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Rajasthan: जोधपुर में इस चूरमे की चक्की के लोग हैं दीवाने, 85 साल से वही स्वाद और तरीका, लेने के लिए लगती है लाइन

जोधपुर में बनने वाली चूरमे की चक्की आज भी लकड़ी की भट्टी पर बनाई जाती है. इसे खरीदने के लिए लोगों की लाइन लगती है.

चूरमे की चक्की
चूरमे की चक्की (ETV Bharat GFX)

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : 4 hours ago

जोधपुर :सूर्यनगरी यूं तो खान पान के लिए जानी जाती हैं. यहां तरह-तरह की मिठाइयां बनती हैं, जिनको लेकर शहरवासी ही नहीं बाहर से आने वाले लोग भी मुरीद हैं, लेकिन शहर से दस किमी दूर मंडोर स्थित एक शॉप पर बनने वाली चूरमा की चक्की (बेसन की बर्फी) सबसे अलग है. इसे चूंटियां की चक्की भी कहा जाता है.

स्वदेशी मिष्ठान भंडार पर आज भी यह मिठाई परंपरागत तरीके से बनाई जाती है. यहां पर आज भी ये मिठाई लकड़ी की भट्टी पर बनती है. इतना ही नहीं प्रतिदिन सीमित मात्रा में ये मिठाई बनाई जाती है, जो कुछ घंटों में ही खत्म हो जाती है. दिवाली के मौके पर ज्यादा मांग को देखते हुए मिठाई की मात्रा थोड़ी बढ़ा दी जाती है, लेकिन इसके लिए भी लोगों को कतार में लगना पड़ता है. इतना ही नहीं जो लोग पांच किलो चक्की लेने आते हैं, उन्हें एक या दो किलो ही मिलती है. संचालक राजेश अरोड़ा बताते हैं कि निर्माण में क्वालिटी से कभी समझौता नहीं किया जाता है. इसके चलते दूर-दराज से लोग ये चक्की लेने आते हैं.

जोधपुर में इस चूरमे की चक्की के लोग हैं दीवाने. (ETV Bharat jaipur)

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एक ही स्वाद के लोग मुरीद :मंडोर से करीब दस किमी दूर रातानाड़ा से आए सोहनलाल माली ने बताया कि वे बरसों से यह मिठाई खाते आ रहे हैं. चक्की शहर में अन्य जगह पर भी बनती है, लेकिन इस जैसी बात किसी में नहीं है. शुद्ध देशी घी मे बनने वाली इस चक्की की बात ही कुछ और है. उन्होंने बताया कि बचपन में उनके पिताजी भी इसी दुकान से चक्की लाते थे. आज वो अपने पोते और दोहितों के लिए लेने आते हैं. उन्होंने बताया कि "मैंने पहले फोन किया था. मुझे जो समय दिया गया, उससे पहले ही आया हूं, क्योंकि पता नहीं चलता यहां कभी भी चक्की खत्म हो जाती हैं." मनीष भाटी ने बताया कि वह पांच किलो चक्की लेने आए थे, लेकिन उन्हें एक किलो ही मिली, क्योंकि ग्राहक ज्यादा हैं. इसके लिए भी वह तीन घंटे से इंतजार कर रहे थे. सिर्फ क्वालिटी के लिए. सामान्य दिनों में भी दोपहर चार बजे तक इस दुकान पर कुछ नहीं बचता है.

85 साल से एक ही तरीका चक्की बनाने का :यहां पर परंपरागत तरीके से बेसन से ही चूरमा तैयार होता है. लकड़ी की भट्टी पर बेसन को घी के साथ भूना जाता है. इससे उम्दा स्वाद बनता है. संचालक राजेश अरोड़ा ने बताया कि उनके दादाजी ने 85 साल पहले यह दुकान शुरू की थी, तब से वो इसे चला रहे हैं. चक्की बनाने का एक ही तरीका है, जिसके चलते लोग बरसों से इसे पंसद करते आ रहे हैं. यहां पर रविवार को स्पेशल ठोर भी बनता है, जिसके लिए भी लोग सुबह दस बजे से यहां पहुंच जाते हैं.

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