बेरीनाग:ईजा कैसे पाल छ, कैसे खाऊ छै, भतेर खणी ना होच्छी, आज मेर च्यल नौकरी करके भै घर आ गयै. (बेटा मैंने तुझे कैसे पाला इतनी गरीबी थी. घर में एक समय का खाना नही होता था. आज मेरा बेटा नौकरी पूरी करके सकुशल घर लौट गया है) ये भावुक दृश्य पिथौरागढ़ जिले की बेरीनाग तहसील मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर उडियारी गांव का है. पेश है बेरीनाग से ईटीवी भारत संवाददाता प्रदीप महरा की रिपोर्ट.
आईटीबीपी से रिटायर होकर लौटा बेटा तो छलकी मां की आंखें:मौका था 53 साल के आईटीबीपी (Indo-Tibetan Border Police) के एएसआई (असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर) पद से रिटायर होकर घर लौटे सुरेंद्र सिंह महरा के स्वागत का. एएसआई सुरेंद्र सिंह महरा ने 33 साल तक आईटीबीपी में देश की सेवा करके अधिवर्षता आयु (किसी कर्मचारी की वह आयु, जिसके बाद उसकी सेवाओं को बनाए रखने को 'सेवा में वृद्धि' या 'पुनर्नियोजन' माना जाता है) पूरी करने से पहले ही रिटायरमेंट ले लिया. अपनी मां की सेवा और परिवार की देखभाल करने के लिए वो घर लौट आए.
रिटायरमेंट के बाद आईटीबीपी एएसआई का हुआ जोरदार स्वागत (VIDEO- ETV Bharat) गांव वालों ने सुरेंद्र का किया भव्य स्वागत:जब सुरेंद्र सिंह महरा रिटायर होकर लौटे तो पूरा गांव उनके स्वागत के लिए पलक-पांवड़े बिछाए हुए था. उनका फूल मालाओं से स्वागत हुआ. सबसे भावुक क्षण तब आया जब उनकी मां ने उन्हें गले लगाते हुए उनके बचपन से लेकर घर लौटने की यादों को नम आंखों से याद किया. मां से पुरानी बातें सुनकर सुरेंद्र सिंह महरा भी भावुक हो गए.
गरीब परिवार के उत्थान की भावुक कहानी:दरअसल सुरेंद्र सिंह महरा का जन्म उत्तराखंड के चीन के कब्जे वाले तिब्बत बॉर्डर से लगे उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में हुआ. इनका गांव उडियारी, बेरीनाग तहसील में स्थित है. 80 के दशक में इनका भरा-पूरा परिवार था, लेकिन खाने को पर्याप्त नहीं होता था. ऐसे में मां आस-पड़ोस से कई बार राशन मांगकर बच्चों का पेट भरती. लेकिन मां ने बच्चों को पढ़ने के लिए प्रेरित किया. उनका मानना था कि शिक्षा के उजाले से गरीबी के अंधेरे को दूर किया जा सकता है.
ITBP से रिटायर होकर लौटे सुरेंद्र तो गांव वालों ने किया स्वागत (PHOTO- ETV BHARAT) संघर्ष में बीता बचपन:तब सुरेंद्र सिंह की मां नदुली देवी और पिता गोविंद सिंह (अब स्वर्गीय) किसी तरह परिवार का पेट पाल रहे थे. संयुक्त परिवार था तो गोविंद सिंह के कंधों पर 5 भाइयों की जिम्मेदारी भी थी. तब नौकरी किसी की नहीं थी. खेती से जो अन्न पैदा होता, उसी से साल भर का गुजारा करना पड़ता था. गोविंद सिंह के दो पुत्र सुरेंद्र सिंह, नवीन सिंह और एक बेटी इंद्रा हुई.
सुरेंद्र के गांव लौटते ही मां ने दिया आशीर्वाद (PHOTO- ETV BHARAT) माता-पिता की मेहनत रंग लाई. सन 1990 में बड़ा पुत्र सुरेंद्र सिंह महरा आईटीबीपी में भर्ती हो गया. उसके बाद परिवार धीरे धीरे सामान्य स्थिति में आने लगा. सुरेंद्र आईटीबीपी की 35 वीं वाहनी में तैनात थे. सुरेंद्र ने आईटीबीपी में 33 वर्ष 3 माह की नौकरी करने के बाद घर में मां की सेवा करने के लिए अधिवर्षता आयु पूरी करने से पहले ही स्वेच्छा से सेवानिवृत्त ले ली.
रिटायर होकर लौटे बेटे को दुलार करती मां (PHOTO- ETV BHARAT) सुरेंद्र का बेटा बना बीएसएफ में सहायक कमांडेंट:तीन साल पहले सुरेंद्र का बड़ा बेटा संदीप महरा बीएसएफ में सहायक कमांडेंट के पद पर भर्ती हो गया. संदीप के छोटे भाई मंदीप ने भी कृषि विज्ञान से नेट क्वालीफाई किया है. सुरेंद्र सिंह की पत्नी दीपा देवी गृहणी हैं. सुरेंद्र सिंह ने बताया 33 वर्षों तक देश सेवा के दौरान कभी घर से दूर होने का अह्सास नहीं हुआ. उन्होंने युवाओं से आर्मी में भर्ती होकर देश सेवा करने की अपील की. सुरेंद्र के सेवानिवृत्त के मौके पर गांव में ही स्वागत समारोह का आयोजन किया गया था.
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