जयपुर. राजस्थान की 25 लोकसभा सीटों पर दो चरण में होने वाले चुनाव से पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाने वाले नेताओं की तादाद लगातार बढ़ रही है. राजस्थान के अलग-अलग क्षेत्रों और जातियों में अपनी पकड़ रखने वाले कांग्रेस के पुराने नेताओं को अपने पाले में कर भाजपा एक तरफ कांग्रेस को कमजोर करने की रणनीति अपना रही है. दूसरी तरफ, जिन क्षेत्रों और जातियों से ये नेता आते हैं. उनमें अपना वर्चस्व बढ़ाने का भी भाजपा का सपना है, ताकि किसी भी तरह राजस्थान की सभी 25 सीटों पर कमल खिलाने का लक्ष्य साधा जा सके. हालांकि, यह तो लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद ही साफ हो पाएगा कि भाजपा अपने इस लक्ष्य में कितना कामयाब हो पाती है.
जिन वर्गों की राहुल ने बात की, उनके नेता निशाने पर : कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने हाल ही में मणिपुर से मुंबई तक की अपनी भारत जोड़ो न्याय यात्रा पूरी की है. इस पूरी यात्रा में राहुल गांधी ने आदिवासी, दलित और ओबीसी को हक दिलाने की बात कही और इन वर्गों की उपेक्षा का आरोप भाजपा पर लगाया है. राजस्थान में जो नेता कांग्रेस से भाजपा में गए हैं, उनमें से ज्यादातर दलित, ओबीसी और आदिवासी समाज से आते हैं. हालांकि, सामान्य वर्ग से आने वाले कई नेताओं ने भी कांग्रेस से हाथ छुड़ाकर भाजपा का दामन थामा है.
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सबसे पहले मालवीय ने बदला पाला : बांसवाड़ा-डूंगरपुर में प्रमुख आदिवासी चेहरे के तौर पर पहचान रखने वाले महेंद्रजीत सिंह मालवीय पहले कद्दावर नेता हैं, जो विधानसभा चुनाव के बाद लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए. उनके जाने के बाद डूंगरपुर-बांसवाड़ा के साथ ही उदयपुर सीट पर भी सियासी समीकरण बदले हैं. उन्हें भाजपा ने डूंगरपुर-बांसवाड़ा सीट से मैदान में उतारा है. हालांकि, कांग्रेस नेताओं का कहना है कि मालवीय के जाने से पार्टी को कोई नुकसान नहीं होगा. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा तो यहां तक कह चुके हैं कि मालवीय जीतकर लोकसभा नहीं पहुंचेंगे.
एससी आयोग के अध्यक्ष बैरवा भी हुए बागी : गहलोत सरकार के समय राजस्थान अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष रहे खिलाड़ीलाल बैरवा भी मालवीय की राह पर आगे बढ़े और भाजपा के हो गए. हालांकि, उन्होंने विधानसभा चुनाव से पहले ही अपने बागी तेवर दिखा दिए थे. जब उनका बसेड़ी से कांग्रेस ने टिकट काट दिया था, लेकिन लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया. हालांकि, वे बसेड़ी से टिकट कटने के बाद निर्दलीय विधानसभा चुनाव भी लड़े थे, लेकिन बहुत कम वोट हासिल कर पाए.