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कौमी एकता की मिसाल है नैनीताल की होली, ढोल और राग पर जमकर झूमते होल्यार - Nainital Khadi Holi - NAINITAL KHADI HOLI

Khadi Holi in Nainital उत्तराखंड के कुमाऊं में रंगों का त्योहार होली का अलग ही खुमार रहता है. जहां मुख्य होली से कई दिन पहले से ही होली मनाई जाती है. अब नैनीताल में भी हर्ष और उल्लास के साथ खड़ी होली मनाई जा रही है. खास बात ये है कि नैनीताल की होली कौमी एकता की मिसाल भी है. जहां जहूर आलम अपने काम छोड़ कर होली गायन से लेकर नयना देवी मंदिर में आयोजित होने वाले होली महोत्सव को आयोजित करवाते हैं.

Khadi Holi in Nainital
खड़ी होली में झूमे होलियार

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Mar 21, 2024, 10:49 PM IST

कौमी एकता की मिसाल है नैनीताल की होली

नैनीताल: यूं तो पूरे देश में होली का पर्व मनाया जाता है, लेकिन कुमाऊं की खड़ी होली का अपना ही अलग रंग और गौरवशाली इतिहास है. पहाड़ की होली का रंग कुमाऊं में ही देखा जाता है. यहां होलियार ढोल और राग पर झूमने को मजबूर कर देते हैं. होलियार कुमाऊंनी होली का गौरवशाली इतिहास का वर्णन अपनी होली गायन के दौरान करते हैं. हालांकि, पिछले कुछ सालों में रीति रिवाज परंपराओं में बदलाव देखने को मिल रहा है, लेकिन आज भी कुमाऊं की ये होली देशभर के लिए नजीर बनी हुई है.

दरअसल, नैनीताल में 28वां होली महोत्सव का आयोजन किया गया. सांस्कृतिक संस्था युग मंच की ओर से पहली बार महिलाओं और पुरुषों की संयुक्त खड़ी होली देखने को मिला. इस दौरान चंपावत और धौलादेवी अल्मोड़ा की टीमों ने गायन किया. मां नयना देवी मंदिर परिसर में आयोजित महोत्सव में 35 युवाओं की टीम ने भी प्रस्तुतियां दी. यह युवा पहली बार मतदाता बने हैं.

नैनीताल में होली

ऐसे हुई थी कुमाऊंनी होली की शुरुआत:होली के जानकार जहुर आलम बताते हैं कि कुमाऊंनी होली की शुरुआत तो 15वीं शताब्दी में चंपावत के चंद राजाओं के महल और काली कुमाऊं सुई क्षेत्रों में मानी जाती है. चंद राजवंश के प्रसार के साथ ही यह पूरे कुमाऊं क्षेत्र तक फैली.

कुमाऊं में अल्मोड़ा, चंपावत, पिथौरागढ़ , बागेश्वर जिलों में इस होली का आयोजन किया जाता है. जहां राग, दादरा और राग कहरवा में गाए जाने वाले इस होली का गायन पक्ष में कृष्ण राधा, राजा हरिश्चंद्र, श्रवण कुमार समेत रामायण और महाभारत काल की कथाओं का वर्णन किया जाता है.

देशभर में खेली जाने वाली होली से कई मायनों में अलग ये होली शिवरात्रि के बाद चीर बंधन के साथ शुरू होती है, जो छलड़ी तक चलती है. मंदिर से शुरू हुई ये होली गांव के हर घर में जाकर होली का गायन करते हैं. जिसके बाद परिवार को आशीष भी देते हैं. चंद शासन काल से चली आ रही यह परंपरा अपने महत्व को आज भी कुमाऊं की वादियों में समेटे हुए हैं.

खड़ी होली में झूमे होलियार

जहुर आलम को साल भर रहता है होली का इंतजार, कौमी एकता की मिसाल है नैनीताल की होली: नैनीताल में करीब 35 साल से सांस्कृतिक संस्था युग मंच का संचालन कर रहे जहूर आलम को साल भर रंगों के त्योहार होली का इंतजार रहता है. बैठकी होली शुरू होते ही जहूर आलम पर होली का खुमार चढ़ने लगता है. वो अपने काम छोड़ कर होली गायन से लेकर नयना देवी मंदिर में आयोजित होने वाले होली महोत्सव को आयोजित करवाते हैं.

जहूर आलम के प्रयास से नैनीताल में बीते 35 साल से खड़ी होली का आयोजन होता आ रहा है. जिसमें अल्मोड़ा, चंपावत, बागेश्वर समेत तमाम पहाडी क्षेत्रों से होलियार होली गायन के लिए नैनीताल पहुंचते हैं. होली के इस पर्व में जहूर का पूरा परिवार और समुदाय के लोग भी तन मन से होली के सफल आयोजन में प्रतिभाग करते हैं, जो कौमी एकता की एक अनूठी मिसाल है.

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