भरतपुर.वीरता और पराक्रम के लिए दुनिया भर में पहचाने जाने वाले महाराजा सूरजमल सांप्रदायिक समन्वय के युग पुरुष थे. देश की समृद्धि और सुखद भविष्य के लिए हिंदू-मुस्लिम एकता के वे बड़े समर्थक थे. महाराजा सूरजमल ने जहां मुस्लिम आक्रांता अहमद शाह अब्दाली से पराजित होकर आए हजारों मराठा सैनिकों को अतिथि सत्कार के साथ शरण दी, वहीं पेशवा बाजीराव की मुस्लिम पत्नी के घायल पुत्र की मृत्यु होने पर उसकी कब्र बनाई. साथ ही उस पर एक मस्जिद का भी निर्माण कराया. उस महान योद्धा का जिक्र आज हम इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि आज उन साम्प्रदायिक सद्भाव की प्रतिमूर्ति की 317वीं जयंती है.
पराजित मराठाओं को दी थी शरण : इतिहासकार रामवीर सिंह वर्मा बताता हैं कि 14 मई 1761 ई. के पानीपत युद्ध में मराठा मुस्लिम आक्रांता अहमद शाह अब्दाली से बुरी तरह पराजित हो गए. करीब 40 हजार घायल मराठा सैनिक भरतपुर रियासत में पहुंचे, जिन्हें महाराजा सूरजमल ने 10 दिन तक अपने किले में शरण दी. इतना ही नहीं, घायलों के उपचार और अतिथियों पर लाखों रुपए भी महाराजा ने खर्च किए. स्वस्थ होने पर सभी सैनिकों को उन्होंने सकुशल विदा किया. महाराजा सूरजमल मराठाओं को शरण देते समय अब्दाली की शत्रुता से भी नहीं डरे थे.
बनवाई थी कब्र और मस्जिद : इतिहासकार रामवीर सिंह वर्मा ने बताया कि पेशवा बाजीराव की मुस्लिम प्रेमिका का बेटा शमशेर बहादुर घायल अवस्था में कुम्हेर किले में पहुंचा था. महाराजा सूरजमल ने उसकी देखभाल व उपचार कराया, लेकिन वो जीवित नहीं बचा. शमशेर बहादुर की मौत होने पर महाराजा सूरजमल ने उसका मुस्लिम रीति-रिवाज से अंतिम क्रिया की. उसे कब्र में दफनाया और उस पर एक मस्जिद का निर्माण भी कराया, जो कि सांप्रदायिक सौहार्द्र का अनूठा उदाहरण है.