नई दिल्ली:दिल्ली के मेडिकल कॉलेज में अगले शैक्षणिक सत्र से यूजी और पीजी में दाखिला लेने वाले मेडिकल छात्रों को 15 से 20 लाख रुपये का बॉन्ड भरना होगा. इसके साथ ही उन्हें अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद एक साल तक दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में सेवाएं देनी होगी. उन्हें इस सेवा के लिए निर्धारित मानदेय भी मिलेगा. लेकिन, इस बॉन्ड पॉलिसी को लेकर कुछ मेडिकल छात्र असहमति जता रहे हैं, जबकि कुछ सहमति भी जाता रहे हैं.
मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस तृतीय वर्ष के छात्र हर्षवर्धन ने कहा कि दिल्ली के अस्पतालों में पहले से ही डॉक्टरों की अच्छी संख्या है. मुझे नहीं लगता कि सरकार को इससे ज्यादा फायदा होगा. यहां के मेडिकल कॉलेज से पढ़ाई करने के बाद अधिकतर छात्र यहां के अस्पतालों में सेवाएं देने के लिए तैयार रहते हैं और सेवाएं देते भी हैं.
हर्षवर्धन ने आगे कहा कि बॉन्ड की नीति लागू करने से अब कहीं न कहीं दिल्ली के मेडिकल कॉलेज में दाखिला लेने से मेडिकल छात्र बचेंगे. दिल्ली में अभी तक कोई बॉन्ड पॉलिसी लागू नहीं थी, इसलिए अधिक से अधिक मेडिकल छात्रों की पसंद दिल्ली के मेडिकल कॉलेज दाखिले के लिए होते थे. क्योंकि दिल्ली में पहले से ही बड़ी संख्या में सरकारी अस्पतालों में रेजिडेंट डॉक्टर काम कर रहे हैं. इसलिए यहां बॉन्ड पॉलिसी की जरूरत नहीं थी. बॉन्ड पॉलिसी की जरूरत उन राज्य में होती है, जहां मेडिकल स्टूडेंट की संख्या कम होती है जहां सुविधाओं की कमी होती है.
काम करने का मिलेगा अनुभवः मौलाना एमबीबीएस तृतीय वर्ष की छात्रा कीर्ति ने कहा कि यह बॉन्ड पॉलिसी पहले से लागू होती तो हमें भी इसका फायदा मिलता. यह बॉन्ड पॉलिसी अच्छा कदम है. इससे दिल्ली के अस्पतालों में काम करके अच्छा अनुभव मिलेगा. यहां मरीजों का ज्यादा लोड होता है. ऐसे में अनुभव लेने का ज्यादा मौका मिलता है. बस इस बॉन्ड का एक यही नुकसान है कि अगर कोई मेडिकल स्टूडेंट पढ़ाई पूरी करने के बाद दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में काम नहीं करना चाहते तो उन्हें बॉन्ड के पैसे देने पड़ेंगे. अगले साल से यह पॉलिसी लागू होने से हमें या मौजूदा स्टूडेंट को इसका लाभ नहीं मिलेगा. बता दें कि दिल्ली के सरकारी अस्पताल में काम करने पर जूनियर रेजिडेंट को करीब 90 हजार रुपए मानदेय मिलता है.