रांची:रोटी की खातिर अपने माता-पिता के साथ पलायन करने को मजबूर खूंटी की बिरसमनी की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं है. जब इस लड़की ने ईटीवी भारत को अपने बचपन का स्याह सच बताया तो ये वाकई किसी दर्द भरी कहानी से कम नहीं था. जिल उम्र में उसे आंगन में खेलना था, उस उम्र में उसके छोटे से हाथ ईंट भट्ठे में अपने माता-पिता की मदद करते रहे. जिस समय उसे स्कूल जाना चाहिए था वह समय ईंट भट्ठे पर बीता. सामाजिक संस्था आशा की नजर उस पर पड़ी, जिसने बिरसमनी की जिंदगी ही बदल डाली.
इस संस्था द्वारा छह साल की उम्र में बंगाल के हुबली से बचाकर रांची लाई गई बिरसमनी आज सफलता की नई लकीर खींचने की कोशिश कर रही है. 2011 में हुबली के ईंट भट्ठे से बचाई गई इस लड़की के लिए रांची के भुसूर स्थित आशा संस्था ही उसके घर का आंगन है. समय के साथ बड़े होते हुए बिरसमनी धनवार ने 2020 में कस्तूरबा प्लस टू हाई स्कूल घासीदास से 65% अंकों के साथ मैट्रिक पास की और फिर उसी स्कूल से 69.4% अंकों के साथ इंटरमीडिएट पूरा किया.
रांची के जेएन कॉलेज से बीए ज्योग्राफी में ग्रेजुएशन कर रही बिरसमानी आज पढ़ाई के साथ-साथ फुटबॉल में भी नाम रोशन कर रही है. अंडर-17 और अंडर-19 में झारखंड का नाम रोशन करने में सफल रही बिरसमनी राष्ट्रीय स्तर पर मशहूर हो गयी है. इन दिनों वह जहां अपने संस्था में रहने वाली लड़कियों को फुटबॉल सिखा रही है, वहीं दूसरे स्कूलों और पंचायतों में जाकर फुटबॉल कोच की जिम्मेदारी भी निभा रही है.
रोनाल्डो बनने का सपना, 7 नंबर की जर्सी है फेवरेट
रांची रैंकर्स नाम की टीम चलाने वाली आशा बिरसमनी रोनाल्डो से काफी प्रेरित है और यही वजह है कि वह जब भी मैदान में उतरती हैं तो सात नंबर की जर्सी पहनकर न सिर्फ महिला खिलाड़ियों को सीख देती हैं बल्कि मैच में विरोधी टीम के छक्के भी छुड़ा देती है.
ईटीवी भारत के साथ अपने पुराने दिनों को याद करते हुए बिरसमनी कहती है कि आम धारणा है कि फुटबॉल केवल पुरुषों का खेल है. लेकिन इस धारणा को मिटाने के लिए मैं उन सभी लड़कियों को प्रशिक्षित करती हूं जो यह खेल खेलना चाहती हैं और उन्हें फुटबॉल खेलने के लिए प्रेरित करती हूं. आज, 300 से अधिक महिला फुटबॉल खिलाड़ी हैं जो हर दिन मेरे साथ खेलती हैं. महिला खिलाड़ी उर्मिला खाखा और सविता कुमारी कहती हैं कि बिरसमनी की खेल प्रतिभा हमारे लिए प्रेरणादायक है.