पटना :फिल्म का नाम- बलम परदेसिया, गाने के बोल- 'गोरकी पतरकी रे मारे गुलेल बा जियरा उड़ी-उड़ी जाए.' आज भी जब यह गाना बजता है तो हम-आप अलग ही दुनिया में खो जाते हैं. गाने के बोल गुनगुनाने लगते हैं. रफी साहब का जादू ही कुछ ऐसा था, जिस गाने को अपनी आवाज दे दें, वह सदाबहार हो जाता था.
मोहम्मद रफी ने पूरे भोजपुरी अंदाज में यह गाना गाया था. ऐसा लगता है जैसे मोहम्मद रफी ने भोजपुरी भाषा में गाना नहीं गया है बल्कि भोजपुरी भाषा को अपने अंदर उस अदा को आत्मसात किया. भोजपुरी गाना सुनने के बाद लगता है कि मोहम्मद रफी साहब ने भोजपुरी संगीत या यूं कहें की भोजपुरी मिट्टी को अपने अंदर समाहित करके ही गाना गाया.
बिहार से रहा जुड़ाव : मखमली आवाज के जादूगर मो. रफी की आज 100वीं जयंती है. देश के कला प्रेमी सुरों के जादूगर को अपने-अपने अंदाज में याद कर रहा है. मोहम्मद रफी बिहार में भी आकर कई संगीत कार्यक्रमों में शिरकत किए थे. मशहूर आरजे शशि ने मो. रफी की यादों को ईटीवी भारत के साथ साझा किए.
रेडियो जॉकी शशि कहते हैं कि मोहम्मद रफी संगीत के ऐसे जादूगर थे जिनका गाना लोगों को एहसास के रूप में बदल जाता था. हर भाषा में गाना गाने के लिए मोहम्मद रफी इस अंदाज से साधना करते थे. मोहम्मद रफी ऐसे गायक थे जो एक जगह के होते हुए भी पूरे भारत के हर संस्कृति को अपने अंदर आत्मसात किया और इस अंदाज में गाना गाया.
''मोहम्मद रफी का गाना 'एहसान तेरा होगा मुझ पर' एक ऐसा गाना है, जिसको सुनने के बाद लगता है कि इस गाने का एक-एक शब्द लोगों के एहसास से जुड़ा हुआ है. भारतीय फिल्म संगीत क्षेत्र में हकीकत में मोहम्मद रफी नगीना थे.''- रेडियो जॉकी शशि
'सामाजिक एकता के प्रतीक थे रफी साहब' : जाने माने फिल्म समीक्षक विनोद अनुपम ने ईटीवी भारत से फोन पर बातचीत में कहा कि पूरा देश मोहम्मद रफी की शताब्दी जयंती मना रहा है. मोहम्मद रफी भारतीय सामाजिक एकता के ताने-बाने के प्रतीक के रूप में है. हिंदी फिल्मों में जितने भजन गाए गए, उसमें अधिकांश भजन मोहम्मद रफी ने गाए हैं.
''रफी साहब के गाने में ऐसी विविधता थी कि हर कलाकार के अनुरूप वह गाना गाते थे. दिलीप कुमार के लिए मोहम्मद रफी के गाए हुए हर गाने को देखकर यह लगता है कि उन गानों को दिलीप कुमार ने गया है. फास्ट म्यूजिक हो या क्लासिकल म्यूजिक अथवा शास्त्रीय संगीत हो सबों पर समान रूप से मोहम्मद रफी की पकड़ थी. उन्होंने अपनी आवाज से गीतों को अमर बना दिया.''- विनोद अनुपम, फिल्म समीक्षक