पटनाः बिहार में सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियां, जैसे गरीबी, बेरोजगारी, और शिक्षा की कमी, मानव तस्करी के लिए एक संवेदनशील वातावरण तैयार करती हैं. इन परिस्थितियों का फायदा उठाकर तस्करी करने वाले गिरोह लोगों को झांसे में लाकर, शोषण और अत्याचार का शिकार बनाते हैं. इस संकट ने न केवल परिवारों को तोड़ा है, बल्कि सामाजिक संरचना को भी चुनौती दी है. आंकड़ों के अनुसार, बिहार में मानव तस्करी की समस्या कितनी गंभीर और भयावह है, इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है.
बिहार में मानव तस्कर गिरोह सक्रियः गृह मंत्रालय के रिकॉर्ड के मुताबिक हर साल 14000 से अधिक महिलाएं और बच्चे बिहार से गायब हो जाते हैं. हालांकि पुलिस में इतने मामले दर्ज नहीं हो पाए. बिहार में मानव तस्कर गिरोह सक्रिय हैं. राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गृह मानव तस्करी के कृत्य में शामिल हैं. पिछले दिनों भोजपुर के युवक को विदेश ले जाया गया और वहां उसकी हत्या कर दी गई घटना के बाद मानव तस्करी को लेकर भी सवाल उठे.
"बिहार से हजारों लोग हर साल मानव तस्करी का शिकार हो रहे हैं. खास तौर पर महिलाएं और बच्चों को टारगेट किया जा रहा है. बच्चों से जहां बाल मजदूरी कराई जा रहे हैं वहीं महिलाओं को देह व्यापार में धकेला जा रहा है. गायब होने के जितने मामले सामने आते हैं, उतने मामले पुलिस में दर्ज नहीं हो पाते."- श्रीप्रकाश राय, आरटीआई एक्टिविस्ट
लड़कियां और महिलाएं होती हैं शिकारः मिनिस्ट्री ऑफ़ होम अफेयर्स के रिकॉर्ड के मुताबिक साल 2019 में 9839 लड़कियां और 1213 महिलाएं गायब हुई कुल 14052 महिलाएं और लड़कियां तस्करी का शिकार हुई साल 2020 में कुल 9999 लड़कियां और 4557 महिलाएं गायब हुई कुल 14556 महिलाएं और लड़कियां तस्करी का शिकार हुई. साल 2021 में 9808 लड़कियां और 561 महिलाएं तस्करी का शिकार हुई कुल मिलाकर 14869 महिलाएं और लड़कियां तस्करी का शिकार हुई.
बच्चे गायब होने के मामले में बिहार तीसरे स्थान परः रिपोर्ट ओं मिसिंग वूमेन एंड चिल्ड्रन इन इंडिया 2019 के अनुसार भारत में 2018 में कुल 67134 बच्चे गए हुए जिसमें 10.35% बच्चे बिहार से गायब रिपोर्ट के मुताबिक बच्चों का उपयोग कैमल जोकीज और चाइल्ड लेबर में किया जाता है तो लड़कियों को सेक्स वर्क में धकेल दिया जाता है. बिहार, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल के बाद तीसरे स्थान पर है .बिहार से कुल मिलाकर 6950 बच्चे गायब हुए.