कोरबा: रंगों के त्योहार होली में फाग गीत का भी अलग महत्व होता है. होली की मस्ती और नाच-गाने नगाड़े के बिना फीका लगता है. लेकिन बदलते वक्त के साथ अब आधुनिक वाद्य यंत्रों के बीच नगाड़े के थाप कम ही सुनाई देती है. ग्रामीण अंचलों को छोड़ दें तो शहरों में होली के दिन एक-दो जगहों पर ही लोग नगाड़ा बजाते नजर आते हैं. नगाड़े की खरीदारी भी कम हो गई है, जिसके चलते इन कारीगरों की होली फीकी पड़ गई है. इसका सीधा असर नगाड़ा बनाने वाले कारीगरों पर भी पड़ा है.
नगाड़ा बनाने वाले कारीगर मायूस: रंगों के त्योहार होली के दौरान खरीदी कम होने से नगाड़ा बनाने वाले कारीगर मायूस हैं. उनका मानना है कि आधुनिक डीजे जैसे वाद्य यंत्रों ने अब नगाड़ों का स्थान ले लिया है. इसे बनाने वाले कारीगरों की पहले अच्छी खासी कमाई हो जाती थी, लेकिन अब कारीगरों ने नगाड़ा बनाना ही छोड़ दिया है. बिक्री भी काफी कम है, तो दूसरी ओर नगाड़ा बनाने के सामानों की भी किल्लत है.
800 से ₹1000 में मिलता है नगाड़ा:वर्तमान समय में हजार रुपए से लेकर ₹1200 तक के दाम में एक जोड़ी नगाड़ा आसानी से मिल जाता है. पहले इसकी कीमत ₹100 से ₹120 भी हुआ करती थी. नगाड़ा बनाने वाले कारीगर कहते हैं कि दाम बढ़ने के साथ ही इसका उपयोग भी काम हो गया है. लेकिन खरीदारी कम होने की बड़ी वजह आधुनिक वाद्य यंत्र हैं. अब डीजे और अनेक वाद्य यंत्रों में फिल्मी गानों में होली मनाने का ट्रेंड चल पड़ा है.
विलुप्ति के कगार पर नगाड़ा बजाने की परंपरा :नगाड़ा बनाने वाले कारीगर कृष्ण सारथी कहते हैं, "एक समय था, जब हम होली में नगाड़े बेचकर अच्छा खासा व्यापार कर लेते थे. इससे पूरा घर चल जाता था. लेकिन अब रोजी-रोटी चलाना मुश्किल हो गया है. बमुश्किल ही आजीविका चल पाती है. नगाड़ा बजाने वाले लोग भी अब कम हो गए हैं. यह परंपरा अब एक तरह से विलुप्त होने के कगार पर है. इसलिए अब तो नगाड़े से घर का खर्चा चलाना काफी मुश्किल है."