रांची:झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद अब एक तरफ जहां झामुमो में जश्न का माहौल है. तो वहीं दूसरी तरफ बीजेपी ये मंथन कर रही है आखिर गलती कहां हुई. बीजेपी ने जिन लोगों पर भरोसा किया था वे अपने काम में खरे नहीं उतर पाए. ऐसे में उनके राजनीतिक भविष्य पर भी एक बड़ा प्रश्न चिन्ह लग गया है.
झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 के नतीजे जिस तरह से आएं उसने कई नेताओं की साख को जरूर कम कर दिया है. इसमें चार पूर्व सीएम भी शामिल हैं जो बीजेपी में थे. इनमें सबसे बड़ा नाम बाबूलाल मरांडी का है. इसके बाद अर्जुन मुंडा, चंपाई सोरेन और मधु कोड़ा का नाम भी शामिल हैं. ये नेता अपने क्षेत्र में किसी भी तरह का प्रभाव स्थापित करने में नाकाम रहें.
बाबूलाल मरांडी की साख पर लगा बट्टा
सबसे पहले बात करते हैं बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी की. माना जा रहा है कि बाबूलाल मरांडी की इस चुनाव में खुली छूट दी गई थी. जेवीएम से बीजेपी में आने के बाद उन्हें प्रदेश अध्यक्ष भी बनाया गया था. वे महीनों से झारखंड के लोगों की मूड भांप रहे थे और चुनाव में उठाए जाने वाले मुद्दों पर फोकस कर रहे थे. बाबूलाल मरांडी के समर्थक भी उन्हें झारखंड के अगले सीएम के रूप में पेश कर रहे थे. लेकिन इस बार बाबूलाल मरांडी की कोई भी रणनीति काम नहीं आई. वे खुद भी बहुत बड़ी जीत दर्ज नहीं करा पाए. उनके विधानसभा सीट पर निशिकांत दुबे, हिमंता बिस्वा सरमा और खुद अमित शाह को रणनीति बनानी पड़ी. आखिरी समय में निरंजन राय को बीजेपी में शामिल कराया गया. अगर सबकुछ ठीक रहा तो अगला चुनाव 5 साल बाद 2029 में आएगा. तब तक बाबूलाल मरांडी की उम्र 71 साल हो जाएगी और तब वे कितने प्रासंगिक होंगे ये कहना मुश्किल है.
अर्जुन मुंडा को भी लगा झटका
लोकसभा चुनाव 2024 में खूंटी लोकसभा सीट से अर्जुन मुंडा को मिली हार के बाद भी पार्टी ने उनकी बात सुनी और उनकी पत्नी मीरा मुंडा को पोटका विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाया. खरसावां का यह सीट अर्जुन मुंडा के प्रभाव वाला इलाका माना जाता रहा है. अर्जुन मुंडा लगातार चुनाव प्रचार करते रहे. लेकिन इसके बाद भी वे अपनी पत्नी को जीत नहीं दिला सकें. मीरा मुंडा झामुमो उम्मीदवार संजीव सरदार से बड़े अंतर से हार गईं. एक के बाद एक लगातार दो हार के बाद अब पार्टी में उनका कद क्या होगा यह कहना मुश्किल है.
चंपाई सोरेन खुद तो जीते लेकिन कोई करिश्मा नहीं कर पाए
चुनाव से ठीक पहले बीजेपी ने झामुमो के कद्दावर नेता और पूर्व सीएम चंपाई सोरेन को पार्टी में शामिल कराया. पार्टी को उम्मीद थी की चंपाई सोरेन के आने से उन्हें पूरे कोल्हान में फायदा होगा. चंपाई सोरेन भी विक्टिम कार्ड खेल कर लोगों से वोट मांग रहे थे. बीजेपी को इनपर इतना भरोसा था कि सरायकेला से इन्हें टिकट तो दिया ही. इनके साथ इनके बेटे को भी घाटशिला विधानसभा सीट से टिकट दिया गया. चंपाई सोरेन खुद को जीत गए लेकिन अपने बेटे तक को जीत नहीं दिला सके. बीजेपी को उनके आने का किसी तरह का कोई फायदा नहीं हुआ. किसी भी आदिवासी सीट पर चंपाई सोरेन जीत नहीं दिला सके. चंपाई सोरेन की उम्र अब 68 साल हो चुकी है. ऐसे में अगर अगला विधानसभा चुनाव 2029 में होता है चो चंपाई सोरेन कितने फिट रहते हैं ये कहना मुश्किल है.
मधु कोड़ा और गीता कोड़ा का क्या होगा
मधु कोड़ा का नाम इतिहास में इसलिए दर्ज है क्योंकि भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था कि एक निर्दलीय विधायक सीएम बना. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि मधु कोड़ा कितने प्रभावशाली रहे होंगे. मधु कोड़ा ने इसके बाद सिंहभूम सीट से लोकसभा सांसद भी रहे. आरोप सिद्ध होने के बाद मधु कोड़ा ने अपनी पत्नी गीता कोड़ा को सांसद बनवाया. 2019 में भी गीता कोड़ा कांग्रेस की टिकट पर संसद पहुंची. लेकिन 2024 के चुनाव में उन्होंने पाला बदला और बीजेपी ज्वाइन कर लिया. लेकिन वे 2024 लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करने में नाकाम रहीं. इसके बाद बीजेपी ने उन्हें विधानसभा चुनाव में भी मौका दिया, लेकिन एक बार फिर उसे हार का सामना करना पड़ा. इस रिजल्ट से ये माना जा रहा है कि कोड़ा दंपती का कोल्हान में प्रभाव अब पूरी तरह से खत्म हो गया है. अब उनका राजनीतिक भविष्य क्या होगा, ये कहना मुश्किल है.
सीता सोरेन सोरेन की राह हुई मुश्किल
सोरेन खानदान की बहू सीता सोरेन ने झामुमो और परिवार से बगावत करते हुए 2024 लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी ज्वाइन कर लिया था. बीजेपी ने उन्होंने दुमका लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया. लेकिन इस सीट से वे जीत हासिल करने में नाकाम रहीं. इसके बाद पार्टी ने उन्हें झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 में जामताड़ा से उम्मीदवार बनाया. यहां उनका सामना कांग्रेस विधायक इरफान अंसारी से था. यहां भी सीता सोरेन को हार का सामना करना पड़ा. इसके अलावा सीता सोरेन कभी भी बीजेपी को बढ़त दिलाने में भी नाकाम रहीं. ऐसे में अब माना जा रहा है कि सीता सोरेन के लिए बीजेपी की राह आसान नहीं होने वाली है.
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