजना बंद हो जाएगी, लेकिन उन्होंने न सिर्फ इस योजना को जारी रखा बल्कि त्योहारों पर महिलाओं के खाते में अतिरिक्त पैसे भी भेजे. इसके अलावा मोहन यादव ने अपने कार्यकाल में कई महत्वाकांक्षी योजनाएं भी शुरू की. आदिवासियों के लिए बजट सत्र 2024-25 में 40 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया. इससे जनजातीय विकास के लिए कई स्कीम चलाई जा रही हैं.

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उन्होंने पिछली सरकार की कई कल्याणकारी योजनाओं को आगे ही नहीं बढ़ाया बल्कि कई नई योजनाओं की शुरुआत भी की. कुल मिलाकर डॉ. मोहन यादव ने एक साल में अपने आप को साबित किया है, चाहे वो सियासी मोर्चा हो या सरकार चलाने की कुशलता हो. हालांकि, कई मोर्चों पर वे थोड़े कमजोर भी पड़े हैं. उनके ऊपर कई आरोप भी लगे हैं, जिसमें से अपने गृह जिले उज्जैन पर ज्यादा ध्यान देने का भी आरोप लग चुका है.

सरकार का अभी एक साल ही हुआ है. सामने कई चुनौतियां भी हैं जिससे आने वाले समय में पार पाना होगा. अगले 4 साल में वे खुद को और प्रदेश को किस तरह आगे ले जाते हैं ये आने वाला वक्त ही बताएगा.

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