बीकानेर : शारदीय नवरात्र में नौ दिनों तक देवी दुर्गा के अलग-अलग स्वरूप की पूजा होती है. साथ ही 10वें दिन यानी दशमी को दशांश हवन होता है. इसके अलावा विजयादशमी को ही नौ स्वरूपों से मिलकर प्रकट हुई मां अपराजिता की भी पूजा होती है. खैर, आप नहीं जानते होंगे कि क्यों इस दिन मां अपराजिता की पूजा होती है, चलिए आपको बताते हैं.
माता प्रदान करती हैं सिद्धियां :मनवांछित फल की कामना और सिद्धियों को प्राप्त करने के लिए मंगल जीवन की अभिलाषा से शारदीय नवरात्र में नौ दिन देवी के विभिन्न स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है. नौ दिन की पूजा-अर्चना के बाद विजयादशमी को दशांश हवन के साथ ही अनुष्ठान पूरा होता है. इस दिन माता अपराजिता की पूजा की जाती है. इससे प्रसन्न होकर देवी शक्ति और सिद्धियां प्रदान करती हैं.
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रावण वध से पहले भगवान राम ने की पूजा :पञ्चांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू ने बताया कि वैसे तो नाम से ही आभास हो जाता है कि अपराजिता का अर्थ है जिसकी कभी पराजय न हो. उन्होंने बताया कि शत्रु दमन, किसी प्रकार की अड़चन और वर्तमान चुनाव में विजय प्राप्त करने के उद्देश्य से भी मां अपराजिता की पूजा होती है. उन्होंने बताया कि सात्विक तरीके से षोडशोपचार के साथ देवी अपराजिता की पूजा करने का विशेष महत्व है. भगवान राम ने रावण का वध करने से पहले विजयादशमी के दिन देवी अपराजिता की पूजा की थी और रावण पर विजय प्राप्त की थी. इसका जिक्र मार्कंडेय पुराण, देवी भागवत में भी मिलता है.