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काशी में जय कन्हैया लाल की हाथी घोड़ा पालकी... के जयघोष के साथ निकली प्रभु जगन्नाथ की रथ यात्रा, 221 साल पुराना रथयात्रा मेला कल से - Jagannath Rath Yatra In kashi

काशी में शनिवार को प्रभु जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली (Jagannath Rath Yatra In kashi) गई. भारी भीड़ के बीच प्रभु जगन्नाथ अपनी बहन और भाई बलभद्र के साथ भक्तों के कंधे पर सवार होकर नगर भ्रमण के लिए पालकी में निकले.

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jul 6, 2024, 7:56 PM IST

काशी में निकली प्रभु जगन्नाथ की रथ यात्रा
काशी में निकली प्रभु जगन्नाथ की रथ यात्रा (फोटो क्रेडिट ; ETV bharat)

काशी में निकाली गई प्रभु जगन्नाथ की रथ यात्रा (वीडियो क्रेडिट : ETV bharat)

वाराणसी : बाबा भोलेनाथ की नगरी काशी में सैकड़ों वर्षों से प्रभु जगन्नाथ भक्तों के कंधे पर सवार होकर रथयात्रा से एक दिन पहले नगर भ्रमण पर निकलते हैं. शनिवार को इसी अद्भुत परंपरा का निर्वहन काशी में किया गया और भारी भीड़ के बीच प्रभु जगन्नाथ अपनी बहन और भाई बलभद्र के साथ भक्तों के कंधे पर सवार होकर नगर भ्रमण के लिए पालकी में निकले. यह परंपरा 222 वर्ष पुरानी है. पुरी की रथ यात्रा मेला 14 दिनों का होता है, जबकि काशी का मेला 3 दिन का होता है. इस मेले में भक्तों की लाखों की संख्या में भाग लेने की वजह से इसे 'लक्खा मेला' भी कहते हैं.

मान्यता है कि इस मेले से ही काशी में पर्व और त्योहारों की शुरुआत हो जाती है. काशी में जिस स्थान पर इस मेले का आयोजन किया जाता है, उस स्थान का नाम भी रथयात्रा है. भगवान शिव की नगरी में उनके आराध्य भगवान विष्णु के इस स्वरूप का दर्शन पाने के लिए भक्त सुबह से ही लाइन में खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार करते हैं. भगवान पालकी में बैठकर रथ में सवार होते हैं और 3 दिनों तक भ्रमण करते हैं. इसके बाद अपने बहन-भाई के साथ ससुराल जाते हैं. 7 जुलाई से शुरू होकर यह मेला 10 जुलाई तक चलेगा.

मेले के प्रधान पुजारी राधेश्याम पांडेय ने बताया कि जेष्ठ पूर्णिमा के दिन भक्त भगवान को खूब स्नान कराते हैं. इसकी वजह से भगवान बीमार हो जाते हैं. 14 दिनों तक भगवान का कपाट बंद हो जाता है. ऐसा भक्तों का भाव है कि भगवान को केवल परवल के जूस का भोग लगता है. इसके बाद भगवान ठीक होते हैं. शनिवार को भगवान पालकी में सवार होकर काशी भ्रमण पर निकले. भक्तों ने जय कन्हैया लाल की हाथी घोड़ा पालकी के जय घोष के साथ प्रभु को काशी भ्रमण करवाया.



मेले के प्रधान पुजारी राधेश्याम पांडेय ने बताया कि आज रात में प्रभु रथ पर सवार होंगे और कल सुबह मंगला आरती के साथ 3 दिन तक रथ में सवार होकर वो सभी काशीवासियों को दर्शन देंगे. आज से सैकड़ों वर्ष पहले पुरी के ही पुजारी ने मंदिर बनवाया था और इस मेले का शुभारंभ किया था. आज भी जगन्नाथपुरी से भगवान का विग्रह बनकर आता है.

भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा का आयोजन उड़ीसा स्थित पुरी में होता है. परंपरा के अनुसार, भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा तीनों को हिंदू कैलेंडर के अनुसार ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा के दिन (जिसे भगवान जगन्नाथ का जन्मदिन माना जाता है) स्नान यात्रा के दौरान सुगंधित जल से भरे 108 घड़ों से स्नान कराने के बाद वे बीमार पड़ जाते हैं. देवता एकांत में रहते हैं और भक्तों को 15 दिनों तक पवित्र त्रिदेवों के दर्शन की अनुमति नहीं होती है, जिसे 'अनासार' अवधि के रूप में जाना जाता है, जब 'दैतापति' नामक सेवकों के एक विशेष समूह द्वारा कुछ गुप्त अनुष्ठान किए जाते हैं. पवित्र भाई-बहनों को आमतौर पर आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां, फल आदि चढ़ाए जाते हैं. ताकि वे पवित्र स्नान के कारण होने वाले बुखार से जल्दी ठीक हो जाएं. पूरी तरह से ठीक होने के बाद देवता भक्तों को दर्शन देते हैं जिसे लोकप्रिय रूप से 'नव यौवन दर्शन' कहा जाता है जो आमतौर पर रथ यात्रा से एक दिन पहले मनाया जाता है.

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