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अगर ये लड़का करगिल से लौट आया होता तो बनता भारत का सबसे युवा सेनाध्यक्ष, यहां पढ़िए परमवीर विक्रम बत्रा की कुछ अमिट कहानियां - Captain Vikram Batra

By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Jul 24, 2024, 5:03 PM IST

Captain Vikram Batra Story: जब-जब कारगिल युद्ध की बात होती है, तो कैप्टन विक्रम बत्रा के जिक्र के बिना ये गाथा अधूरी रह जाती है. देवभूमि हिमाचल के वीर और मां भारती के लाल कैप्टन विक्रम बत्रा ने कारगिल की चोटियों को दुश्मनों से बचाते हुए देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया था और हमेशा-हमेशा के लिए अमर हो गए. आइए जानते हैं विक्रम बत्रा से जुड़े कुछ खास किस्से...

Captain Vikram Batra
कैप्टन विक्रम बत्रा (Etv Bharat GFX)

शिमला: भारत मां का अमर लाल विक्रम बत्रा...करगिल के इस शेर की कहानियों का रंग न कभी फीका होगा और न ही इन कहानियों का शौर्य कभी मिट सकता है. करगिल युद्ध में अदम्य साहस वाला ये शूरवीर पाकिस्तान की नापाक फौज पर काल बनकर टूटता था. बेशक इस वीर ने 7 जुलाई को भारत मां के लिए सर्वोच्च बलिदान दे दिया, परंतु ये महानायक सदा-सर्वदा के लिए भारतीय शौर्य गाथाओं में चमकता सितारा रहेगा.

कारगिल युद्ध के दौरान अपने साथियों के साथ कैप्टन विक्रम बत्रा (फाइल फोटो)

इसी वीर के लिए उस समय के भारतीय थल सेना के मुखिया जनरल वीपी मलिक ने कहा था-अगर ये लड़का करगिल से लौट आया होता तो पंद्रह साल बाद देश का सबसे युवा सेनाध्यक्ष बनता. करगिल की चोटियों के हर कण में विक्रम की शौर्य गाथा घुली हुई है. उस गाथा की सुगंध अभी भी अनुभूत की जा सकती है. भारत की सैन्य परंपरा के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र के साथ विक्रम बत्रा का नाम अमर हो चुका है. यहां इस परमवीर की कुछ प्रेरक कहानियां हैं. आज की और भविष्य की पीढ़ी को निरंतर इन शौर्य गाथाओं का सुमिरन करना चाहिए.

सितंबर 1974 को धरा पर आया परमवीर

विक्रम बत्रा का जन्म देवभूमि हिमाचल के पालमपुर के छोटे से गांव घुग्गर में हुआ था. वर्ष 1974 के सितंबर महीने की वो 9 तारीख थी, जब ये परमवीर इस धरा पर आया. अपनी मां की कोख से विक्रम बत्रा अकेले नहीं आए, उनके साथ जुड़वां भाई के रूप में विशाल ने भी जन्म लिया. पिता जीएल बत्रा छुटपन से ही विक्रम को महान देशभक्तों व बलिदानियों की गौरव गाथा सुनाते थे. इन गाथाओं को सुनकर ही विक्रम ने भारतीय सेना का हिस्सा बनने की ठान ली थी. डीएवी स्कूल पालमपुर में आरंभिक पढ़ाई के बाद विक्रम बत्रा चंडीगढ़ आकर कॉलेज की पढ़ाई करने लगे. वर्ष 1996 में वे सैन्य अकादमी देहरादून के लिए चयनित हुए. कमीशन हासिल करने के बाद उनकी नियुक्ति 13 जैक राइफल में हुई. इस तरह विक्रम बत्रा की सैन्य पारी आरंभ हो गई थी.

