रोहतास: जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर पायलट बाबा का 86 वर्ष में निधन हो गया. दअरसल जिले के नोखा के बिशनपुर में 15 जुलाई 1938 को पायलट बाबा का जन्म हुआ था. उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव से हुई थी, बाद में उनके मेधा बुद्धि के कारण उनका चयन भारतीय वायुसेना में हो गया. बताया जाता है कि सन 1957 में भारतीय वायुसेना में कमीशन प्राप्त करने के बाद उन्होंने लड़ाकू विमान की ट्रेनिंग ली थी.
भारतीय वायुसेना में रहे विंग कमांडर : पायलट बाबा, जिनका असली नाम कपिल सिंह था वो भारतीय वायुसेना के पूर्व विंग कमांडर थे. जिन्होंने 1965 और 1971 के युद्धों में अपनी सेवा दी थी, अपने करियर के मध्य में उन्होंने आध्यात्मिक जीवन अपना लिया था. वो समाधि की अपनी महारत के लिए एक वैश्विक आध्यात्मिक लीडर बन गए. 1962 से लेकर 1971 तक उन्हें तीन युद्ध लड़ने का मौका मिला. ऐसा दावा किया जाता है कि 1962 के भारत-चीन युद्ध में अब लड़ाकू विमान उड़ाया करते थे.
33 साल में रिटायरमेंट, फिर आध्यात्म का रास्ता : बताया जाता है कि साल 1957 में कमीशन हासिल करने के बाद कपिल सिंह (पायलट बाबा) कई बार मिशन पर गए. पायलट बाबा को कई बड़ी लड़ाइयों के दौरान उनके साहस के लिए याद किया जाता है. इस बीच, अचानक सिर्फ 33 साल की उम्र में उन्होंने अपनी नौकरी से रिटायरमेंट का फैसला लिया और संन्यासियों कि तरह जीवन जीने लगे. अब सवाल ये कि एक कुशल पायलट अचानक सन्यासी क्यों बन गया?.
जब अपने गुरू से मिले पायलट बाबा! :दरअसल, बताया जाता है कि 1962 के युद्ध के दौरान जब लड़ाकू विमान का रेडियो संपर्क टूट गया और उनका विमान दिशाहीन हो गया. ऐसे में उन पर गुरु की विशेष कृपा हुई. लोग बताते है कि खुद हरि बाबा उनके कॉपिट में आए और उनके विमान की लैंडिंग में मदद की. और पायलट बाबा अपने गुरु हरि बाबा की वजह से जीवित बच गए. उसके बाद उनके जीवन में विराग आ गया. दावा किया जाता है कि उन्होंने हिमालय में बरसों तपस्या की, जिस दौरान उन्हें समाधि कला का ज्ञान हो गया और वो भारत के अलग-अलग क्षेत्र में भू समाधि लेने के कारण वह काफी चर्चित हो गए.
कई देशों में ली भू समाधि : इसके बाद उनकी ख्याति विदेश तक पहुंच गई. दुनिया के अलग-अलग देशों में उन्होंने कई दिनों तक भू समाधि लेकर लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया. साथ ही एयर टाइट ग्लास के अंदर खुद को बंद कर भी वह मृत्यु की अवस्था के करीब पहुंचकर लौटने की कला में पारंगत हो गए. जैसे-जैसे उनकी ख्याति फैलने लगी वो साधु-संतों के बीच भी काफी चर्चित हो गए.
कई देशों में पायलट बाबा के आश्रम : उनके क्रियाकलापों को देखते हुए जूना अखाड़ा ने उन्हें महामंडलेश्वर की उपाधि दी. बता दें कि शंकराचार्य के बाद महामंडलेश्वर सबसे बड़ी उपाधि होती है. जो साधु-संतों और कई मठों के स्वामी होने के बाद ही प्राप्त होती है. उनके भारत के अलावा दुनिया के अलग-अलग देश में कई आश्रम है. भारत में हरिद्वार, उत्तरकाशी, नैनीताल तथा सासाराम में इनका आश्रम है. साथ ही नेपाल, जापान, सोवियत संघ सहित कई देशों में उनके आश्रम में हजारों अनुयाई रहते हैं.
पायलट बाबा ने लिखी कई धार्मिक पुस्तकें: दुनिया के अलग-अलग देश में उन्होंने सनातन धर्म के प्रचार प्रसार के लिए बहुत काम किया है. जापान में हिंदू धर्म के प्रचार प्रसार के लिए उन्होंने मठ और आश्रम का गठन किया. जहां हजारों लोग आज हिंदू धर्म को मानते और पूजा अर्चना करते हैं. पायलट बाबा आश्रम के बीरेंद्र बताते है कि पायलट बाबा आध्यात्मिक गुरु होने के साथ-साथ एक प्रसिद्ध लेखक भी थे. उन्होंने कई धार्मिक पुस्तकों के अलावा यात्रा वृतांत भी लिखा. उनकी प्रकाशित पुस्तक कई खंडों में है.
"दुनिया के अलग-अलग देशों में उनके द्वारा लिखित पुस्तक की बिक्री होती है. उनकी पुस्तक कैलाश मानसरोवर, ज्ञान के मोती,हिमालय के रहस्यों की खोज, अंतर यात्रा- द इनर जर्नी, आप से स्वयं की तीर्थ यात्रा, 'हिमालय कह रहा है' आदि पुस्तके काफी चर्चित हैं. इसके अलावा उन्होंने कई लेख तथा यात्रा वृतांत भी लिखी है. जिसका प्रकाशन नहीं हो सका है."-बीरेंद्र, अनुयाई
चर्चा में रही पीएम के साथ वाली तस्वीर: वहीं सिद्धनाथ बताते है कि उनके नाम से उनके गांव बिशनपुर में भी एक्सिस शिक्षण संस्थान स्थापित है. इसके अलावा कई शिक्षण संस्थान को स्थापित करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है. बता दें कि हाल के दिनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनकी तस्वीर काफी चर्चित रही. जिसमें पीएम झुक कर उन्हें प्रणाम कर रहे हैं और वह उन्हें आशीर्वाद देते नजर आ रहे हैं.