कीचड़ से लथपथ होकर खून पसीने से सींचे जाते हैं खेत, ऐसे अन्नदाता उगाते हैं फसल - Farming - FARMING
देश के अन्नदाता यदि फसल न उगाएं, तो आपकी थाली तक खाना नहीं पहुंच पाएगा. नेताओं के भाषण से लेकर चौक चौराहों पर लगने वाली चौपाल तक, किसान चर्चाओं में शामिल रहते हैं. किताबों में और बातों में हमेशा इस बात का जिक्र होता है कि किसान खून पसीना बहाकर फसल पैदा करता है लेकिन हर किसी ने किसान की इस मेहनत को आंखों से नहीं देखा होगा. मानसून आते ही किसानों ने खेती बाड़ी का काम शुरू कर दिया है. खेत में किसान दिनभर कैसे काम करते हैं ये देखने के लिए ETV भारत सीधे कीचड़ भरे खेतों में पहुंचा और किसान से जाना कि फसल तैयार कैसे होती है.
अन्न उगाने के पीछे कितनी होती है अन्नदाता की मेहनत (ETV BHARAT)
कोरबा: एक किसान जब फसल उगाने की सोचता है, तब बरसात शुरू होने से लेकर फसलों में सुनहरा रंग आने तक और इसे काटने तक का समय उसके लिए बेहद महत्वपूर्ण होता है. कई दिनों तक हर दिन किसान लगातार मेहनत करते हैं. बरसात की पहली फुहार से लेकर खेतों में पानी भर जाने का इंतजार करते हैं. खेतों की जोताई करते हैं, नर्सरी तैयार कर खेत में रोपा लगाते हैं. फसल को खाद पानी के साथ ही अपने खून पसीने से सींचते हैं. तब जाकर किसानों की फसल तैयार होती है. कुछ किसान अच्छा मुनाफा कमा लेते हैं तो कुछ सिर्फ अपनी आजीविका चलाने भर ही अनाज उगा पाते हैं.
कोरबा जिले के गांव कोरकोमा के किसान खेम सिंह हमें खेतों में ट्रैक्टर चलाते हुए दिखे. ETV भारत की टीम कीचड़ से लथपथ किसान खेम सिंह के पास पहुंची और उनसे पूछा कि वह किस तरह से खेतों में काम करते हैं. फसल उगाने के लिए कितनी मेहनत करते हैं.
सुबह 8:00 बजे होती है दिन की शुरुआत:खेम सिंह ने बताया सुबह 8:00 बजे से ही खेतों में काम शुरू हो जाता है जो शाम तक चलता है. ट्रैक्टर से पहले खेतों को जोतना शुरू करते हैं. चूंकि खेम सिंह के पास अपना खुद का ट्रैक्टर है, तो अपने साथ ही दूसरे किसानों के खेतों की भी जोताई कर देते हैं. दोपहर में कभी खाना लेकर आते हैं, तो कभी घर भी जाते हैं. इस तरह वर्तमान में वह सुबह से लेकर शाम होने तक खेतों की जोताई में व्यस्त हैं.
पहले फुहार के बाद शुरू होती है किसानी:खेम सिंह ने बताया कि ''पहली बरसात आने के बाद किसान नर्सरी तैयार करते हैं. यहां वह बीज और थरहा लगाते हैं. धान के बीज से जब पौधे अंकुरित होकर कुछ बड़े हो जाते हैं. इसे ही थरहा कहा जाता है. इसके बाद जब खेतों में पानी भरता है. तब अच्छी तरह से खेतों की जोताई करनी पड़ती है. इसके बाद नर्सरी से तैयार किए गए थरहा को उखाड़कर खेत तक लाया जाता है.''
थरहा की खेतों में ऐसे होती है रोपाई: नर्सरी से लाए गए थरहा को खेत में रोपने के काम को ही रोपा लगाना कहा जाता है. रोपा लगाते वक्त इसकी दूरी प्रत्येक पौधे से कम से कम एक फिट होनी चाहिए. ताकि पैदावार अच्छी आ सके. अगर पौधे ज्यादा करीब होंगे, तो उन्हें अच्छी तरह से पनपने का अवसर नहीं मिलेगा और पैदावार अच्छी नहीं होगी.
बारिश एकमात्र साधन इसलिए कई किसानों के खेत अभी सूखे :मानसून की शुरुआत खेती किसानी के लिए अच्छा मौसम लेकर आती है. इसी मौसम में खरीफ की फसल बोई जाती है. किसान धान के अलावा मक्का भी बो रहे हैं. खेम सिंह ने बताया कि कोरबा के कई गांव ऐसे हैं जो पूरी तरह से बरसात के पानी पर ही निर्भर हैं. सिंचाई का दूसरा कोई वैकल्पिक साधन नहीं है. इसलिए कई किसान अभी और बारिश होने का इंतजार कर रहे हैं. उनके खेतों में पानी नहीं भर सका है. जब तक खेतों में पानी पूरी तरह से भर ना जाए, तब तक खेतों की अच्छी तरह से जोताई नहीं हो पाती और इसमें रोपा नहीं लगाया जा सकता. इसलिए कुछ किसान अभी और बरसात होने का इंतजार कर रहे हैं. इस वर्ष बरसात तो हुई है. लेकिन कई क्षेत्रों के खेत में पानी अभी नहीं भरा है.
रोपा लगाने के बाद खाद का करते हैं छिड़काव फिर नवंबर दिसंबर में काटते हैं फसल :खेम सिंह ने बताया कि वर्तमान में वह खेतों की जोताई का काम कर रहे हैं. कई किसानों के खेत तैयार हो चुके हैं. वह रोपा लगा चुके हैं. एक बार जब खेतों में रोपा लग जाए, तो फिर लगभग चार से पांच महीना का वक्त धान को पूरी तरह से पकने के लिए लग जाता है. धान जब सुनहरे रंग के होने लगते हैं. तब हम इन्हें काटते हैं और फिर मंडी में बेचते हैं. इस बीच खाद पानी भी देते हैं. ताकि पैदावार अच्छी हो सके. वर्तमान में लगभग 20 क्विंटल प्रति एकड़ की फसल किसान ले रहे हैं.
खेती किसानी काफी मेहनत का काम है. महीनो तक लगातार मेहनत करने के बाद फसल तैयार होती है. वर्तमान में जोताई के दौरान कई बार ट्रैक्टर भी मिट्टी में फंस जाता है. जिसे हम लकड़ी लगाकर फिर निकलते हैं. ट्रैक्टर को खेत तक लाने के लिए मेड़ तोड़ना पड़ता है. फिर से मेड़ की मरम्मत करते हैं. इस तरह से खेती किसानी आसान नहीं है. इस काम के लिए सुबह से लेकर शाम तक खेतों में ही रहकर लगातार मेहनत करते हैं.