शिमला: हिमाचल प्रदेश हाइकोर्ट ने सीपीएस नियुक्ति मामले में बड़ा फैसला सुनाया है. जस्टिस विवेक सिंह ठाकुर और जस्टिस बिपिन चंद्र नेगी की बेंच ने सभी 6 सीपीएस को तुरंत प्रभाव से हटाने का आदेश दिया है. इसके साथ ही कोर्ट ने सभी सरकारी सुविधाओं को भी तुरंत वापस लेने का आदेश दिया है. हिमाचल प्रदेश हाइकोर्ट ने राज्य सरकार का 2006 का सीपीएस एक्ट निरस्त कर दिया है. हाइकोर्ट ने साफ किया कि संविधान में सीपीएस की नियुक्ति का कोई प्रावधान नहीं है. और विधानसभा ऐसा एक्ट बनाने के लिए सक्षम नहीं है.
क्या है मामला ?
गौरतलब है कि हिमाचल प्रदेश में 11 दिसंबर 2022 को कांग्रेस की सरकार बनी. जिसके बाद सुखविंदर सुक्खू सरकार ने 6 विधायकों को सीपीएस यानी मुख्य संसदीय सचिव नियुक्त किया था. जिसके खिलाफ बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और विधायक सतपाल सत्ती समेत अन्य भाजपा विधायकों ने हाइकोर्ट में याचिका दायर की थी. जिसमें सीपीएस की नियुक्ति को असंवैधानिक बताते हुए चुनौती दी गई थी. बीजेपी का आरोप था कि सरकार ने विधायकों को खुश करने के लिए सीपीएस नियुक्त किए हैं.
याचिकाकर्ताओं के वकील वीर बहादुर वर्मा ने बताया कि "हाइकोर्ट ने माना है कि हिमाचल प्रदेश संसदीय सचिव एक्ट 2006 मेंटेनेबल नहीं है. कोर्ट ने सरकार को आदेश दिए हैं कि सीपीएस की सभी सुविधाएं वापस ली जाएं. हाइकोर्ट ने संसदीय सचिव एक्ट को खारिज कर दिया है. इसका मतलब है कि संसदीय सचिवों की नियुक्तियां नहीं हो सकती थी और अब इन्हें पद से हटाना पड़ेगा."