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मधेपुरा में किसका होगा बेड़ा पार और कौन फंसेगा बीच मंझधार में, जानें सीट का इतिहास और समीकरण - madhepura Lok sabha seat - MADHEPURA LOK SABHA SEAT

MADHEPURA LOK SABHA SEAT: मधेपुरा लोकसभा सीट पर यादव वोटर निर्णायक भूमिका में रहते हैं. बड़ी संख्या में यादव वोटर हैं. इसलिए मधेपुरा को लेकर एक कहावत प्रचलित है 'रोम पोप का और मधेपुरा गोप का. जदयू के वर्तमान सांसद दिनेश चंद्र यादव एक बार फिर से प्रत्याशी के रूप में मैदान में हैं तो वही दूसरी ओर राजद की ओर से डॉ कुमार चंद्रदीप यादव चुनावी मैदान में है. जानें मधेपुरा सीट का इतिहास

मधेपुरा लोकसभा सीट
मधेपुरा लोकसभा सीट (Etv Bharat)

By ETV Bharat Bihar Team

Published : May 4, 2024, 6:26 AM IST

Updated : May 6, 2024, 5:12 PM IST

मधेपुरा:लोकसभा चुनाव केतीसरे चरण में 7 मई कोमधेपुरा लोकसभा सीट पर भी चुनाव होना है. यह सीट बिहार के हॉट लोकसभा सीटों में से एक है. यहां से लालू यादव, शरद यादव, पप्पू यादव जैसे बड़े नेता संसद गए हैं. मधेपुरा के लिए पूरे बिहार में एक प्रचलित कहावत है कि 'रोम पोप का और मधेपुरा गोप का'. इसके पीछे की वजह यह है कि 1967 से लेकर अब तक सिर्फ यादव ही सांसद बनते आए हैं.

मधेपुरा सीट का इतिहास: 1967 में भागलपुर लोकसभा क्षेत्र से मधेपुरा अलग हुआ. मधेपुरा लोकसभा सीट से पहली बार संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से बीपी मंडल सांसद बने. फिर वे 1968 में निर्दलीय और 1977 में भारतीय लोक दल के टिकट पर सांसद बने. 2008 में हुए नए परिसीमन के बाद मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति थोड़ी बदल गई. पहले मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र में किशुनगंज, आलमनगर, कुमारखंड, सिंहेश्वर, मधेपुरा और सहरसा जिले का सोनबरसा विधानसभा क्षेत्र शामिल था. नए परिसीमन के बाद मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र में आलमनगर, बिहारीगंज, मधेपुरा के अलावा सहरसा जिले का सहरसा, सोनवर्षा और महिषी विधानसभा सीट को शामिल किया गया.

सिर्फ यादव ही सांसद बनते हैं: 1989 से 2019 तक मधेपुरा सीट पर राजद और जदयू के प्रत्याशी ही जीतते आ रहे हैं. 1967 से अब तक यहां से एक बार भी यादव जाति के अलावे किसी अन्य जाति के प्रत्याशी सांसद नहीं बने हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए गठबंधन के जदयू प्रत्याशी दिनेशचंद्र यादव ने महागठबंधन के राजद प्रत्याशी शरद यादव को हराकर सांसद बने थे. 2014 में राजद के टिकट पर सांसद बने पप्पू यादव 2019 में अपनी अलग पार्टी बनाकर चुनाव लड़े थे, लेकिन वे तीसरे स्थान पर खिसक गए.

ईटीवी भारत GFX. (ईटीवी भारत GFX.)

1984 के बाद नहीं आई कांग्रेस:1984 तक मधेपुरा सीट पर कांग्रेस का दबदबा रहा. साल 1971 में कांग्रेस के टिकट पर आरपी यादव सांसद बने. 1980 में आरपी यादव कांग्रेस के टिकट पर जीत कर सदन गए. 1984 में भी कांग्रेस के डॉ. महावीर प्रसाद यादव को जीत मिली. हालांकि इसके बाद से कांग्रेस दोबारा आज तक लौट कर नहीं आई.

पप्पू को भी मिल चुका है मौका:साल 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर का भी मधेपुरा में कोई असर नहीं हुआ. अजित सरकार हत्याकांड में बरी होने के बाद जेल से निकले राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने जदयू के कद्दावर नेता शरद यादव को हराकर सांसद बने. इस चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी विजय सिंह तीसरे स्थान पर रहे.

मधेपुरा का जातिगत समीकरण: मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र में यादव जाति के मतदाता सबसे अधिक है. यहां यादव मतदाताओं की संख्या लगभग 6 लाख है. वहीं मुस्लिम मतदाता करीब साढ़े तीन लाख है. सवर्ण मतदाताओं की संख्या लगभग पौने 3 लाख है. निषाद जाति के लगभग डेढ़ लाख वोटर है. इसके अलावा करीब 7 लाख पचपनिया वोटर हैं. मधेपुरा में मुस्लिम और यादव वोट राजद का आधार माना जाता है. वहीं एनडीए सवर्ण, वैश्य और पचपनिया वोट पर दावा करता है. 2019 के लोकसभा के मकाबले इस बार लगभग ढाई लाख मतदाता की संख्या बढ़ी है.

ईटीवी भारत GFX. (ईटीवी भारत GFX.)

फिर से मैदान में सांसद दिनेश चंद्र यादव: 1967 में मधेपुरा लोकसभा सीट बनने के बाद बीपी मंडल पहली बार सांसद निर्वाचित हुए. वे यहां तीन बार सांसद बने, जिसमें एक बार 1968 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में भी उन्हें जीत मिली. शरद यादव दो बार जनता दल और दो बार जदयू से कुल 4 बार मधेपुरा से सांसद बने. इस सीट पर बीपी मंडल और शरद यादव को लगातार दो बार सांसद बनने का मौका मिला. राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव भी यहां से 1998 और 2004 में सांसद का चुनाव जीते, लेकिन 2004 में छपरा से भी चुनाव जीतने के कारण उन्होंने यह सीट छोड़ दी थी. इस बार के लोकसभा चुनाव में जदयू के वर्तमान सांसद दिनेश चंद्र यादव एक बार फिर से प्रत्याशी के रूप में मैदान में हैं तो वही दूसरी ओर राजद की ओर से डॉ कुमार चंद्रदीप यादव चुनावी मैदान में है.

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Last Updated : May 6, 2024, 5:12 PM IST

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