कारगिल की चोटी पर कैप्टन विक्रम बत्रा (फाइल फोटो)

पावन मंत्र बन गया-ये दिल मांगे मोर

नापाक देश पाकिस्तान ने करगिल की चोटियों पर घुसपैठ कर ली थी. भारतीय सेना को एक ऐसे युद्ध का सामना करना पड़ा, जिसमें दुश्मन सैनिक चोटी पर थे और भारत के वीर जमीन से एक कठिन संघर्ष में उलझ चुके थे. देश की सरकार ने करगिल की चोटियों को दुश्मन के कब्जे से छुड़वाने के लिए ऑपरेशन विजय शुरू किया. इस ऑपरेशन में देश को विजय मिली, लेकिन उस विजय की भारी कीमत चुकानी पड़ी. विक्रम बत्रा की डेल्टा कंपनी को करगिल में पॉइंट 5140 को कैप्चर करने का आदेश मिला. दुश्मन सेना की हर बाधा को ध्वस्त करते हुए विक्रम बत्रा और उनके साथियों ने पॉइंट 5140 की चोटी को कब्जे में कर लिया. विक्रम बत्रा ने युद्ध के दौरान कई दुस्साहसिक फैसले लिए थे. युद्ध के दौरान विक्रम बत्रा और उनके साथियों को एक के बाद एक सफलता मिलती चली गई. इसी सफलता में विक्रम का उद्घोष-ये दिल मांगे मोर एक पावन मंत्र बन गया था.

कैप्टन विक्रम बत्रा और उनके साथी (फाइल फोटो)

20 जून को आमने-सामने की लड़ाई में मौत के घाट उतारे थे चार पाक फौजी

विक्रम बत्रा के साहस और शौर्य की गूंज भारत के हर घर में पहुंच चुकी थी. पॉइंट 5140 की लड़ाई में विक्रम बत्रा ने आमने-सामने की लड़ाई में चार पाकिस्तानी फौजियों को अपने मुक्कों के प्रहार से ही युद्ध भूमि में खेत कर दिया. इसका जिक्र तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल वीपी मलिक ने अपनी किताब-करगिल एक अभूतपूर्व विजय में किया है. किताब के पन्ना नंबर 155 में बिंदु 5140 पर कब्जा शीर्षक से लिखे अध्याय में जनरल मलिक ने दर्ज किया-"बिंदु 5140 पर पहुंचने वाली दक्षिणी ढलान 13 जैक राइफल्स की बी और डी कंपनी चढ़ गई. इस युद्ध में कैप्टन विक्रम बत्रा ने प्रेरणादायी वीरता और नेतृत्व का परिचय दिया. इस खतरनाक युद्ध में आमने-सामने हाथापाई जैसी भिड़ंत में कैप्टन विक्रम बत्रा ने चार पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया. उनकी सफलता का संकेत अपने कमांडिंग ऑफिसर को ये दिल मांगे मोर कहना ऐसी बातें हैं, जिनसे वीरता की गाथाएं रची जाती हैं."

कारगिल युद्ध में अपने साथियों के साथ कैप्टन विक्रम बत्रा (फाइल फोटो)

पॉइंट 4875 ने बदली युद्ध की तस्वीर, लेकिन विदा हुआ भारत मां का परमवीर

द्रास सेक्टर में पॉइंट 5140 को फतह करने वाली विक्रम बत्रा की 13 जैक राइफल्स को नई जिम्मेदारी मिली. ये जिम्मेदारी पॉइंट 4875 पर कब्जे की थी. पहली जुलाई 1999 को बटालियन के वीर मश्कोह घाटी में इकट्ठे हो गए. तीन दिन तक योजना बनाई गई और फिर आक्रमण कर दिया गया. इसी लड़ाई में विक्रम बत्रा के एक और साथी और वीरभूमि के वीर सपूत राइफलमैन संजय कुमार भी थे. जी हां, वही संजय कुमार जो इस समय सूबेदार मेजर हैं और परमवीर चक्र से अलंकृत हुए हैं. चार जुलाई को राइफलमैन संजय कुमार ने ही पॉइंट 4875 की समतल चोटी वाले हिस्से पर कब्जे के लिए आगे बढ़कर नेतृत्व किया था. इस समतल चोटी पर संजय कुमार की अतुलनीय वीरता के कारण ही उन्हें परमवीर चक्र दिया गया था. खैर, 4875 के नार्थ वाले हिस्से पर कब्जे के बिना ये लड़ाई नहीं जीती जा सकती थी. इस नार्थ वाले हिस्से को फतह करने वाले वीर विक्रम बत्रा ही थे.

