शिमला: हिमाचल प्रदेश प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण पहल कर रहा है. राज्य सरकार "प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना"जैसी योजनाओं के माध्यम से रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग को कम करके सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती की तकनीक को अपनाने पर जोर दे रही है. प्रदेश की भौगोलिक स्थिति और परिस्थिति भी इस प्रकार की खेती के लिए उपयुक्त है. इससे किसानों की आय बढ़ाने, मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने और पर्यावरण संरक्षण में मदद मिलेगी. ऐसे में प्राकृतिक खेती कई मायनों में फायदे का सौदा साबित हो सकती है. सरकार ने छोटे पहाड़ी राज्य हिमाचल को साल 2030 तक जहर वाली खेती से मुक्त करने का लक्ष्य रखा है.
प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार किसानों को देशी गाय, काऊ शेड के फर्श को पक्का करने, गोमूत्र को एकत्रित करने के लिए ड्रम और साइकिल हल खरीदने के लिए हजारों रुपये की सब्सिडी दे रही है. ऐसे में प्राकृतिक खेती से जुड़ने के लिए किसान कृषि विभाग के नजदीकी कार्यालय में जाकर सादे कागज पर आवेदन कर सकते हैं. प्रदेश में अभी तक 2.08 लाख किसान सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती की तकनीक को अपना चुके हैं. ऐसे में यह मॉडल देशभर के अन्य राज्यों के लिए एक प्रेरणा बन सकता है.
देशी गाय पर 25 हजार रुपये की सब्सिडी
किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार देशी गाय खरीदने के लिए 25 हजार रुपये की सब्सिडी दे रही है. वहीं, अगर किसान देशी गाय को पड़ोसी राज्यों से मंगवाते हैं तो सरकार ट्रांसपोर्टेशन के लिए अलग से 5 हजार रुपये की राशि दे रही है. इसके अलावा पशु मंडी से देशी गाय खरीदने के लिए मार्केट फीस के लिए अलग से 2 हजार रुपये का प्रावधान किया गया है. इस नस्ल की गाय के एक ग्राम गोबर में तीन करोड़ जीवाणु पाए जाते हैं जो कि नेचुरल फार्मिंग के लिए बहुत उपयोगी हैं इसलिए देशी गाय को प्राथमिकता दी जा रही है.
फर्श पक्का करने को 8 हजार
प्रदेश सरकार गौशाला में पक्का फर्श डालने के लिए भी किसानों को 8 हजार रुपये की सहायता दे रही है जिससे गोमूत्र को आसानी से एकत्रित किया जा सके. इसी तरह से संसाधन बनाने के लिए भी सरकार तीन ड्रम खरीदने पर 2250 रुपये की सब्सिडी दे रही है. वहीं, प्राकृतिक खेती में साइकिल हल खरीदने के लिए सरकार ने 1500 रुपये की सब्सिडी का प्रावधान किया है. इसके अलावा सरकार प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित करने के लिए टप और फव्वारे खरीदने पर भी सहायता दे रही है.
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प्रदेश में 2018 में अपनाई गई तकनीक
हिमाचल में साल 2018 में सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती की तकनीक को अपनाया गया. उस दौरान पहले ही साल में 628 हेक्टेयर भूमि पर प्राकृतिक खेती की तकनीक से फसल उगाई गई. इसके बाद धीरे-धीरे किसान प्राकृतिक खेती से जुड़ते रहे जिसका परिणाम ये है कि प्रदेश में अब 35,004 हेक्टेयर क्षेत्र में प्राकृतिक खेती की जा रही है. सरकार की तरफ से दिए जा रहे प्रोत्साहन से अब तक 2 लाख 73 हजार 161 किसानों को प्राकृतिक खेती की ट्रेनिंग दी जा चुकी है. इसमें से अब करीब 2.08 लाख किसान प्राकृतिक खेती कर रहे हैं. शुरुआती दौर में 1160 पंचायतों में किसानों ने इस तकनीक को अपनाया था. वहीं, आज प्रदेश की 3584 पंचायतों में किसान जहर वाली रासायनिक खेती को बाय-बाय कह चुके हैं. यहां हम प्राकृतिक खेती से लाभ के बारे में जानेंगे.
कम लागत वाली खेती
प्राकृतिक खेती में रासायनिक खाद और कीटनाशकों का उपयोग नहीं होता है. इस खेती के लिए घर पर ही उपलब्ध संसाधनों देशी गाय के गोबर, गौमूत्र, बेसन, गुड़, मिट्टी आदि से जीवामृत तैयार किया जाता है. इससे खेती में आने वाली उत्पादन लागत कम हो जाती है.