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लोकसभा चुनाव में बसपा का प्रदर्शन तय करेगा पार्टी का भविष्य, पढ़िए अब तक के चुनाव में क्या रहा है हाल - Lok Sabha Election BSP

लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे कल (4 जून) आएंगे. इसी के साथ राज और ताज का फैसला भी हो जाएगा. बसपा के लिए भी यह चुनाव कई मायने में खास है. राजनीतिक विश्लेषक ने इस पर खुलकर अपनी बात रखी.

लोकसभा चुनाव के नतीजे बसपा का भविष्य तय करेंगे.
लोकसभा चुनाव के नतीजे बसपा का भविष्य तय करेंगे. (PHOTO Credit; Etv Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jun 3, 2024, 6:59 AM IST

लखनऊ :बहुजन समाज पार्टी के लिए लोकसभा चुनाव 2024 कई मायने में खास है. वजह ये है कि बीएसपी की स्थिति विधानसभा में पूरी तरह लड़खड़ा चुकी है. विधान परिषद में भी बसपा का प्रतिनिधित्व नहीं है. अब उम्मीद लोकसभा चुनाव से ही है. हालांकि राह काफी कठिन है. साल 2024 में बसपा के लिए 2019 का प्रदर्शन दोहरा पाना मुश्किल लग रहा है. बीएसपी ने साल 2009 में अब तक का सबसे शानदार प्रदर्शन करते हुए 21 लोकसभा सीटें जीती थीं. उसके बाद हर चुनाव में बसपा को घाटा उठाना पड़ा. 2014 में पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई. 2019 में 10 सीटें जीतने में सफल हुई. अब 2024 के चुनावी नतीजे ही बसपा का भविष्य तय करेंगे.

बहुजन समाज पार्टी ने साल 2014 में अकेले दम पर उत्तर प्रदेश समेत देश भर में चुनाव लड़ा था. यह फैसला चुनाव परिणाम आने के बाद पूरी तरह गलत साबित हो गया. बहुजन समाज पार्टी एक सीट भी जीतने में कामयाब नहीं हो पाई. साल 1985 के बाद 29 साल में साल 2014 में ऐसा दौर आया जब पार्टी खाता तक नहीं खोल पाई. हालांकि बीच की अवधि के दौरान पार्टी अच्छा प्रदर्शन करने में भी कामयाब हुई.

2019 में बसपा ने सपा से मिलाया था हाथ :बहुजन समाज पार्टी ने 2014 में नतीजे पक्ष में न आने से सबक लेते हुए अपनी धुर विरोधी समाजवादी पार्टी से 2019 के लोकसभा चुनाव में हाथ मिला लिया. नतीजा ये हुआ कि 2019 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी 10 सीटें जीतने में कामयाब हो गई. अब 2024 के लोकसभा चुनाव में फिर बहुजन समाज पार्टी अकेले ही लड़ रही है.

वर्तमान में पार्टी की जो स्थिति है उससे राजनीतिक जानकार यह भी कयास लगा रहे हैं कि कहीं बहुजन समाज पार्टी का हश्र 1985 और 2014 के लोकसभा चुनाव की तरह ही न हो जाए. ऐसा न हो कि पार्टी का हाल इस लोकसभा चुनाव में फिर से 10 साल पीछे वाला हो जाए और 2014 की तरह 2024 में खाता ही न खुल पाए.

कब कितनी सीटों पर उतारे प्रत्याशी, कितने को मिली जीत :नौवीं लोकसभा 1989 में बीएसपी 245 सीटों पर चुनाव लड़ी और चार सीटें जीतने में सफल हुई. 10 वीं लोकसभा 1991 में 231 सीटों पर चुनाव लड़ी और तीन सीटें जीतने में सफल हुई. 11वीं लोकसभा चुनाव 1996 में 210 सीटों पर चुनाव लड़ी और 11 सीटों पर जीत हासिल की. 12 वीं लोकसभा में 1998 में 251 सीटों पर चुनाव लड़ी और पांच सीटें जीतने में कामयाब हुई.

13वीं लोकसभा 1999 में 225 सीटों पर प्रत्याशी उतारे और 14 जीते. 14 वीं लोकसभा 2004 में 435 प्रत्याशी उतारे और 19 प्रत्याशी जीते. 15वीं लोकसभा 2009 में 500 उम्मीदवार मैदान में उतारे और 21 उम्मीदवार जीते. 16वीं लोकसभा 2014 में 503 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और एक भी सीट नहीं मिली. 17वीं लोकसभा 2019 में 383 सीटों पर प्रत्याशी उतारे तो 10 सांसद बनाने में बसपा सफल हुई.

लोकसभा चुनाव में बसपा के प्रदर्शन पर एक नजर :नौवीं लोकसभा में पंजाब में एक, उत्तर प्रदेश में तीन, 10वीं लोकसभा में मध्य प्रदेश में एक सीट, पंजाब में एक सीट, उत्तर प्रदेश में एक सीट, 11वीं लोकसभा में मध्य प्रदेश में दो, पंजाब में तीन और उत्तर प्रदेश में छह सीटें. 12वीं लोकसभा में हरियाणा में एक, उत्तर प्रदेश में चार, 13वीं लोकसभा में उत्तर प्रदेश में 14, 14वीं लोकसभा में उत्तर प्रदेश में 19, 15वीं लोकसभा में उत्तर प्रदेश में 20, मध्य प्रदेश में एक, 16वीं लोकसभा में खाता ही नहीं खुला, 17 वीं लोकसभा सीट में उत्तर प्रदेश में 10 सीटें.

राजनीतिक विश्लेषक बोले- वोट प्रतिशत रह सकता है :राजनीतिक विश्लेषक प्रभात रंजन दीन का कहना है कि उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की स्थिति वर्तमान में बिल्कुल भी बेहतर नहीं कहीं जा सकती. इस समय बड़ी पार्टियां तक गठबंधन कर रहीं हैं तो मायावती अकेले दम चुनाव मैदान में उतरी हैं, जबकि साल 2022 के विधानसभा चुनाव अकेले लड़कर खामियाजा भी भुगत चुकी हैं. 403 सीटों में सिर्फ एक सीट ही पार्टी जीत पाई थी.

लोकसभा चुनाव में जहां भारतीय जनता पार्टी एनडीए गठबंधन काफी मजबूत है तो सपा कांग्रेस का इंडिया गठबंधन है जो काफी मजबूत है. ऐसे में अकेले चुनाव लड़ने का बसपा का फैसला कितना सही साबित होगा यह तो चार जून को ही पता चलेगा. हालांकि बसपा सुप्रीमो मायावती ने जिस तरह से इस बार लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार उतारे हैं उससे यह भी कहा जा सकता है कि परिणाम भले सीटों में तब्दील न हो लेकिन वोट प्रतिशत बेहतर जरूर रह सकता है.

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