जनरल वीपी मलिक ने अपनी किताब के 171 नंबर पन्ने पर दर्ज किया है-"7 जुलाई 1999 को कैप्टन विक्रम बत्रा ने अपने सैनिकों का नेतृत्व करने का फैसला लिया. आक्रमण का नेतृत्व भी कैप्टन बत्रा ने खुद किया. आमने-सामने की लड़ाई में विक्रम बत्रा ने पांच पाकिस्तानी फौजी मार गिराए. इस दौरान वे बुरी तरह से घायल हो गए थे. साथियों ने उन्हें मोर्चे से हटने के लिए आग्रह किया, लेकिन वे नहीं माने. पहली जुलाई से लेकर अब तक विक्रम बत्रा काफी थक भी गए थे. जनरल वीपी मलिक लिखते हैं कि आखिरकार जो कार्य सैन्य दृष्यि से असंभव माना जाता था, विक्रम बत्रा उसे पूरा करने में सफल हुए.

आह! दुख और पीड़ा ये कि इस युद्ध अभियान में विक्रम बत्रा ने सर्वोच्च बलिदान दे दिया. उन्हें इस अप्रतिम शौर्य के लिए परमवीर चक्र (बलिदान उपरांत) दिया गया"

कैप्टन विक्रम बत्रा (फाइल फोटो)

आकाश में चमकता सितारा है विक्रम

कैप्टन विक्रम बत्रा बेशक करगिल युद्ध में बलिदान हो गए, लेकिन उन्हीं के नेतृत्व में वीरों ने सबसे कठिन पॉइंट 4875 को अपने कब्जे में लिया था. इस युद्ध में विक्रम के असाधारण शौर्य के कारण ही विजय का मार्ग प्रशस्त हुआ. पाकिस्तान के फौजियों में विक्रम के नाम का खौफ था. विक्रम का कोड नेम शेरशाह था. सचमुच विक्रम बत्रा करगिल का शेर ही था. युद्ध के दौरान टीवी पर विक्रम का एक छोटा सा साक्षात्कार आया था. उसमें बढ़ी हुई दाढ़ी में सचमुच का शेर लग रहे भारत मां के इस सपूत ने जब ये दिल मांगे मोर का उद्घोष किया था तो नई पीढ़ी के युवाओं का भारतीय सेना के प्रति आकर्षण और बढ़ गया था.

हिमाचल के विख्यात शायर अमर सिंह फिगार की एक रचना की पंक्तियां हैं-
'हर कदम बिखरा के अपना खून अपनी बोटियां
जब शहीदों ने बचाई करगिल की चोटियां'

सचमुच विक्रम बत्रा सरीखे वीरों के कारण ही भारत मां को गर्व करने के अनेक अवसर मिले हैं. पालमपुर से लेकर चंडीगढ़ और देहरादून से लेकर कश्मीर तक विक्रम बत्रा के शौर्य की गाथा गाई जाती है. यही नहीं, सरहद लांघ कर दुनिया के सभी कोनों में जितने भी सैन्य अभियान हुए हैं, उनमें सबसे कठिन युद्ध करगिल का जिक्र विक्रम बत्रा के बिना अधूरा है. विक्रम के भाई विशाल एक दफा स्कॉटलैंड की यात्रा पर गए थे. वहां एक टूरिस्ट प्लेस पर विजिटर बुक में जब विशाल ने अपना नाम लिखा तो वहां मौजूद भारतीय ने बत्रा सरनेम लिखा देखकर पूछा-क्या आप विक्रम बत्रा को जानते हैं? विशाल अपने भाई के बारे में सुनकर हैरत में रह गए. सोचने लगे...इतनी दूर विदेश में भी विक्रम बत्रा अपने नाम के साथ जीवित हैं. इससे बढ़कर गर्व की बात भला और क्या होगी. ओ भारत मां के लाल, ये देश आपके प्रति कृतज्ञ रहेगा.

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