अधूरा रह गया है प्रदेश का पहला क्रोकोडाइल व्यू प्वाइंट (ETV Bharat Kota) कोटा. राजस्थान के पहले क्रोकोडाइल व्यू प्वाइंट का काम शुरू होने के बाद अब बजट के अभाव में अटक गया है. कोटा के देवली अरब रोड स्थित नगर वन में पूरी तरह से जंगल का लुक देना था. आमजन को इससे जोड़ने के लिए जॉगिंग व साइकिल ट्रैक के साथ ओपन जिम भी यहां पर स्थापित करना था. हालांकि, यहां पर ऐसा कुछ भी नहीं बन पाया है. पूरी तरह से उजाड़ व उबड़ खाबड़ एरिया ही है. यहां ना तो साइकिल ट्रैक है और ना ही जॉगिंग ट्रैक वहां है.
इस नगर वन को लॉक ही किया हुआ है. जिस मंशा से काम शुरू किया था, वह भी पूरी नहीं हो पाई है. वर्तमान के हालात ऐसे हैं कि पूरे एरिया में लगाए गए पेड़ भी सूख गए हैं. उनकी देखरेख भी अच्छे से नहीं हो रही है. तलाई भी पूरी तरह से सूख गई है. विभाग ने प्रोजेक्ट को ठंडा बस्ती में डाल रखा है और मुख्य दरवाजे पर ताला लगाकर इति श्री वर्तमान में की हुई है.
रेस्क्यू वाले मगरमच्छों को भी छोड़ना था : नगर वन में बनने वाले क्रोकोडाइल व्यू प्वाइंट और वेटलैंड के लिए एक बड़ी तलाई बनी है. चंद्रसेल के नाले को डायवर्जन चैनल के जरिए नगर वन में बनाई गई वाटर बॉडी से जोड़ दिया था. ऐसे में मगरमच्छ बारिश के समय में अपने आप ही यहां पहुंच गए थे, लेकिन पानी रीतने के साथ वापस मगरमच्छ नालों में चले गए थे. ऐसे में वॉटर बॉडी को मैनटेन करने के लिए भी व्यवस्था करनी थी. कोटा शहर की कॉलोनी और सड़कों से होने वाले मगरमच्छों के रेस्क्यू के बाद उन्हें छोड़ा जाना था. हर साल बारिश और सर्दी के सीजन में सैकड़ो की संख्या में मगरमच्छों को रेस्क्यू किया जाता है और जिन्हें सावन भादो बांध या अन्य जगहों पर छोड़ा जाता है. जिसकी जगह नगर वन के क्रोकोडाइल व्यू प्वाइंट की तलाई में इन्हें छोड़ना था.
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आसपास की कॉलोनी में है मगरमच्छ एक समस्या : यह नगर वन जहां स्थित है, उसके नजदीक रायपुरा व चंद्रसेल के नाले बहते हैं. इनमें सैकड़ो की संख्या में क्रोकोडाइल हैं. यही मगरमच्छ सर्दियों में धूप सेकने के लिए बाहर आ जाते हैं और भोजन की तलाश में आसपास की कॉलोनियां और वाटर बॉडी में पहुंच जाते हैं. इसके अलावा आसपास के खेतों में भी यह पहुंच जाते हैं, जिनकी दहशत में कॉलोनियों के वासी और किसान हैं. इस समस्या को कम करने और लोगों को सीधे तौर पर क्रोकोडाइल व्यू प्वाइंट का मजा देने का उद्देश्य वन विभाग का था, जिसके लिए ही यह पूरी योजना बनाई गई थी.
शहर वासियों को जंगल का लुत्फ देना था : देवली अरब नगर वन के पास के लगते क्षेत्र में बहने वाले चंद्रसेल और अन्य नालों से जोड़ा जाना था. फॉरेस्ट की जगह को नेचुरली मेंटेन किया जा सके और शहरवासी जंगल का अनुभव कर सके. इसीलिए इसमें इको ट्रेल, इको हट, पब्लिक एमेनिटीज विकसित करनी थी. इस ट्रैक की लंबाई 1700 मीटर है. यहां बनाई तलाई भी करीब 400 मीटर लंबी है. इनमें करीब 3 करोड़ की राशि खर्च करनी थी, लेकिन करीब 80 लाख के काम हो पाए थे.
लोगों को जोड़कर जागरूक करना था : कोटा टेरिटोरियल वन विभाग रिटायर्ड उपवन संरक्षक जयराम पांडे का कहना है कि उनके कार्यकाल में देवली अरब रोड पर नगर वन का काम शुरू करवाया था. इसके लिए पूरी डीपीआर भी बनवाई थी. इस डीपीआर के अनुसार ही केंद्र सरकार से बजट स्वीकृत हुआ था. बजट मिलने पर करीब 80 लाख रुपये से काम करवाया था. इसमें पौधारोपण के अलावा पानी से सिंचाई की व्यवस्था भी की गई थी, साथ ही फेंसिंग भी करवाई गई थी और बाउंड्री भी बनवाई गई थी, लेकिन बाद में बजट नहीं होने से काम रूक गया था. इसके बाद में सेवानिवृत हो गया और मुझे आगे जानकारी भी नहीं है. हमारा मकसद ही आम जनता को मगरमच्छ और पक्षियों के बारे में जागरूक करने का था.
अभी नहीं देखा जाकर देखूंगा, सरकार से मांगेंगे बजट - डीसीएफ : इस पूरे मामले पर कोटा के टेरिटोरियल उपवन संरक्षक अपूर्व कृष्ण श्रीवास्तव का कहना है कि देवली अरब के नगर वन को उन्होंने देखा भी नहीं है. ऐसे में वे स्वयं जाकर वहां पर देखेंगे कि क्या-क्या काम हुआ है और क्या काम शेष है, इस संबंध में भी जानकारी लेंगे. इस संबंध में बजट का अभाव है तो उच्च अधिकारियों के जरिए राज्य सरकार के समक्ष मामले को भेजेंगे. बजट स्वीकृत करवा कर वहां पर काम भी करवाया जाएगा.