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मनेंद्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर के पौड़ी गांव के लोगों ने किया वोट बहिष्कार, गुस्से में क्यों हैं ग्रामीण - Pauri village boycott Election

पौड़ी गांव के लोग जनप्रतिनिधियों और प्रशासन से इतने खफा हैं कि उन्होने लोकतंत्र के महापर्व में अपना वोट नहीं दिया. गांव के लोग इतने नाराज हैं कि वो जनप्रतिनिधियों को देखना तक नहीं चाहते.

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लोकतंत्र के महापर्व में नहीं लिया हिस्सा (Etv Bharat)

By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : May 7, 2024, 8:30 PM IST

लोकतंत्र के महापर्व में नहीं लिया हिस्सा (ETV Bharat)

मनेंद्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर: भरतपुर जिले में पौड़ी ग्राम के लोगों ने लोकसभा चुनाव में मतदान नहीं किया. गांव वालों की शिकायत थी कि उनके गांव में विकास का काम सालों से रुका पड़ा है. गांव में जिन बुनियादी सुविधाओं की जरुरत है उसे कभी भी जन प्रतिनिधियों की ओर से पूरा नहीं किया गया. गांव वालों का आरोप है कि चुनाव के वक्त पार्टी के लोग आते हैं और वोट मांग कर चले जाते हैं. सभी दलों के नेता आश्वासन देते हैं पर काम कुछ नहीं होता. पौड़ी में विकास का काम नहीं होने से नाराज ग्रामीणों ने मतदान का बहिष्कार किया.

मतदान का बहिष्कार: गांव के लोगों की शिकायत है कि सड़क के नाम पर यहां सिर्फ कच्ची सड़क है. बारिश के दिनों में कीचड़ के चलते सड़क से गुजरना मुश्किल होता है. स्वास्थ्य से लेकर सड़क तक का हाल बेहाल है. बारिश के दिनों में अगर मरीज की तबीयत खराब हो जाए तो उसे अस्पताल में भर्ती कराना मुश्किल है. गांव वालों का कहना है कि वो लंबे वक्त से गांव में सुविधाएं देने की मांग कर रहे हैं लेकिन नेता बस झूठा आश्वासन देकर चले जाते हैं. जिला प्रशासन भी उनकी ओर ध्यान नहीं देता. गांव वालों ने वोट नहीं डालने के लिए 4 मई को ही अनुविभागीय दंडाधिकारी के नाम मतदान बहिष्कार की जानकारी दे दी थी.

''हम सालों से विकास की राह गांव में देख रहे हैं. विकास के नाम पर यहां टूटे बिजली के खंभे लगे हैं. गांव में पक्की सड़क खोजने से नहीं मिलेगी. बच्चों के लिए यहां एक भी स्कूल नहीं है. स्वास्थ्य सुविधा का क्या हाल है ये तो पूछिए ही मत. रात को किसी महिला को अगर प्रसव पीड़ा हो जाए तो उसे खटिया पर लादकर अस्पताल पहुंचाना पड़ता है''. - ग्रामीण, पौड़ी


क्या है ग्रामीणों की शिकायत: गांव वालों की शिकायत है कि पीने का पानी, बिजली, सड़क, शिक्षा और स्वास्थ्य जो मूलभूत अधिकार है उससे वो सालों से वंचित हैं. गांव में बिजली नहीं होने के चलते ये लोग रात होते ही घरों में कैद हो जाते हैं. मरीज को रात के अंधरे में अगर ले जाना होता है तो उसे खटिया पर लादकर ले जाते हैं. बिजली नहीं होने से जंगली जानवरों का भी खतरा बना रहता है. बच्चों की पढ़ाई लिखाई भी नहीं पाती है क्योंकि गांव में एक भी स्कूल नहीं है. गांव वालों का कहना है कि अगर उनकी मूलभूत सुविधाओं को बहाल कर दिया जाए तो वो वोट देंगे. विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव तो अब पांच साल बाद होंगे. अब देखना ये होगा कि क्या इनकी मांगे पांच सालों के भीतर पूरी होती है या नहीं.

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