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कांगड़ा में दो ब्राह्मण चेहरों के बीच मुकाबला, शांता कुमार के शिष्य कांग्रेस दिग्गज को दे रहे टक्कर - kangra chamba lok sabha seat - KANGRA CHAMBA LOK SABHA SEAT

Anand sharma VS Rajeev bhardwaj: मंडी संसदीय सीट के बाद हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा सीट भी देशभर में हॉट सीटों में से एक बन गई है. कांग्रेस ने यहां से अपने कद्दावर नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा को मैदान में उतारकर मुकाबला रोचक बनाने के साथ ही राजनीति का पारा चढ़ा दिया. इस सीट पर कौन बाजी मारेगा इस पर देश भर की नजरें लगी हुई हैं. 2004 के बाद से कांग्रेस यहां अपना खाता खोलना चाहेगी. वहीं, बीजेपी अपने जीत के सिलसिले को बरकरार रखना चाहेगी.

KANGRA CHAMBA LOK SABHA SEAT
कांगड़ा में राजीव भारद्वाज (ईटीवी भारत)

By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : May 26, 2024, 6:24 PM IST

शिमला: कांगड़ा संसदीय क्षेत्र में चंबा के साथ-साथ कांगड़ा के कई क्षेत्रों में गद्दी जनजाति का भी प्रभाव है. इस जनजातीय वोट पर हर पार्टी की निगाहें रहती हैं. गद्दी फैक्टर को इस सीट पर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. 2019 में बीजेपी की टिकट पर जीत हासिल करने वाले किशन कपूर भी गद्दी जनजाति से संबंध रखते हैं, लेकिन इस बार इस बार कांगड़ा में दो ब्राह्मण चेहरों की जंग होगी. कांग्रेस ने आनंद शर्मा और बीजेपी ने राजीव भारद्वाज को प्रत्याशी बनाया है.

इस सीट पर दोनों ही प्रत्याशियों का पहला लोकसभा चुनाव है. आनंद शर्मा जहां कद्दावर नेता और कैबिनेट में मंत्री रह चुके हैं. आनंद शर्मा केंद्र की राजनीति में जाना पहचाना नाम है. मनमोहन सरकार में उनके पास वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय की जिम्मेदारी थी. एक समय आनंद शर्मा गांधी परिवार की खिलाफ मोर्चा खोलने वाले जी-23 ग्रुप का हिस्सा थे. आनंद शर्मा ने हिमाचल में सिर्फ एक बार साल 1982 में विधानसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन चुनाव में हार मिली थी. इसके बाद वो चार बार राज्यसभा के सदस्य रह चुके हैं, इनमें से तीन बार हिमाचल के रास्ते राज्यसभा पहुंचे. अब लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करना उनके लिए बड़ी चुनौती है.

वहीं, बीजेपी उम्मीदवार इससे पहले कभी कोई चुनाव नहीं लड़े. राजीव भारद्वाज शांता कुमार के करीबी हैं. शांता कुमार और राजन सुशांत के बाद बीजेपी एक ब्राह्मण चेहरे की तलाश में थी. स्थानीय नेताओं का मानना है कि शांता कुमार से करीबी रिश्ते होने के कारण वो टिकट झटकने में कामयाब रहे. 2019 में सांसद बने किशन कपूर ने हिमाचल में सबसे ज्यादा वोट से जीत हासिल की थी, लेकिन बीजेपी ने उनका टिकट काट दिया और नए चेहरे को मैदान में उतारा. दरअसल हर बार चेहरा बदलना बीजेपी के लिए इस सीट पर हिट फॉर्मूला रहा है. 2004 के बाद इस सीट से बीजेपी ने हर चुनाव में यहां से नया चेहरा उतारकर लगातार चार पर जीत का चौका लगाया है.

राजीव भारद्वाज पर क्यों खेला दांव:बीजेपी ने 2009 में राजन सुशांत, 2014 में शांता कुमार और 2019 में किशन कपूर को टिकट दिया था. एक बार फिर बीजेपी ने चेहरा बदलकर अपना फॉर्मूला दोहराया है. दरअसल हर बार चेहरा बदलने के पीछे बीजेपी की रणनीति जनता की नराजगी को कम किया जाए. उदयवीर पठानिया ने इसका एक और कारण बताते हुए कहते हैं कि पिछली बार भारी मतों से चुनाव जीतने के बाद सांसद किशन कपूर निष्क्रिय हो गए थे. ऐसे में जनता की नारजागी थी और इसे शांत करने के लिए बीजेपी ने राजीव भारद्वाज पर दांव खेला है.

मतदाताओं की संख्या: कांगड़ा संसदीय सीट पर सबसे अधिक मतदाता हैं. यहां 15 लाख 24 हजार 32 मतदाता हैं. 7 लाख 76 हजार 880 पुरुष और 7 लाख 47 हजार 147 महिला वोटर्स हैं. वहीं, 5 थर्ड जेंडर वोटर्स हैं. कुल मतदताओं में 8 ओवरसीज मतदाता हैं. यहां 21 हजार 518 सर्विस वोटर भी मतदान करेंगे.

