नारायणपुर: छत्तीसगढ़ के बस्तर की संस्कृति सबसे अनूठी और विशेष होती है. बस्तर में दंतेश्वरी मां की पूजा होती है. दंतेश्वरी मां के अन्य रूप मावली माता की पूजा नारायणपुर में हुई. पूजा और आराधना के इस रूप की शुरुआत मड़ई मेले से हुई और इसका दौर रविवार को खत्म हुआ. नारायणपुर मे मावली माता की पूजा के साथ मड़ई मेले में बस्तर की संस्कृति की झलक भी देखने को मिली.
क्या है मावली मेले का पौराणिक महत्व ?: प्राचीन काल में बस्तर के तत्कालीन राजा अन्नमदेव के दौरान पूर्व बस्तर रियासत को चक्रकोट के नाम से जाना जाता था. उस समय चक्रकोट की आराध्य देवी माता मावली हुआ करती थी. माता को मणिकेश्वरी नाम से जाना जाता था. माता माणिकेश्वरी का संक्षिप्त नाम ही माता मावली है. मावली शब्द संस्कृत के मौली धातु से आया है. जिसका शाब्दिक अर्थ मूल में होता है.
माता मावली की पूजा: बस्तर के नारायणपुर क्षेत्र में आदिवासियों की जनजातियों में अबूझमाड़िया, मुरिया और हल्बा जनजाति निवास करती है. माता मावली इन जनजातियों के इष्ट देव के रूप में विद्यमान हैं. जनजाति वर्ग माता मावली की पूजा करती है. आदिवासियों के जीवनयापन, परंपरा, संस्कृति और मान्यता में समानता है जो इन्हें आपस में जोड़ती है. इनके जीवन में एकरूपता है. यही वजह है कि दशहरा पर्व के दौरान भी विश्व प्रसिद्ध मावली मड़ई में बस्तर के संपूर्ण क्षेत्र का आदिवासी समाज जुटता है. बस्तर मे लगने वाले सभी मेले आदिवासी समाज को समझने का माध्यम होते हैं. यही वजह है कि इन मेलों में कई शोधार्थी भी पहुंचते हैं.
मावली मेला खत्म (ETV BHARAT)
मावली माता की पूजा (ETV BHARAT)
मावली मेला में भक्तों का सैलाब (ETV BHARAT)
84 परगना से पहुंचते हैं लोग: विश्व प्रसिद्ध बस्तर मेले में भी कई परगना से लोग पहुंचते हैं. इस क्षेत्र में नौ परगना प्रत्येक में लगभग तीस से चालीस गांव आते हैं. नारायणपुर के दक्षिण पश्चिम में करगाल परगना है. इसी के अंतर्गत यहां मड़ई लगती है. करगाल परगना के दक्षिण में बडदाल परगना है जो बहुत ही दुर्गम क्षेत्र है. नारायणपुर के उत्तर में दुगाल परगना और इसके बाद कोलोर परगना के कुछ गांव हैं. इसके अलावा गढ़चिरौली तक जेटिन परगना के गांव आते हैं. नारायणपुर के उत्तर पूर्व में 12 जोड़ीयान परगना हैं. इन सभी परगना से लोग मेले में पहुंचते हैं. पूर्व में बेनूर परगना, दक्षिण पूर्व में छोटेडोंगर और इसके बाद के सभी गांव ओरछा परगना के अंतर्गत आते हैं
जब सभी परगना से आदिवासी समाज के लोग जुटने शुरू हो जाते हैं तब मड़ई मेले की शुरुआत होती है. इस बार रविवार को मड़ई मेले की समाप्ति हुई. बीते बुधवार से यह मेला शुरू हुआ था. मावली मड़ई मेले में गढ़िया बाबा सांकर देव सब देवताओं के आगे चलते हैं. सांकर देव के आगमन तक सभी देवता उनकी प्रतीक्षा करते हैं.