नई दिल्ली: नाबालिग से रेप से जुड़े एक मामले में आरोपी को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली है. सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी शर्तों पर जमानत देने का आदेश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने 16 वर्षीय लड़की से रेप के आरोप का सामना कर रहे 18 वर्षीय लड़के को जमानत देते हुए कहा कि उसे पीड़ित लड़की के साथ किसी भी तरह से फिर से जुड़ने का प्रयास नहीं करना चाहिए, चाहे वह किसी उपकरण के माध्यम से हो या व्यक्तिगत रूप से.
न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति एन.के. सिंह की पीठ ने 4 अक्टूबर को पारित आदेश में कहा, 'रिकॉर्ड पर मौजूद तथ्यों पर विचार करते हुए हमारे विचार में जमानत का मामला बनता है.' जमानत याचिका मंजूर करते हुए पीठ ने कहा, 'अपीलकर्ता को जल्द संबंधित ट्रायल कोर्ट के समक्ष पेश किया जाएगा और ट्रायल कोर्ट उसे जमानत पर रिहा कर देगा, बशर्ते कि एफआईआर से उत्पन्न कार्यवाही में उसकी उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए वह ऐसी शर्तें लगाए जो वह उचित समझे.'
पीठ ने निर्देश दिया कि अपीलकर्ता को इस मामले की सुनवाई में पूर्ण सहयोग करना चाहिए तथा उसे किसी भी तरह से अपनी स्वतंत्रता का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए या गवाहों को किसी भी तरह से प्रभावित नहीं करना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, 'इसके अलावा अपीलकर्ता किसी भी तरह से पीड़ित लड़की से फिर से संपर्क करने का प्रयास नहीं करेगा, चाहे वह किसी उपकरण के माध्यम से हो या व्यक्तिगत रूप से. शर्तों का कोई भी उल्लंघन अपीलकर्ता को दी गई जमानत को रद्द कर देगा.
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता नमित सक्सेना ने दलील दी कि उनका मुवक्किल मई, 2024 से जेल में है जबकि वास्तव में अपराध के कथित तौर पर होने के समय उसकी उम्र केवल अठारह साल थी, जबकि पीड़िता की उम्र लगभग सोलह साल थी. सक्सेना ने जोर देकर कहा कि दोनों पक्षों के बीच सहमति से संबंध बने थे.
जिला नीम का थाना में अपीलकर्ता पर अप्रैल 2024 में पुलिस स्टेशन थोई में यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम समेत कई अन्य मामलों में मुकदमा दर्ज किया गया था. अपीलकर्ता को 8 मई 2024 को गिरफ्तार किया गया और 5 जून 2024 को POCSO कोर्ट में आरोपपत्र दाखिल किया गया. ट्रायल कोर्ट ने 25 जून, 2024 को उसकी जमानत याचिका खारिज कर दी.
अपीलकर्ता ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए राजस्थान उच्च न्यायालय का रुख किया. हाईकोर्ट ने 16 जुलाई, 2024 को याचिका खारिज कर दी. अपीलकर्ता ने हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. सक्सेना ने तर्क दिया कि इस मामले में बारह गवाहों से पूछताछ की जानी है.
इस मामले में मुकदमा लंबा चलेगा और इस तथ्य की पृष्ठभूमि में कि दोनों पक्ष आपसी सहमति से रिश्ते में थे, हाईकोर्ट और निचली अदालत द्वारा जमानत खारिज करने के आदेश को बरकरार रखना सही नहीं था. सक्सेना ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया कि उनके मुवक्किल को उन शर्तों के अधीन राहत दी जाए, जिनका वह पालन करेंगे.
सरकार के वकील ने तर्क दिया कि यह सहमति से संबंध बनाने का मामला नहीं है और वास्तव में पीड़िता केवल सोलह वर्ष की थी. उसे अपीलकर्ता द्वारा ले जाया गया और उसके साथ अपराध किए गए. हालांकि आरोपपत्र दाखिल किया गया है. सरकारी वकील ने आगे कहा कि अपीलकर्ता के खिलाफ अन्य आपराधिक मामले भी है.
इन अपराधों के मामले में न्यूनतम सजा सात साल है, लेकिन वह केवल कुछ महीनों के लिए जेल में रहा है और अपीलकर्ता को दोषी ठहराए जाने की पूरी संभावना है और इसलिए, इस मामले में कोई योग्यता नहीं है. सक्सेना ने अपीलकर्ता के लिए जमानत की मांग करते हुए तर्क दिया कि उनका मुवक्किल इस वर्ष की शुरुआत में 18 वर्ष का हो गया है और इस मामले का कलंक उसके भविष्य को खतरे में डाल देगा.