जयपुर : फिल्म अभिनेता और निर्देशक महाराज कृष्ण रैना शुक्रवार को जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में एक संवाद के दौरान इला अरुण की कश्मीर पर हो रही बात के बीच मंच से उठकर चले गए थे. इसके बाद ईटीवी भारत के साथ बातचीत में रैना ने कश्मीर, कश्मीरियत और अपनी किताब 'Before I Forget' को लेकर बात की. उन्होंने बताया कि यह किताब ऐसे किस्सों से भरी है, जो उनकी प्रोफेशनल जिंदगी का हिस्सा नहीं है. यह किताब उनकी जिंदगी पर सांस्कृतिक और राजनीतिक असर को बयान करती है. यह किताब ताकत और दर्द को बयां करती है. एमके रैना कहते हैं कि जब उनका स्कूल बंद हो गया था, सिख विरोधी दंगे जैसी घटनाओं का उन पर क्या असर हुआ, यह किताब वो सब बयां करती है. यह किताब बताती है कि आजादी के बाद एक आजाद शख्स का इस देश में सफर कैसा रहा.
फिल्मकार कश्मीर में डल ही देखते हैं :एमके रैना का कहना है कि कश्मीर सिर्फ डल झील तक ही सीमित नहीं है. परेशानी इस बात की है कि फिल्मकारों को सिर्फ डल ही नजर आती है. यह श्रीनगर में है और इसे कैमरे पर कैद करना आसान है, जबकि कश्मीर की असली खूबसूरती पर उन्होंने अभी तक फिल्म नहीं देखी है. इस दौरान वे मनी कौल की डॉक्यूमेंट्री 'बिफोर माई आइज' का जिक्र करते हैं, जिसमें कश्मीर की वादियों के नजारे को दिखाया गया है. रैना बताते हैं कि यह डॉक्यूमेंट्री अद्भुत है, जिसे बैलून पर चढ़कर शूट किया गया है. सौंदर्य के नजरिए से बॉलीवुड के फिल्मकारों को इस बात की भी शायद ही समझ हो कि कैमरा कहां लगाना है ?
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कश्मीरी खुद बनाएंगे फिल्म: एमके रैना का कहना है कि बॉलीवुड की स्टोरी डिमांड में कश्मीर की खूबसूरती को शामिल नहीं किया जा सकता है, इसलिए जरूरी है कि खुद कश्मीरी ही फिल्म बनाएं. इस पर काम शुरु कर दिया गया है. कश्मीरी फिल्म 'बट कोच' यानी पंडितों की गली का जिक्र करते हुए रैना कहते हैं कि उन्होंने कश्मीरी युवाओं की इस पहल का साथ दिया और फिल्म में अभिनय भी किया है.