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देश की 10 ट्रेनें रोज MP में हो रही चकाचक, इस तकनीक से 10 मिनट में सारे कोच जगमग - Indian rail automatic washing

एमपी से देश की 10 ट्रेनें रोज चकाचक होकर निकलती हैं. इनकी आटोमेटिक धुलाई भोपाल और जबलपुर में हो रही है. इसके साथ ही कोटा मंडल में भी 5 ट्रेनों की बाहरी धुलाई की जा रही है. इससे रेलवे की लागत में भी कमी आई है. वहीं कोच को धोने के लिए लगने वाले वाले पानी और समय की बचत भी हो रही है.

Indian rail automatic washing plant
रेलवे का ऑटोमैटिक कोच वॉशिंग प्लांट (ETV BHARAT)

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : May 21, 2024, 7:19 PM IST

भोपाल।पश्चिम मध्य रेलवे द्वारा निरंतर अत्याधुनिक सुविधाओं के लिए कदम उठाये जा रहे हैं. इस कड़ी में पश्चिम मध्य रेल जबलपुर, भोपाल के रानी कमलापति एवं कोटा के स्टेशनों के कोचिंग डिपो में प्राथमिक रखरखाव के दौरान कोचों की बाहरी धुलाई के लिए ऑटोमैटिक कोच वॉशिंग प्लांट स्थापित किए गए हैं.

333 कोचों की धुलाई कर रहा पश्चिम मध्य रेलवे

ऑटोमैटिक कोच वॉशिंग प्लांट से जबलपुर में 186 कोचों, रानी कमलापति में 50 कोचों एवं कोटा में 97 कोचों सहित के तीनों कोचिंग डिपो में औसतन प्रतिदिन 333 कोचों की बाहरी धुलाई की जा रही है. इन संयंत्रों में पानी की औसत खपत लगभग 65 लीटर प्रतिकोच, बिजली की खपत लगभग 1.33 यूनिट प्रति कोच और रासायनिक खपत 150 मिली प्रति कोच है.इस धुलाई प्रणाली से ट्रेनों के कोच बहुत अच्छे साफ और चमकदार दिखते हैं.

प्रतिवर्ष 10 करोड़ लीटर पानी की होगी बचत

ऑटोमैटिक कोच वॉशिंग प्लांट में पानी बचाने की क्षमता लगभग 1,00,000 किलोलीटर प्रति वर्ष है. यानि कि हर वर्ष करीब 10 करोड़ लीटर पानी की बचत होगी. वहीं स्वचालित कोच वाशिंग प्लांट को मैन्युअल धुलाई की तुलना में 66 प्रतिशत कम मानव शक्ति की आवश्यकता होती है.

सफाई के लिए केमिकल का कम से कम इस्तेमाल

मैनुअल कोच धुलाई में 3 से 4 घंटे लगते हैं, जबकि ऑटो मैटिक कोच वॉशिंग प्लांट में एक कोच की बाहरी धुलाई में केवल 6-15 मिनट लगते हैं. वहीं ऑटोमेटिक प्लांट शौचालय के नीचे कोच और बोगी के क्षेत्र को साफ करने में सक्षम है. वहीं कोच को साफ करने में रसायनों का इस्तेमाल भी कम होता है.

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कोच धुलाई के बाद पानी का हो रहा रिसाइकिल

ओटोमेटिक कोच वाशिंग प्लांट की खासियत यह है कि इसमें धुलाई के बाद जो गंदा पानी निकलता है, उसका रिसाइकिल किया जाता है. इस पानी को शोधन के बाद पेड़ों की सिंचाई और फर्श की धुलाई के लिए उपयोग में लिया जा रहा है. जिससे जल संरक्षण में भी मदद मिल रही है.

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