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जल, जंगल, जमीन, जानवर और मानव के सह अस्तित्व वाला विकास का मॉडल अपनाना होगा- के एन गोविंदाचार्य - K N Govindacharya

जयपुर में राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के संस्थापक के एन गोविंदाचार्य ने कहा कि प्रकृति केंद्रित विकास सनातन संस्कृति की पहचान है. ऐसे में जल, जंगल, जमीन, जानवर और मानव के सह अस्तित्व वाला विकास का मॉडल अपनाना होगा.

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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Mar 29, 2024, 10:38 PM IST

जयपुर. प्रकृति केंद्रित विकास सनातन संस्कृति की पहचान है. ऐसे में जल, जंगल, जमीन, जानवर और मानव के सह अस्तित्व वाला विकास का मॉडल अपनाना होगा. ये कहना है विचारक और राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के संस्थापक के एन गोविंदाचार्य का. गोविंदाचार्य ने राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के पश्चिम क्षेत्र के जयपुर में शुरू तीन दिवसीय प्रशिक्षण शिविर के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए ये बात कही. इस दौरान उन्होंने विकास के मॉडल पर सभी सरकारों को पुनर्विचार करने का आह्वान किया.

राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के पश्चिम क्षेत्र के तीन दिवसीय इस प्रशिक्षण शिविर में सात राज्यों के करीब 80 चुनिंदा प्रतिनिधि भाग लेने के लिए जयपुर पहुंचे हैं. इन प्रतिनिधियों के सामने अपनी बात रखते हुए गोविंदाचार्य ने कहा कि हमने अभी तक आधुनिक विकास के जो भी कदम बढ़ाए हैं. वह न केवल प्रकृति के सभी अंगों के लिए घातक साबित हो रहे हैं, बल्कि उससे मानव सहित सभी प्राणियों के जीवन पर और प्रकृति के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है. ये वक्त की मांग है कि दुनिया के सभी देश, सभी सरकारें, राजनेता, वैज्ञानिक, अर्थशास्त्री, प्रशासनिक अधिकारी मिलकर प्रकृति केंद्रित विकास की मुहिम को बढ़ावा दें.

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हमें भारत में जन्म मिला, ये हमारा सौभाग्य : इस दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक कैलाश चंद्र शर्मा ने कहा कि हमें भारत में जन्म मिला, ये हमारा सौभाग्य है. हमारी परंपराएं और गौरवशाली इतिहास हमें मजबूती प्रदान करता है. हमारा कर्तव्य है कि हम सकारात्मकता के साथ सामाजिक कार्यों में सक्रिय रहें, क्योंकि आज सामाजिक समरसता की बातें तो होती है, पर वो मानवीय आचरण में नहीं है.

वरिष्ठ प्रचारक और संविधान विशेषज्ञ लक्ष्मी नारायण भाला ने नीति निर्धारण के लिए गीता को सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ बताते हुए कहा कि संविधान हमेशा अच्छे हाथों में रहना चाहिए, जो मौलिक अधिकारों की रक्षा कर सके और नीति निर्धारण को दिशा दे सके. संविधान भले ही लचीला हो उसका दुरुपयोग चिंता का विषय है. संविधान की भावना को समझना जरूरी है ना कि उसके टेक्स्ट को. उन्होंने कहा कि संविधान का सरलीकरण और उसके पूर्ण लेखन का कार्य हो.

उद्घाटन सत्र में मौजूद रहे राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के संयोजक बसवराज पाटिल ने बताया कि आने वाले समय में राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन की ओर से देश के सभी राज्यों में संगठन की इकाइयों के विस्तार की योजना बन रही है. विभिन्न क्षेत्र के प्रतिभाशाली लोग समाज परिवर्तन और व्यवस्था परिवर्तन के लिए नवाचार में लगे हैं. उनकी संगठन में सक्रियता और सहभागिता से देश को नया नेतृत्व मिलने की आस है.

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वहीं, मध्य प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री वीरेंद्र पांडे ने कहा कि व्यवस्था परिवर्तन समय की मांग है. उन्होंने जनता में लोक कल्याण का भाव पैदा करने वाली शिक्षा पद्धति अपनाने का आह्वान किया. साथ ही उन्होंने कहा कि आने वाले समय में हम जल और अन्न के संकट से जूझेंगे. इंदौर जैसा विकसित शहर आज जल संकट से जूझ रहा है. स्वच्छ पेयजल और कुपोषण के अभाव में लगभग 33 लाख लोग विभिन्न बीमारियों का शिकार होकर समय से पहले मर रहे हैं.

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