जबलपुर। किसी का बर्थडे हो और केक ना कटे ऐसा संभव नहीं है. आजकल छोटे-छोटे सेलिब्रेशन में केक जरूर काटा जाता है. केक खरीद कर हम जिन दुकानों से लाते हैं वहां यह केक बहुत खूबसूरत दिखते हैं. शोकेस में केक सजा हुआ होता है और देखने में इतना सुंदर लगता है कि उससे आंखें नहीं हटती. खाने में भी टेस्टी लगता है लेकिन कभी आपने यह जानने की कोशिश की है कि आखिर केक कैसे और कहां बनता है. हम दिखाते हैं आपको जबलपुर की पूजा बेकरी का आंखों देखा हाल जहां केक बनते हैं.
केक बनाने वाले बर्तन कभी नहीं धुले
केक बनाने से पहले डो को तैयार किया जाता है. इसमें मैदा, वनस्पति घी, कुछ एसेंस, कुछ कलर डालकर एक डो तैयार किया जाता है. इस डो को एक बर्तन में रखा जाता है. जिस बर्तन में इस डो को रखा जाता है वह कैसे होंगे इसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते. जबलपुर की पूजा बेकरी में जब जबलपुर का खाद्य विभाग पहुंचा तो उसे बर्तन को देखकर नहीं लग रहा था कि इस बर्तन को कभी धोया भी गया होगा. उसमें चारों तरफ पुराने केक की बची हुई लुगदी लगी हुई थी. काम करने वालों ने बालों को बांधने का कोई इंतजाम नहीं किया था. चारों तरफ गंदगी फैली हुई थी, केक के ऊपर मक्खियों बैठ रहीं थीं लेकिन जब इसी केक को तैयार किया गया तो वह देखने में बड़ा खूबसूरत दिख रहा था.
कर्मचारी नहीं रखते सफाई का ध्यान
यही हाल यहां बनने वाली पेस्ट्री, बिस्किट, टोस्ट जैसे सूखे बेकरी आइटम का भी था जिन्हें हम हाइजिनिक मानकर शौक से खाते हैं. दरअसल ये सब आइटम बड़ी गंदगी में बनाए जा रहे हैं. ऐसा नहीं है कि बनाने वाले को इसमें कोई फायदा नहीं हो रहा लेकिन वह अपना पैसा सफाई व्यवस्था पर खर्च करना नहीं चाहते. कर्मचारियों को जैसी व्यवस्था दे दी जाती है वह उसी में काम करने के लिए मजबूर होते हैं इसलिए इसमें कर्मचारियों की गलती नहीं है लेकिन बेकरी संचालक दोषी हैं.