जबलपुर। प्रगतिशील किसान खुद भी टिशू कल्चर के जरिए अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं. वहीं इनके प्लान के अनुसार यदि दूसरे किसान खेती करते हैं, तो वह भी करोड़पति बन सकते हैं. टिशू कल्चर प्लांट्स के जरिए की जाने वाली एग्रोफोरेस्ट्री से देश के कई इलाकों के किसानों ने अच्छा मुनाफा कमाया है. जबलपुर में भी अब यह प्रयोग शुरू हुआ है. इस खेती के जरिए छोटे किसान करोड़पति बन सकते हैं और यह किसानों के लिए एक रिटायरमेंट प्लान भी हो सकता है.
खेती को घाटे का धंधा कहा जाता है, लेकिन भारत में आज भी 70% आबादी खेती पर ही आधारित है. सरकारों की लाख कोशिश के बाद भी खेती पर आम आदमी की निर्भरता घट नहीं रही है. आधुनिक खेती में बढ़ती लागत खेती घाटे का धंधा बनती जा रही है, लेकिन एक खेती ऐसी भी है, जो किसानों की किस्मत बदल सकती है.
उत्साही किसान के प्रयोग
किसान सामान्य तौर पर परंपरागत खेती ही करता है, लेकिन अब खेती में कुछ उद्यमी किस्म के किसान भी अपनी किस्मत आजमाने लगे हैं. इन्हीं में से एक हैं जबलपुर के पंकज जैन. पंकज जैन ने पहले गुलाब की खेती की थी, लेकिन वह असफल रहे और उन्हें नुकसान भी हुआ, लेकिन पंकज ने हार नहीं मानी और उन्होंने सागौन के टिशू कल्चर पर काम करना शुरू किया. उन्होंने एक पुराने टिशू कल्चर लैब को खरीदा और इस नए तरीके से विकसित करके, इसमें सागौन के टिशू कल्चर प्लांट बनाए हैं. बीते 1 साल में इन्होंने करोड़ों रुपए के लाखों टिशू कल्चर प्लांट बेचे हैं.
कैसे तैयार होता है टिशू कल्चर प्लांट
टिशू कल्चर तैयार करना एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है. पंकज जैन के साथ एक वैज्ञानिक रवि यादव भी काम कर रहे हैं. रवि यादव ने बायोटेक्नोलॉजी की पढ़ाई की है और उन्हें टिशू कल्चर की जानकारी है. उन्होंने ही सागौन के पेड़ों को तैयार किया है. टिशू कल्चर में जो पौधा तैयार होता है. उसके लिए एक मदर प्लांट से ग्रोइंग स्टेम ली जाती है. इन ग्रोइंग स्टेम को एक मीडियम में कंडीशनर टेंपरेचर और लाइट में रखकर माइक्रो प्लांट तैयार किए जाते हैं. इन माइक्रो प्लांट्स को दो बार नर्सरी में ही ट्रांसफर किया जाता है. फिर इनकी हार्डेनिंग की जाती है. इसके बाद इनका उपयोग खुले वातावरण में लगाने के लिए किया जा सकता है.
ढाई करोड़ तक कमा सकते हैं (Crores Earning From 1 Acre Land)