मधेपुरा:लोकसभा चुनाव केतीसरे चरण में 7 मई कोमधेपुरा लोकसभा सीट पर भी चुनाव होना है. यह सीट बिहार के हॉट लोकसभा सीटों में से एक है. यहां से लालू यादव, शरद यादव, पप्पू यादव जैसे बड़े नेता संसद गए हैं. मधेपुरा के लिए पूरे बिहार में एक प्रचलित कहावत है कि 'रोम पोप का और मधेपुरा गोप का'. इसके पीछे की वजह यह है कि 1967 से लेकर अब तक सिर्फ यादव ही सांसद बनते आए हैं.
मधेपुरा सीट का इतिहास: 1967 में भागलपुर लोकसभा क्षेत्र से मधेपुरा अलग हुआ. मधेपुरा लोकसभा सीट से पहली बार संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से बीपी मंडल सांसद बने. फिर वे 1968 में निर्दलीय और 1977 में भारतीय लोक दल के टिकट पर सांसद बने. 2008 में हुए नए परिसीमन के बाद मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति थोड़ी बदल गई. पहले मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र में किशुनगंज, आलमनगर, कुमारखंड, सिंहेश्वर, मधेपुरा और सहरसा जिले का सोनबरसा विधानसभा क्षेत्र शामिल था. नए परिसीमन के बाद मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र में आलमनगर, बिहारीगंज, मधेपुरा के अलावा सहरसा जिले का सहरसा, सोनवर्षा और महिषी विधानसभा सीट को शामिल किया गया.
सिर्फ यादव ही सांसद बनते हैं: 1989 से 2019 तक मधेपुरा सीट पर राजद और जदयू के प्रत्याशी ही जीतते आ रहे हैं. 1967 से अब तक यहां से एक बार भी यादव जाति के अलावे किसी अन्य जाति के प्रत्याशी सांसद नहीं बने हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए गठबंधन के जदयू प्रत्याशी दिनेशचंद्र यादव ने महागठबंधन के राजद प्रत्याशी शरद यादव को हराकर सांसद बने थे. 2014 में राजद के टिकट पर सांसद बने पप्पू यादव 2019 में अपनी अलग पार्टी बनाकर चुनाव लड़े थे, लेकिन वे तीसरे स्थान पर खिसक गए.
1984 के बाद नहीं आई कांग्रेस:1984 तक मधेपुरा सीट पर कांग्रेस का दबदबा रहा. साल 1971 में कांग्रेस के टिकट पर आरपी यादव सांसद बने. 1980 में आरपी यादव कांग्रेस के टिकट पर जीत कर सदन गए. 1984 में भी कांग्रेस के डॉ. महावीर प्रसाद यादव को जीत मिली. हालांकि इसके बाद से कांग्रेस दोबारा आज तक लौट कर नहीं आई.
पप्पू को भी मिल चुका है मौका:साल 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर का भी मधेपुरा में कोई असर नहीं हुआ. अजित सरकार हत्याकांड में बरी होने के बाद जेल से निकले राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने जदयू के कद्दावर नेता शरद यादव को हराकर सांसद बने. इस चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी विजय सिंह तीसरे स्थान पर रहे.