हमीरपुर: हिमाचल प्रदेश की हमीरपुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव हो रहे हैं. यहां से बीजेपी ने पूर्व निर्दलीय विधायक आशीष शर्मा को मैदान में उतार है. वहीं, कांग्रेस ने पुष्पेंद्र वर्मा को दूसरी बार टिकट दिया है. हमीरपुर सीट का इतिहास बेहद रोचक रहा है. यहां पर बीजेपी का ही दबदबा देखने को मिलता रहा है. 57 सालों में यहां कांग्रेस सिर्फ तीन बार ही जीत हासिल कर पाई है.
हिमाचल प्रदेश का छोटा सा जिला हमीरपुर हिमाचल प्रदेश को दो मुख्यमंत्री दे चुका है. वर्तमान सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू हमीरपुर के नादौन विधानसभा क्षेत्र और पूर्व सीएम प्रेम कुमार धूमल भी हमीरपुर जिले से संबंध रखते हैं. 1970 से 90 के दशक के बीच हिमाचल की राजनीति का एक बड़ा चेहरा ठाकुर जगदेव चंद सीएम की कुर्सी के एक दम नजदीक पहुंच चुके थे, लेकिन उनका अचानक उनका देहांत हो गया.
हमीरपुर जिले की सदर सीट के इतिहास के पन्नों को पलटने पर ठाकुर जगदेव चंद यहां से सबसे बड़े नेता मालूम होते हैं. ये सीट सालों से बीजेपी का गढ़ रही है. यहां सबसे अधिक समय तक जगदेव ठाकुर या उनके परिवार का ही सिक्का चलता रहा है. साल 1966 में भाषायी आधार पर जब पंजाब का विभाजन हुआ तो हमीरपुर भी हिमाचल का हिस्सा बन गया. हिमाचल का हिस्सा बनने के बाद साल 1967 में पहली बार हमीरपुर विधानसभा क्षेत्र में चुनाव हुए. इस चुनाव में भारतीय जनसंघ के कांशीराम को लोगों ने विधायक बनाया था उस समय हिमाचल को अभी पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं मिला था. हमीरपुर के पहले विधायक बनने का गौरव हासिल करने वाले कांशी राम सुजानपुर के पटलांदर क्षेत्र से संबंध रखते थे. उनके बाद उनकी विरासत को उनके भतीजे ठाकुर जगदेव चंद ने संभाला. जगदेव चंद राजनीति में उतरे तो बड़े-बड़े सूरमा उनके कद के आगे छोटे पड़ गए. खैर कांशीराम के बाद 1972 में यहां से कांग्रेस के रमेश चंद वर्मा विधायक बनें.
लगातार पांच बार जीते जगदेव चंद ठाकुर
1977 से ठाकुर जगदेव चंद के रूप में भगवा ब्रिगेड को यहां से ऐसा नेता मिला जिसने 1993 तक कांग्रेस को यहां से जीतने ही नहीं दिया. जगदेव चंद आए और पूरी तरह से ऐसे छाए कि 1982,1985,1990,1993 में लगातार पांच बार जीत हासिल की थी. 1977 में उन्होंने जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा था. जून 1977 में विधायक और राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री के रूप में अपने पहले कार्यकाल के दौरान, उन्हें सार्वजनिक परिवहन विभाग दिया गया था. उन्होंने निगम की बसों में यात्री बीमा योजना को शुरू करवाया था. 1993 के चुनाव के बाद जगदेव चंद मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार थे, लेकिन उनका देहांत हो गया. उनके देहांत के बाद हमीरपुर विधानसभा क्षेत्र में पहली बार उपचुनाव हुआ. कांग्रेस ने पूर्व विधायक रमेश चंद वर्मा की धर्मपत्नी अनिता वर्मा को मैदान में उतारा. दूसरी तरफ बीजेपी ने जगदेव चंद के छोटे बेटे नरेंद्र ठाकुर को उम्मीदवार बनाया. बीजेपी का मानना था कि सहानुभूति लहर पर सवार होकर वो हमीरपुर में कब्जा बरकरार रखेगी, लेकिन 1972 के बाद कांग्रेस के लिए अनीता वर्मा ने ये सीट उपचुनाव में जीती. इससे पहले उनके पति रमेश वर्मा ने सीट कांग्रेस की झोली में डाली थी.
भाभी ने देवर को हाशिए पर खिसकाया
1998 के चुनाव में बीजेपी ने यहां से नरेंद्र ठाकुर की जगह ठाकुर जगदेव चंद की बहू और नरेंद्र ठाकुर की भाभी उर्मिल ठाकुर को उम्मीदवार बना दिया. उर्मिल ठाकुर ने अनिता वर्मा को चुनाव हरा दिया. उस समय पहली बार प्रो. प्रेम कुमार धूमल के रूप में हिमाचल को हमीरपुर जिले से पहली बार मुख्यमंत्री मिला और उर्मिल ठाकुर सीपीएस बनीं. 2003 के विधानसभा चुनाव में उर्मिल ठाकुर यहां से चुनाव हार गईं, क्योंकि उनके देवर और जगदेव चंद के छोटे बेटे निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव में उतर गए थे.