लखनऊ: राष्ट्रीय लोकदल के लिए यह लोकसभा चुनाव संजीवनी साबित हो सकता है. पार्टी इस बार लोकसभा में भी प्रतिनिधित्व हासिल कर सकती है. पिछले दो लोकसभा चुनाव में कुल 11 सीटों पर लड़ चुकी इस पार्टी को जीत का स्वाद चखने को नहीं मिला. 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन कर आठ सीटों पर चुनाव लड़ा और 2019 के लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन कर तीन सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन नतीजा सिफर ही रहा. अब 2024 के लोकसभा चुनाव में नए साथी भारतीय जनता पार्टी के साथ आरएलडी ने गठबंधन किया है और दो सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं. पार्टी का दावा है कि यह दोनों प्रत्याशी जीत के दावेदार हैं और जीत हासिल करेंगे. इस बार पार्टी को लोकसभा चुनाव में जीत का स्वाद जरूर चखने को मिलेगा. पार्टी लोकसभा में अपना प्रतिनिधित्व जरूर दर्ज कराएगी.
2019 में किया था सपा-बसपा से गठबंधन
राष्ट्रीय लोकदल ने 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन किया था. गठबंधन में राष्ट्रीय लोक दल के हिस्से तीन सीटें भी आई थीं, लेकिन इन तीनों सीटों पर आरएलडी का कोई उम्मीदवार जीत हासिल नहीं कर पाया था. पार्टी का 2014 का शून्य का क्रम 2019 में भी नहीं टूटा, लेकिन इस बार पार्टी के नेताओं को पूरी उम्मीद है कि भारतीय जनता पार्टी के साथ एनडीए गठबंधन में मिलीं दो सीटों पर प्रत्याशी जीत हासिल करने में कामयाब होंगे और लोकसभा चुनाव में इस बार पार्टी को प्रतिनिधित्व जरूर मिलेगा. लोकसभा चुनाव में जीतने के बाद आरएलडी सभी सदनों में हिस्सेदार हो जाएगी. आरएलडी की तरफ से बागपत और बिजनौर पर उम्मीदवार उतारे गए हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश को जाट और मुस्लिम बाहुल्य इलाका माना जाता है. इस बेल्ट में कुल 27 सीटें हैं. पिछले लोकसभा चुनाव की बात करें तो भारतीय जनता पार्टी ने अकेले 19 सीटों पर जीत हासिल की थीं, जबकि आठ सीटें महागठबंधन के हिस्से में आई थीं. चार पर समाजवादी पार्टी और चार पर बहुजन समाज पार्टी जीती थी, लेकिन आरएलडी के नसीब में जीत नहीं लिखी थी.
2019 में पिता और बेटे को भी मिली थी हार
2019 के लोकसभा चुनाव में आरएलडी ने जिन तीन सीटों पर चुनाव लड़ा था उनमें दूसरे नंबर पर आई थी. जयंत चौधरी खुद बागपत लोकसभा सीट से चुनाव लड़े थे लेकिन बीजेपी के डॉक्टर सतपाल मलिक ने उन्हें 23 हजार वोटो से हरा दिया था. मथुरा से पार्टी के कुंवर नरेंद्र सिंह को हेमामालिनी के हाथों हार मिली थी. मुजफ्फरनगर सीट से पहली बार अजीत सिंह चुनाव लड़े थे, लेकिन बीजेपी के संजीव बालियान ने उन्हें साढ़े छह हजार से अधिक मतों से मार दी थी. खास बातें ये भी है कि पिता और बेटे जयंत को कांग्रेस पार्टी ने समर्थन दिया था. बावजूद इसके जीत नहीं मिल पाई थी. पार्टी तीनों सीटों पर रनर ही रह गई.
2019 में वोट प्रतिशत तो बढ़ा पर नहीं मिली जीत
आरएलडी को 2014 के लोकसभा चुनाव में सिर्फ 0.9% वोट मिले थे तब समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का साथ मिला था, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा के साथ आने से आरएलडी का वोट प्रतिशत बढ़कर 1.7% हो गया था. 2014 का लोकसभा चुनाव आरएलडी ने कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ा था. आठ लोकसभा सीटों पर पार्टी ने प्रत्याशी उतारे थे, लेकिन जीत एक भी नहीं पाए. मथुरा से जयंत चौधरी को शिकस्त मिली थी. बागपत से चौधरी अजीत सिंह चुनाव हार गए थे. अमरोहा से राकेश टिकैत, बिजनौर से जयाप्रदा, बुलंदशहर से अंजू उर्फ मुस्कान, फतेहपुर सीकरी से अमर सिंह, हाथरस से निरंजन सिंह धनगर और कैराना से करतार सिंह भडाना को टिकट दिया गया था. अभिनेत्री जयाप्रदा रामपुर लोकसभा चुनाव से दो बार जीत हासिल करने में सफल रहीं, लेकिन बिजनौर में आरएलडी के टिकट पर चुनाव लड़ीं तो उन्हें सिर्फ 24348 वोट मिले थे.