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उत्तर भारत की पहली सबसे बड़ी 'आयरन फाउंड्री' का कमिश्नर दीपक रावत ने लिया जायजा, पत्थरों को करीब से निहारा

इको टूरिज्म स्पॉट के रूप में विकसित की जा रही 'आयरन फाउंड्री', कुमाऊं कमिश्नर दीपक रावत ने लोहे की भट्टी का किया निरीक्षण

Deepak Rawat Inspected Iron Foundry in Kaladhungi
'आयरन फाउंड्री' में पत्थरों की जानकारी लेते कमिश्नर रावत (फोटो सोर्स- ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Oct 28, 2024, 5:21 PM IST

Updated : Oct 28, 2024, 10:55 PM IST

रामनगर:कुमाऊं कमिश्नर दीपक रावत ने उत्तर भारत की सबसे पहली आयरन फाउंड्री (लोहे की भट्टी) का निरीक्षण किया. इस दौरान उन्होंने इसे पर्यटन क्षेत्र से जोड़ने पर सरकार की मंशा भी बताई. उन्होंने कहा कि इसके विकास को लेकर मुख्यमंत्री की ओर से भी घोषणा भी की गई है. जल्द ही आयरन फाउंड्री का कायाकल्प होगा. वहीं, कमिश्नर रावत ने आयरन फाउंड्री का बारीकी से जायजा लिया.

कुमाऊं कमिश्नर दीपक रावत ने कही ये बात: कुमाऊं कमिश्नर दीपक रावत ने कहा कि आयरन फाउंड्री तक पैदल मार्ग है, जिसमें हल्की टाइल्स लगाई गई हैं. नैनीताल रोड से फाउंड्री तक 900 मीटर का पैदल मार्ग है. उन्होंने कहा इको टूरिज्म के तहत इसे स्पॉट बनाया जा रहा है, जिसके तहत ट्रेल पैदल ही रहेगा, जो कि एजुकेशनल पैदल ट्रेक रहेगा. इससे लोग उत्तराखंड और जिम कॉर्बेट के बारे में जान सकेंगे. उन्होंने कहा कि इसमें वन विभाग का एक सफारी जोन भी बन रहा है, इससे स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिलेगा.

'आयरन फाउंड्री' का कमिश्नर दीपक रावत ने लिया जायजा (वीडियो- ETV Bharat)

1856 में स्थापित हुई थी आयरन फाउंड्री: बता दें कि साल 1856 में नैनीताल जिले के कालाढूंगी में उत्तर भारत की सबसे पहली आयरन फाउंड्री की स्थापना की गई थी. इस जगह पर सबसे ज्यादा लोहे का निर्माण होता था. साल 1876 में ज्यादा पेड़ों के कटान पर कुमाऊं कमिश्नर सर हेनरी रैमजे ने रोक लगाई, जिसके बाद इसको बंद कर दिया गया. आज पर्यटक आयरन फाउंड्री के पास लोहा बनाने वाले पत्थरों को देख सकते हैं. आज भी यहां पर काले पत्थर मिलते हैं, जो सामान्य पत्थरों के मुकाबले वजन में भारी होते हैं.

'आयरन फाउंड्री' के बारे में अहम जानकारियां (फोटो- ETV Bharat GFX)

इस आयरन फाउंड्री का जिक्र पर्यटन से जुड़ी कई फेमस पुस्तकों में किया गया है. विश्व प्रसिद्ध शिकारी एडवर्ड जेम्स 'जिम' कॉर्बेट ने भी अपनी किताब 'माई इंडिया' में इस आयरन फाउंड्री का जिक्र किया है. साथ ही लेखिका अंजली रवी भरतरी की ओर से भी लिखी गई किताब में इस आयरन फाउंड्री का जिक्र किया गया है. कॉर्बेट ग्राम विकास समिति के प्रशिक्षित गाइड के माध्यम से सैलानी यहां पहुंचते हैं.

'आयरन फाउंड्री' का निरीक्षण करते कुमाऊं कमिश्नर दीपक रावत (फोटो सोर्स- ETV Bharat)

इस वजह से पड़ा था 'कालाढूंगी' का नाम: कालाढूंगी का नाम भी इसी आयरन फाउंड्री की वजह से पड़ा. क्योंकि, आसपास के क्षेत्र में भारी मात्रा में काला पत्थर पाया जाता था, जो आयरन फाउंड्री में लाया जाता था. कुमाऊंनी में काले पत्थर को 'काल ढूंग' कहा जाता है. इसी कारण इसका नाम कालाढूंगी पड़ गया. अब इसे इको टूरिज्म स्पॉट के रूप में विकसित किया जा रहा है.

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Last Updated : Oct 28, 2024, 10:55 PM IST

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