पटना :देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस, एक समय बिहार में सबसे मजबूत पार्टी हुआ करती थी. आजादी से लेकर 1989 तक कमोबेश बिहार में कांग्रेस की ही सरकार रही. एक समय था कि बिहार कांग्रेस के कई बड़े नेताओं का दबदबा राष्ट्रीय स्तर पर भी दिखता था. 1990 में लालू यादव के बिहार की सत्ता में आने के बाद धीरे-धीरे कांग्रेस बिहार में कमजोर होती गई.
पहले राबड़ी आवास फिर सदाकत आश्रम :वरिष्ठ पत्रकार इंद्रभूषण का कहना है कि जब शकील अहमद बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष थे और राजद सरकार में मंत्री थे. जब वह दिल्ली से आते थे तो एयरपोर्ट से पहले राबड़ी आवास पर आकर मुलाकात करते थे, उसके बाद सदाकत आश्रम जाते थे. शकील अहमद के समय से चली हुई परंपरा अभी तक चल रही है.
''जगन्नाथ मिश्रा का दौड़ खत्म होने के बाद कांग्रेस की स्थिति यह हो गई है कि प्रदेश अध्यक्ष तो रहते हैं. लेकिन उनका पहला कार्यालय 10 सर्कुलर रोड (राबड़ी आवास) रहता है और बाद में सदाकत आश्रम (कांग्रेस मुख्यालय).''- इंद्रभूषण, वरिष्ठ पत्रकार
कांग्रेस क्यों हुई कमजोर ? : बिहार में कांग्रेस आखिर क्यों कमजोर हुई इसको लेकर वरिष्ठ पत्रकार इंद्रभूषण ने बड़ी बात कही है. उन्होंने कहा कि जब से बीजेपी शासन में आयी है, खासकर 2013-14 में नरेंद्र मोदी के आने के बाद से कांग्रेस ने हिंदी बेल्ट के 3 प्रदेशों कंप्लीट अपने सहयोगी दल पर पार्टी को सौंप दिया है. इसमें उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड शामिल है.
''बिहार में तेजस्वी यादव तय करते हैं कि कांग्रेस को क्या मिलेगा और क्या नहीं मिलेगा. झारखंड में अभी आप देख चुके हैं हेमंत सोरेन ही सब तय कर रहे है. उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव तय करते हैं. कांग्रेस की इन तीनों प्रदेश में कोई कमेटी नहीं बनती है ना कोई नेताओं का पैनल तैयार होता है. कांग्रेस पार्टी अपने अपने सहयोगी दल पर आश्रित हो गए हैं.''- इंद्रभूषण, वरिष्ठ पत्रकार
कांग्रेस आला कमान का है सख्त निर्देश : वरिष्ठ पत्रकार इंद्रभूषण का कहना है कि कांग्रेस के आला कमान का साफ तौर पर निर्देश है कि बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड में सहयोगी दलों के खिलाफ कुछ नहीं बोलना है. इंद्रभूषण का कहना है कि लालू प्रसाद यादव कभी बिहार की सत्ता में अपने दम पर नहीं आए. शासन की शुरुआत बीजेपी के सहयोग से किया. उसके बाद कांग्रेस उनका सहयोगी दल बना. बिहार में कांग्रेस की स्थिति ऐसी है कि चाहे वह कौकब कादरी हों, मदन मोहन झा हों या फिर अखिलेश प्रसाद सिंह, सबों की स्थिति एक जैसी ही है.
जगन्नाथ मिश्रा बिहार कांग्रेस के 'आखिरी शासक' : बिहार में डॉ जगन्नाथ मिश्रा के नेतृत्व में आखिरी बार 1989 में कांग्रेस की सरकार बनी थी. डॉ जगन्नाथ मिश्रा 1975 से 1977, 1980 से 1983 और 1989 से 1990 तक मुख्यमंत्री रहे. इसके बाद पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में वह केंद्रीय कैबिनेट मंत्री बने.
जगन्नाथ मिश्रा के बाद कांग्रेस उभर नहीं पायी :1990 में लालू प्रसाद यादव बिहार के मुख्यमंत्री बने और कांग्रेस मुख्य विपक्षी पार्टी बनी. धीरे-धीरे जगन्नाथ मिश्रा का प्रभाव कांग्रेस पार्टी में कम होने लगा. इसके बाद जगन्नाथ मिश्रा ने कांग्रेस से अलग होकर नई पार्टी बनाई. कहा जाता है कि इस समय के बाद बिहार में कांग्रेस धीरे-धीरे कमजोर होती गई. बाद के दिनों में कांग्रेस पूरी तरीके से लालू प्रसाद यादव पर निर्भर होती चली गई.
RJD और कांग्रेस की दोस्ती :बिहार में कांग्रेस एवं राजद की दोस्ती की शुरुआत 1998 लोकसभा चुनाव से हुई थी. उस समय बिहार का विभाजन नहीं हुआ था. साल 2000 में विधानसभा के चुनाव में राजद एवं कांग्रेस की दोस्ती टूट गई थी. कांग्रेस बिहार की सभी 324 सीटों पर चुनाव लड़ी और 23 सीटों पर उसको जीत हासिल हुई, जबकि आरजेडी 293 सीट पर लड़कर 124 सीट जीतने में कामयाब हुई थी.
राजद के भरोसे कांग्रेस! :चूंकि किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला था. ऐसे में एक बार फिर से कांग्रेस और राजद में गठबंधन हुआ. दोनों ने मिलकर बिहार में सरकार बनाई और कांग्रेस के सभी 23 विधायक राजद की सरकार में मंत्री बने थे. 2004 लोकसभा का चुनाव भी कांग्रेस और राजद ने साथ लड़ा. राजद ने 22 और कांग्रेस ने तीन सीट जीतने में कामयाब हुई थी. UPA-1 की सरकार में आरजेडी मजबूत स्थिति में थी. लालू प्रसाद यादव रेल मंत्री बने और राजद के कई सांसदों को केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिली.
2005 में हार के बाद बढ़ने लगी दूरी : इसके बाद बिहार से झारखंड अलग हो गया. 2005 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में भी राजद और कांग्रेस का गठबंधन रहा. राजद 175 सीट पर लड़ी और 54 सीट जीतने में कामयाब रही, वहीं कांग्रेस 51 सीट पर चुनाव लड़ी और मात्र 9 सीट जीत सकी. तब पहली बार नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए सरकार का गठन हुआ था.