कांगड़ा-चंबा में मतदताओं की संख्या (ईटीवी भारत)

जातीय समीकरण: कांगड़ा में सामान्य वर्ग के लगभग 25, एसटी वर्ग के 30 प्रतिशत ओबीसी वर्ग के 27, एससी वर्ग के 18 प्रतिशत के वोटर्स हैं. इन सभी मतदाताओं खासकर सामान्य, एसटी और ओबीसी वोटर्स पर दोनों पार्टियों की नजर है. विधानसभा चुनाव के समय कांगड़ा संसदीय क्षेत्र में बीजेपी ने एक भी ब्राह्मण उम्मीदवार नहीं उतारा था और 17 विधानसभा सीटों में से 11 में हार का मुंह देखना पड़ा था. शायद ये भी एक वजह हो सकती है, जिसके कारण दोनों पार्टियों ने समीकरणों को भांप कर ब्राह्मण चेहरों को तरजीह दी हो.

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कांगड़ा सीट पर काम नहीं करते जातीय समीकरण: स्थानीय पत्रकार उदयवीर पठानिया के अनुसार 'यहां सब जातीय समीकरण फेल हो जाते हैं. जातीय समीकरण पार्टियों और मीडिया की गढ़ी धारणा है. वैसे भी कांग्रेस ने भी ब्राह्मण चेहरा उतारकर जातीय समीकरणों को शून्य कर दिया है. ऐसे में जातीय फैक्टर का लाभ किसी के पक्ष में नहीं जाएगा. यहां हिमाचल में मतदाता जाति के आधार पर मतदान नहीं करता, बल्कि उम्मीदवार को देखकर वोट देता है.'कांगड़ा संसदीय सीट से ब्राह्मण और खत्री जाति के नेताओं को कई बार संसद भेज चुका है. ब्राह्मण जाति से शांता कुमार, राजन सुशांत, राजपूत जाति से डीडी खंडूरिया, चंद्रेश कुमारी, ओबीसी जाति से श्रवण कुमार, चंद्र कुमार जैसे नेता जीत हासिल कर चुके हैं. यहां जातीय समीकरण काम नहीं करते.

एक तरफ बीजेपी बीजेपी कार्यकर्ता जनता के बीच पहुंच कर पीएम मोदी के 10 साल में किए गए कार्यों को गिना रहे हैं, जिसमें धारा 370, राम मंदिर निर्माण, सीएए जैसे कामों पूरा करने और राज्य सरकार की गारंटियों को पूरा न होने का प्रचार कर रहे हैं. दूसरी तरफ बीजेपी का आरोप है कि आनंद शर्मा बाहरी हैं. उनका हिमाचल से कोई लेना-देना नहीं है. बीजेपी ने अपना उम्मीदवार भी काफी पहले घोषित कर दिया था. ऐसे में उसके पास प्रचार के लिए अधिक समय था. वहीं, कांग्रेस ने उम्मीदवार घोषित करने में कुछ देरी की थी. इसलिए आनंद शर्मा को प्रचार करने का मौका कम मिला है. आनंद शर्मा के लिए अच्छी स्थिति यह है कि कांगड़ा संसदीय क्षेत्र में सम्मानजनक कैबिनेट पद दिए किए हैं. 17 विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस के पास 11 सीटें हैं. ऐसे में कांग्रेस विधायकों के पास अपने प्रत्याशी को लीड दिलवाने की जिम्मेदारी होगी. बीजेपी के बाहरी वाले बयान पर आनंद शर्मा ने कहा कि छात्र जीवन में एनएसयूआई के संस्थापक सदस्यों में एक थे और कांगड़ा-चंबा मं एनएसयूआई की इकाइयों की स्थापना के लिए उनका आना-जाना कांगड़ा और चंबा में लगा रहता है, वो आज भी हिमाचली ही हैं बेशक उनकी ड्यूटी संगठन ने दिल्ली में लगा रखी थी.

कांगड़ा जिले में ही कुल 15 विधानसभा क्षेत्र हैं. कांगड़ा जिले के देहरा और जसवां प्रागपुर को छोड़ सभी कांगड़ा लोकसभा क्षेत्र में आती हैं. इसके अलावा चंबा जिले की 5 में से 4 विधानसभा सीटें भी कांगड़ा संसदीय क्षेत्र का हिस्सा हैं. कांगड़ा लोकसभा क्षेत्र में ज्वालामुखी, जयसिंहपुर, सुलह, नगरोटा, फतेहपुर, ज्वाली, चुराह, चंबा, डल्हौजी, भटियात, नूरपुर, इंदौरा, कांगड़ा, शाहपुर, धर्मशाला, पालमपुर, बैजनाथ विधानसभा सीटें आती हैं.

कांगड़ा चंबा लोकसभा सीट के मुद्दे: स्थानीय पत्रकार उदयवीर पठानियां कहते हैं कि सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण यहां के बड़े मुद्दों में शामिल हैं. चंबा में आज भी स्वास्थ्य सेवाएं सहीं से काम नहीं कर रही हैं. चंबा मेडिकल कॉलेज अभी भी पूरी तरह से मरीजों का भार अपने कंधों पर उठाने के लिए तैयार नहीं है. दूसरा आपदा से हो रहा नुकसान और भूस्खलन चंबा जैसे क्षेत्रों में लोगों के बीच बड़ा मुद्दा है. बीते बर्ष जिस तरह से प्रदेश में त्रासदी हुई थी, चंबा भी उससे अछूता नहीं रहा है.

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